मैं हूं विनाश का दानव

—धीप्रज्ञ द्विवेदी

आज दिल्ली में वर्षा की रिमझिम फुहारों का
आनंद लेते हुए सड़क पर चला जा रहा था
सड़क लगभग खाली थी
चलने वाले कम, भागने वाले अधिक थे
अचानक मेरा सर किसी से टकराया
वह कंक्रीट से बना था
एक ध्वनि सुनाई दी
मूर्ख मानव क्या हुआ? चोट लग गई?
मैंने कहा हां लेकिन आप हैं कौन
उसने कहा दिखता नहीं मैं दानव हूं,
वैसे तुम लोग मुझे विकास का मंदिर कहते हो
लेकिन मैं विनाश का दानव हूं
तब मैंने पूछा आपने मानवों को मूर्ख क्यों कहा?
उसने कहा दानव को मंदिर मानते हो तो
मूर्ख नहीं तो और क्या हो?
मैंने कहा अपने बारे में कुछ और बताएं
उसने कहा तुम्हारे पास समय है?
मैंने कहा कोरोना काल में समय ही समय है।
उसने कहा सुनो मेरी कहानी
मेरा निर्माण की कथा मानव के विकास की कथा है
जल जीवन का केंद्र है, जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं है
लाखों वर्षों से मुझे जल इकट्ठा करने के लिए बनाया जाता रहा
मुझे मिट्टी और पत्थरों से बनाया जाता रहा
अठारहवीं शताब्दी तक मैं मुख्यतः तुम्हें जल उपलब्ध कराता था
तुम्हारी प्यास बुझाता था
उसके बाद तुमने मुझे ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोग करना प्रारंभ किया
यहीं से मैं दानव रूप में बदलता चला गया
मेरी भूख बढ़ती चली गई
ग्रामों, नगरों, जंगलों, खेतों को लीलता चला गया
जानवरों और मानवों को खाता चला गया
लेकिन मेरी विनाश की भूख कम नहीं होती
अब तो विनाश ही मेरा लक्ष्य है
विनाश मैं स्वयं करूं या विनाश में सहयोग करूं यही मेरा कर्म है
मैंने पूछा हे दानव आप कहना क्या चाहते हैं
दानव ने पुनः बोलना प्रारंभ किया
देखो मैं कई बार अपने आप भी बन जाता हूं
और उसपर तुमलोग ध्यान नहीं देते तो
केदारनाथ जैसी त्रासदी लाता हूं
अभी भारत में मेरी संख्या लगभग छ: हजार है
और यह लगातार बढ़ती जा रही है
तुम जब मेरा निर्माण करते हो
सर्वप्रथम नदियों का रास्ता रोकते हो
अनुप्रवाह में जल की मात्रा कम हो जाती है
जिस कारण नदी पर निर्भर जीवन नष्ट होता है,
जंगल नष्ट हो जाते हैं, वन्य जीवन समाप्त हो जाता है,
नदियों पर आधारित रोजगार कम हो जाते हैं
नदियों में गाद बढ़ती है, साथ ही प्रदूषण बढ़ता है
आकस्मिक बाढ़ की संभावनाएं बढ़ जाती हैं
जैसा रत्नागिरी में हुआ या अमेरिका और चीन में हुआ
खेतों की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है
जिसे पूरा करने के लिए रसायनों का उपयोग करते हो जो तुम्हारे शरीर में विभिन्न रोगों को जन्म देते हैं
मैंने कहा आप तो डरा रहे हैं
उसने कहा अनुप्रवाह के बारे में और बताऊं?
मैंने कहा अब थोड़ा ऊर्ध्व प्रवाह के बारे में बताएं
उसने कहना प्रारंभ किया
जैसा मैंने पहले बताया भूमि जंगल ग्राम नगर जानवर मनुष्य मैं सबको निगल जाता हूं
लेकिन मेरी इच्छा केवल इनसे पूरी नहीं होती
तो मैं अपने जल में विभिन्न रोग प्रवाहक जीवों को स्थान देता हूं
साथ ही मैं विषैले शैवालों को भी जन्म देता हूं
केवल इतना ही नहीं मैं जहां होता हूं
वहां भूकंप आने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं
अपने आस पास के क्षेत्रों में बाढ़ के प्रकोप को बढ़ा देता हूं
तुम तो फरक्का जानते हो, जब से मैं फरक्का में बना तब से भागलपुर में बाढ़ की विभीषिका बढ़ी
यह सब सुनकर मेरा मस्तिष्क विचार शून्य होता जा रहा था
तभी उसने कहा मेरी भी उम्र होती है
अगर तुम नए का निर्माण न करो
और पुराने को तोड़ दो तो अभी भी बहुत देर नहीं हुई है
अभी मैं समझने का प्रयास कर ही रहा था कि
अचानक उसने पूछा
अब बताओ मैं विकास का मंदिर हूं या विनाश का दानव
जब तक मैं उत्तर देता तब तक वर्षा रुक गई
और वो गायब हो गया।

One Comment

  1. for the first time i have read something like this.
    the writer explained the negative impact of dams in a very simple way..

    Any one who know how to read hindi can understand the concept..

    great work done..
    looking forward for more..

    regards

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