बेल कैसा खाएँ कच्चा या पक्का और सेवन का सही तरीक़ा क्या है!
बेल कैसा बेल कैसा खाएँ कच्चा या पक्का और सेवन का सही तरीक़ा क्या है! इस विषय पर पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी की चित्रकूट के सुप्रसिद्ध वैद्य डा मदन गोपाल वाजपेयी से चर्चा :
श्री रामदत्त त्रिपाठी: आजकल बेल का मौसम चल रहा है, बेल को बहुत ही गुणकारी माना जाता है। लेकिन प्रायः लोग इसे खाने का सही तरीका नहीं जानते हैं। बेल का फल कच्चा खाना चाहिए या पक्का खाना चाहिए? फल के अलावा पत्तों, छाल और जड़ का चिकित्सीय उपयोग क्या हैं?
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी : आपने अच्छा प्रश्न उठाया है। प्रायः लोग यह नहीं जानते हैं कि बेल का कैसे उपयोग करना चाहिए जिससे यह लाभ प्रदान करने के बजाय हानि करता है। आयुर्वेद में चिकित्सा एवं औषधि निर्माण लिए चरक संहिता एवं सुश्रुत संहिता प्रामाणिक ग्रंथ माने जाते हैं। आचार्य चरक कहते हैं कि बेल का पका हुआ फल दोषों को उत्पन्न करने वाला, अपानवायु को दूषित (बदबूदार) करने वाला तथा पचने में अत्यंत कठिन होता है परंतु जब यह फल कच्चा होता है तो अपने स्निग्ध गुण के कारण वात का शमन करता है, गरम होता है, तीक्ष्ण (तुरंत प्रभावकारी) होता है अतः वात एवं कफ दोनों दोषों का शमन करता है। आचार्य सुश्रुत के अनुसार कच्चा बेल का फल कफ एवं वात दोनों का शमन करता है, तीक्ष्ण होता है और संग्राही (मल को बांधने वाला) होता है, भूख को जगाता है। वर्तमान कोरोना काल में बहुत से लोगों को भूख न लगने की शिकायत हो सकती है, उनकी भूख को बढ़ाने के लिए लिए कच्चा बेल बहुत ही गुणकारी हो सकता है। लेकिन जब यह पक जाता है, तो इसका रस बदल जाता है। अर्थात, कच्चा बेल कषाय एवं तिक्त रस युक्त होता है, परंतु पकवावस्था में इसका रस मधुर हो जाता है। पचने में यह भारी जाता है अतः इसमें दाहकार गुण आ जाता है जिससे इससे पेट में जलन एवं गैस की बीमारी हो सकती है। पका फल विष्टंभकारी (मल के वेग को मंद करने वाला) होने से कब्ज उत्पन्न करता है, तथा वायु में दुर्गंध उत्पन्न करता है। इसलिए बेल का हमेशा कच्चा फल ही सेवन करना चाहिए।
कच्चे बेल का सेवन किस प्रकार
श्री रामदत्त त्रिपाठी: कच्चे बेल का सेवन किस प्रकार या किस रूप में करना चाहिए?
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी: पका हुआ बेल चूंकि गैस उत्पन्न करने वाला और पचने में भारी होता है इसलिए शरीर की चयपचय क्रिया (मेटाबोलिस्म) को भी प्रभावित करता है। इसलिए पका हुआ बेल बिलकुल हितकारी नहीं है। कच्चे बेल का गूदा ले सकते हैं, इसका चूर्ण ले सकते हैं, आँव, पेंचिस में कच्चे बेल को भूनकर लिया जाता है। इसका शर्बत सेवन कर सकते हैं, मुरब्बा के रूप में भी सेवन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त पंचविधकषाय परिकल्पना के अनुसार, धान्यपंचक कषाय, वत्सकदि बिल्व पंचक क्वाथ, बिल्वादि घृत, बिल्वादि चूर्ण, बिल्वादि गुटिका आदि औषधियाँ बनाई जाती हैं। 30-40 ग्राम कच्चा बेल किसी भी रूप में, स्वल्पाहार या भोजन के साथ ले सकते हैं। शर्बत के रूप में सेवन के लिए लौंग, कपूर और पोदीना के साथ घोल बना कर सेवन करना चाहिए।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: आपने इस चर्चा में पके हुये बेल के बारे में भ्रांति दूर कर दी। अब यह बताएं कि बेल के अन्य अवयवों – पत्ते, छाल और जड़ का क्या उपयोग होता है और इसे किस प्रकार लेना चाहिए?
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी: इसके अन्य अवयवों में इसका मूल अर्थात, जड़ का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में प्रायः प्रयुक्त दशमूल काढ़ा के घटकों में एक दृव्य बेल का मूल भी है। परंतु इसकी जड़ अधिक मात्रा में न मिल पाने के कारण निर्माता कंपनियाँ बेल की छाल का भी प्रयोग करती हैं। वह भी अच्छा कार्य करती है। इसके अतिरिक्त, इसकी पत्तियों एवं पुष्प में भी बहुत से औषधीय गुण होते हैं। अब हम इसके मूल की बात करते हैं। प्रायः जिन लोगों को नींद नहीं आती है तो उसके लिए ट्रांकुलाइजर के रूप में अल्पाजोलम का प्रयोग करते हैं जिसके अपने पार्श्व प्रभाव होते हैं। परंतु, बेल की जड़ में अद्भुत ट्रांकुलाइजर (शामक गुण) होता है और इसके कोई पार्श्व प्रभाव भी नहीं होते हैं। हम अपने यहाँ इसका प्रायः प्रयोग करते हैं। इसके लिए अंगुली के बराबर मोटी जड़ की छाल को लेकर उसका काली मिर्च के साथ पीस कर चूर्ण बनाते हैं और 2-2 ग्राम चूर्ण का सेवन दिन में 3 बार और सोते समय अवश्य कराते हैं जिससे रोगी को पहले दिन से ही अच्छी नींद आने लगती है। इसके अतिरिक्त, पागलपन, उन्माद के शिकार लोगों के लिए भी बेल की छाल अत्यंत लाभकारी होती है। वातशामक होने के कारण उच्च रक्तचाप में भी गुणकारी है। सूजन होने या चोट लगने पर बेल की छाल की पुल्टिस बनाकर सेक करने से सूजन में तत्काल लाभ होता है। इसके अतिरिक्त, विषम मलेरिया में भी बेल की जड़ बहुत अच्छा कार्य करती है। इसके लिए 5 ग्राम बेल की जड़ काली मिर्च के साथ पीस कर उसका रस निकाल कर दिन में 3-4 बार सेवन करने से मलेरिया निश्चित रूप से दूर हो जाता है। मधुमेह में भी लाभकारी है और इसके कोई पार्श्व प्रभाव भी नहीं होते। बच्चों को अतिसार (डायरिया) होने पर बेल के फूल (अगर सूखे फूल हैं तो थोड़ी देर पानी में भिगो देने से पुनः ताजे हो जाते हैं) को पीस कर कर, उसका रस निकाल कर बच्चे की अवस्था के अनुसार ¼ चम्मच से 1 चम्मच तक पिलाने से बहुत लाभ होता है। बेल के छाया में सुखाये हुए फूल और कच्ची पक्की सौंफ का चूर्ण दिन में 4-5 सेवन करने से डायरिया एवं डिसेंट्री में वयस्कों को भी बहुत लाभ होता है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: अचानक डिसेंट्री या अतिसार होने पर बेल की जड़ या फूल मिल पाने में कठिनाई होती है। क्या इसके कोई तैयार उत्पाद भी आते हैं?
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी: इसके लिए बिल्वादि चूर्ण बाज़ार में सभी आयुर्वेदिक दवाओं की दुकानों में मिल जाता है और प्रायः सभी कम्पनियाँ इस चूर्ण को बनाती हैं। पहले गांवों में भी सभी दुकानों में जड़ी-बूटियाँ मिल जाती थी, परंतु गावों से आयुर्वेद हट जाने और ग्रामीण वैद्यों के न रह जाने के कारण अब जड़ी-बूटियाँ शहरों में मुश्किल से मिलती हैं।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: बेलपत्र को भगवान शिव की पूजा में चढ़ाया जाता है। इसका कोई चिकित्सीय लाभ भी होता है?
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी: आयुर्वेद में बहुत सी वनस्पतियाँ हैं जो केवल स्पर्श से ही कारगर होती हैं। बेल पत्र में स्वर्ण का अंश भी होता है। अतः प्रसाद के रूप में बेलपत्र का स्पर्श व सेवन करने के पोषण प्राप्त होता है। रामचरितमानस में एक प्रसंग आता है कि पार्वती जी ने शिव को प्रसन्न करने के लिए 1000 वर्ष तक केवल बेल पत्र का सेवन करके तपस्या की। इससे पता चलता है कि उनको बेलपत्र से पोषण मिलता था। इसके अतिरिक्त, बेलपत्र मधुमेह में भी बहुत लाभकारी होता है। मधुमेह के रोगी को भूख बहुत लगती है, बेल पत्र का सेवन करने से उसको भूख भी कम लगती तथा पोषण पर्याप्त मिल जाता है।
स्वर्णप्राश का सेवन
श्री रामदत्त त्रिपाठी: आपने स्वर्ण का उल्लेख किया तो आयुर्वेद में बच्चों को पोषण के लिए स्वर्णप्राश का सेवन कराया जाता है। कृपया उस पर भी प्रकाश डालें।
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी: स्वर्णप्राशन का आविष्कार महर्षि कश्यप में किया था। इसमें पोषण के साथ साथ, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की अद्भुत शक्ति होती है। आयुष ग्राम ट्रस्ट द्वारा आस पास के क्षेत्रों में अपनी टीम भेज कर स्वर्णप्राशन का बहुत प्रयोग किया है और उसके आश्चर्यजनक परिणाम भी मिले हैं। बच्चों को उनकी आयु के अनुसार निर्धारित मात्रा में सेवन कराने से उनका विकास बहुत तेजी से होता है।
आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी, बी0ए0 एम0 एस0, पी0 जीo इन पंचकर्मा, विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एन0डी0, साहित्यायुर्वेदरत्न, एम0ए0(संस्कृत) एम0ए0(दर्शन), एल-एल0बी0।
संपादक- चिकित्सा पल्लव,
पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0,
संस्थापक आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।