मैं बादल बनना चाहती हूं
मैं बादल बनना चाहती हूं,
कहीं पर गरज के बरसना चाहती हूं
कहीं पर बरस के गर्जना चाहती हूं
मैं बादल बनना चाहती हूं।
आकाश की उचाईयों में, कभी लाल, कभी गुलाबी, तोह कभी राख के रंग में ढल के घूमती रहना चाहती हूं।
मैं बादल बनना चाहती हूं।
यूँ अनजान जगहों पर बेखौफ जाना चाहती हूं,
युही अठखेलिया करते हुए, खुद में ही मगन, आकाश नापना चाहती हूं।
मैं बादल बनना चाहती हूं।
कभी उन सूखे हुए पेड़ो तोह कभी उस सूखी हुई धरती को चूमना चाहती हूं,
बिना डरे उस मैल से, उन्हें बांहो में भरना चाहती हूं।
कोई छू न सके इन दायरों को, बिना मर्जी के मेरी, बस इतना ही तोह एक दायरा चारो ओर चाहती हूं।
मैं बादल बनना चाहती हूं।