गिलोय कैसे पहचानें और किस बीमारी में कैसे लें
श्री रामदत्त त्रिपाठी: आजकल कोरोना का प्रकोप तेजी पर है और आयुष मंत्रालय सहित वैद्य गण गिलोय का काढ़ा सेवन करने की सलाह देते हैं। परंतु एक सामान्य व्यक्ति के लिए इसकी पहचान कर पाना एक बड़ी समस्या है, इसलिए आप हमारे श्रोताओं को यह बताएं कि गिलोय की पहचान कैसे करनी चाहिए?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: गिलोय ही नहीं, किसी भी वनस्पति की पहचान करने का सर्वोत्तम तरीका किसी अनुभवी और जानकार व्यक्ति को साथ ले जाकर ही वनस्पति की पहचान करनी चाहिए, यही विधान शास्त्रों में भी बताया गया है। क्योंकि पुस्तकों और पत्रिकाओं में छ्पने वाले चित्र प्रायः असपष्ट होने या वनस्पति का भौतिक स्वरूप लगातार परिवर्तित होने के कारण कई बार चित्र से मेल नहीं खाते।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: गिलोय का प्रयोग किस प्रकार करना चाहिए और यह किन-किन रोगों में उपयोगी है? यह भी कहा जाता है कि नीम गिलोय सबसे अच्छी मानी जाती है, क्या वास्तव में ऐसा है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: प्रत्येक बेल या लता का यह गुण होता है कि जिस वृक्ष के सहारे ऊपर चढ़ती है, उसके गुण भी ग्रहण कर लेती है। इसलिए नीम गिलोय में नीम के गुण भी स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं। गिलोय और नीम दोनों ही तिक्त रस युक्त होने से गिलोय की तिक्तता और भी अधिक हो जाती है। तिक्तता बढ़ जाने से उसमें आकाश और वायु महाभूत की वृद्धि हो जाएगी अतः कफ दोष का शीघ्रता से शमन कर अग्नि महाभूत की वृद्धि करेगी। वर्तमान में चल रही कोरोना महामारी कफ दोष प्रधान होने के कारण इसमें नीम गिलोय बहुत ही लाभकारी है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. रजनीश जी! अभी एक दर्शक ने कहा है कि वह गिलोय के पत्तों और तुलसी की पत्तियों का काढ़ा बना कर सेवन करते हैं। गिलोय के पत्ते, डंठल आदि में से किस अंग का औषधि के रूप में प्रयोग करना चाहिए?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: गिलोय को आयुर्वेद में रसायन कहा गया है,रसायन उसे कहते हैं जो जरा (बुढ़ापा) और व्याधि (रोग) दोनों को दूर करता है। इसे कैंसर, मधुमेह, वात आदि अलग अलग रोग में अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जा सकता है। गिलोय गुरु (पचने में भारी तथा स्निग्ध (चिकनाई युक्त) गुण युक्त होती है। गिलोय के ये गुण केवल हरी और ताजी गिलोय में ही होते हैं। आजकल गिलोय वटी, चूर्ण, अर्क (स्वरस, जूस) आदि कई रूप में उपलब्ध है। चूर्ण रूप में इसकी स्निग्धता प्रभावित होती है। तिक्त रस युक्त होने से लंबे समय तक प्रयोग करने पर यह रुक्षता उत्पन्न करता है। गिलोय को आयुर्वेद में त्रिदोष शामक कहा गया है, परंतु आयुर्वेद में अनुपान का विशेष महत्व होता है। यदि गिलोय को शहद के साथ सेवन करते हैं तो यह कफ दोष का शमन करता है,शर्करा (खांड) के साथ सेवन करते हैं तो पित्त दोष का शमन करेगा और यदि घृत के साथ सेवन करते हैं तो यह वात दोष का शमन करेगी।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! आजकल गिलोय का काढ़ा के रूप में बहुत प्रयोग हो रहा है और आयुष मंत्रालय भी अपने कोविड प्रोटोकॉल में गिलोय का काढ़ा सेवन करने के लिए कहता है, काढ़ा बनाया कैसे जाए?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: पहले गिलोय के पत्ते और तुलसी की पत्तियों के काढ़े के प्रश्न का समाधान कर लेते हैं। प्रत्येक वनस्पति के किस अंग का प्रयोग किस रोग में करना चाहिए, इसका स्पष्ट विधान आयुर्वेद में किया गया है। गिलोय के लिए औषधि के रूप में कांड (तने) के प्रयोग का ही विधान है। ऐसा नहीं है कि पत्ते में गिलोय के गुण नहीं होंगे, होंगे पर बहुत अल्प मात्रा में। आयुर्वेद में गिलोय के पत्तों के शाक के सेवन का भी विधान है लेकिन औषधि के रूप में इसका कांड ही उपयोगी होता है। काढ़ा बनाने के लिए उंगली जितनी मोटी ताजी गिलोय लेने पर उसकी मात्रा का चार गुना पानी लेकर धीमी आंच में पकाते हैं, जब पकते पकते दो गुना पानी रह जाता है तो उसको छान कर काढ़े के रूप में प्रयोग करते हैं। यदि सूखी गिलोय लेते हैं तो 16 गुना पानी लेकर धीमी आंच में पकाते हैं। जब पकते पकते 4 गुना रह जाता है तो उसे छान कर काढ़े के रूप में प्रयोग करते हैं। लेकिन काढ़े की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सहपान का प्रयोग किया जाता है। आचार्य चरक ने इस संबंध में कहा है कि किसी भी अल्प गुणकारी दृव्य को महान कार्यकारी और महान कार्यकारी दृव्य को रोगी के अनुसार अल्प गुणकारी बनाने के लिए पाँच क्रियाओं – संयोग,वियोग, काल, संस्कार और युक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! गिलोय का काढ़ा बनाते समय कुछ लोग सोंठ, काली मिर्च, दालचीनी, तुलसी, शहद या नींबू आदि भी मिलाते हैं। ऐसा क्यों किया जाता है, और इससे कौन कौन से गुणों की वृद्धि होती है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: यदि हम इसमें सोंठ, काली मिर्च जैसे तीक्ष्ण दृव्य मिलाते हैं तो इससे गिलोय के तीक्ष्ण गुण में वृद्धि होगी और वह निश्चित रूप से कफ का शमन करेगा। अभी जैसे कोरोना काल चल रहा है और बसंत ऋतु में तो तुलसी, सोंठ, कालीमिर्च जैसे तीक्ष्ण दृव्य को मिला कर सेवन करने में निश्चित रूप से लाभकारी हो रहा है। कफजन्य मंदाग्नि में भी बहुत लाभकारी है। परंतु पित्तजन्य मंदाग्नि में हानिकारक होगी। घृत के साथ सेवन करने पर वात और गुड के साथ सेवन करने पर पित्त और कब्ज का नाश करती है। मधु के साथ सेवन करने पर कफ का शमन करती है। किसी भी दृव्य में कोई अन्य दृव्य मिला देने से उसके गुण धर्म में परिवर्तन हो जाता है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. रजनीश जी! कोरोना काल में आप लोगों ने गिलोय का प्रयोग किस प्रकार किया है?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: हमने कोरोना काल में अलग अलग रोगियों में काढ़ा, गिलोय घनवटी और गिलोय सत्व के रूप में प्रयोग किया है। सोंठ,कालीमिर्च और तुलसी मिलाने से यह लघु अर्थात, शीघ्र पचने वाली हो जाती है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: क्या यह सही है कि कालीमिर्च और तुलसी दो ऐसे दृव्य हैं जो किसी भी औषधि में मिलाये जाएँ तो उसके गुण में वृद्धि कर देते हैं?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: काली मिर्च बायो एलोवेटर होने से किसी भी दृव्य को शीघ्र पचने वाला बनाती है और तुलसी में पारद का संयोग होता है इसलिए यह किसी भी दृव्य की दक्षता में वृद्धि कर देती है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! आजकल लोगों को लीवर की बहुत समस्या है। खास तौर पर फैटी लीवर तो एक सामान्य बात हो गई है,इसमें गिलोय किस प्रकार कार्य करती है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: आयुर्वेद का मूल सिद्धान्त पंचमहाभूत और त्रिदोष का है। जहां पर मेद धातु की बात आती है, वहाँ पर पृथ्वी महाभूत आएगा। फैटी लीवर में हम गिलोय (सूखी), छोटी हरड़ और शुण्ठी की 5-5 ग्राम मात्रा लेकर उसका 16 गुना पानी लेकर काढ़ा बनाते हैं। और पीते समय एक चुटकी कालीमिर्च चूर्ण डालते हैं। यह योग 40 दिन तक लगातार प्रयोग करने पर फैटी लीवर के साथ साथ कई ऐसी समस्यायेँ समाप्त हो जाती है। काली मिर्च में प्रमाथी (शरीर के सारे दोषों को निकाल देना) गुण होता है इसलिए यह शरीर के सारे दोषों को मलमार्ग और स्वेद (पसीना) मार्ग से बाहर निकाल देती है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. रजनीश जी! यदि यह अग्नि को प्रदीप्त करती है तो यह हृदय रोग में भी फायदा करती होगी, वह किस प्रकार से करती है?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: बिलकुल, गिलोय तिक्त रस युक्त औषधि होने के कारण कफ, पित्त दोषों का शमन करती है। साथ साथ, जितने भी अवरोध (obstruction) उत्पन्न करने वाले रोग हैं उनमें बहुत कारगर होती है। गिलोय के साथ, अर्जुन, पुनर्नवा, वचा, पुष्करमूल का प्रयोग करते हैं तो यह योग हृदय दौर्बल्य के साथ साथ हृदय के अवरोधों को भी दूर करता है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! मैंने कहीं पढ़ा था कि गिलोय का कुष्ठ रोग में भी बहुत अच्छा उपयोग है। वह किस प्रकार होता है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: यह तिक्त रस युक्त दृव्य है। तिक्त रस युक्त औषधियाँ प्रायः रक्त प्रसाद (रक्त को साफ करने का) गुण लिए होती है जो त्वचा के सभी रोगों में बहुत लाभकारी होती है। यदि कोई औषधि नहीं है तो भी केवल एक इंच गिलोय का टुकड़ा लें और उसको पानी मिला कर पीस कर उसका स्वरस निकाल लें। उस रस का सेवन करने से कुष्ठ क्या,त्वचा संबंधी सभी रोगों में बहुत लाभ होता है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! अभी एक प्रश्न आया है कि क्या केवल नीम गिलोय ही फायदा करती है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है। नीम और गिलोय दोनों ही तिक्त रस युक्त होने से गिलोय के गुणों में गुणात्मक वृद्धि हो जाती है। गिलोय कोई भी हो, तिक्त रस युक्त होगी ही। चूंकि वह उसका मूल रस है अतः वह लाभकारी होगी ही।
आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी, बी0ए0 एम0 एस0, पी0 जीo इन पंचकर्मा, विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एन0डी0, साहित्यायुर्वेदरत्न, एम0ए0(संस्कृत) एम0ए0(दर्शन), एल-एल0बी0।
संपादक- चिकित्सा पल्लव,
पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0,
संस्थापक आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।