कामगारों के प्रति रेलवे का रवैया “क्रूरता की पराकाष्ठा”

रेलवे बोर्ड और सरकार को मानवाधिकार आयोग की फटकार

(मीडिया स्वराज डेस्क)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हाल ही में विभिन्न श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों में हुई, प्रवासी मजदूरों की मौतों पर भारतीय  रेलवे और केंद्र और कई राज्य सरकारों  को कड़ी फटकार लगाई है. आयोग ने मीडिया में प्रकाशित उन खबरों का स्वतः संज्ञान लिया जिनके अनुसार यह ट्रेनें कई कई दिनों के विलंब से मंज़िल पर पहुँच  रही हैं.

आयोग के अनुसार, “देरी और भोजन-पानी जैसी सुविधाओं के अभाव में प्रवासी मजदूरों की जिंदगी दांव पर लगी है” 

आयोग ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन, केंद्रीय गृह सचिव और गुजरात व बिहार के मुख्य सचिवों को नोटिस भेज कर जवाब तलब किया है. आयोग ने सभी अधिकारियों से 4 हफ्ते के भीतर रिपोर्ट तलब की है, और यह बताने को कहा है कि यात्रियों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के संदर्भ में उन्होंने क्या कदम उठाए हैं.

बड़े ही तल्ख लहज़े में आयोग ने कहा कि, “यह चिंताजनक है कि, सरकार गरीब प्रवासियों के जीवन की सुरक्षा करने में लगातार असफल हो रही है। सरकारी एजेंसियां यह कर बच नही सकतीं कि देशव्यापी लॉक डाउन के कारण, वर्तमान स्थिति अभूतपूर्व है”.

आयोग ने प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा पर रेलवे अथॉरिटी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि, वर्तमान दशा में उनके कृत्य “क्रूरता की पराकाष्ठा” हैं.

मीडिया में कई दिनों से लगातार प्रकाशित हो रही खबरों का उल्लेख करते हुए आयोग ने कहा कि यदि खबरें सच हैं, तो यह मानव अधिकारों का सरासर उल्लंघन है और राज्य अपने गरीब प्रवासी मजदूरों के जीवन को बचाने में असमर्थ साबित हो रहा है.

मुज़फ़्फ़रपुर प्लेटफ़ार्म पर मृत माँ और अबोध बालक

आयोग ने एक 4 वर्षीय बच्चे समेत की मौत का हवाला देते हुए बिहार के मुज़्ज़फ्फरपुर, दानापुर, सासाराम, गया, बेगूसराय, जहानाबाद से रिपोर्ट की गई ट्रेन में हुई मौतों पर टिप्पणी की. साथ ही यह भी पूछा, कि क्या कारण है कि एक ट्रेन जो 16 मई को गुजरात के सूरत से चली, उसको बिहार के सिवान पहुँचने  एक सप्ताह से ज्यादा समय लग गया। ट्रेन 25 मई को अपने गंतव्य पर पहुँची  थी, पूरे 9 दिन यह यात्रियों समेत पटरियों पर ही रही.

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