लंबे संघर्ष के लिए कितनी तैयार है भारतीय सेना
—अनुपम तिवारी
“भारतीय सेनाओं को हर समय खुद को इस स्तर पर तैयार रखना चाहिए कि चीन और पाकिस्तान, दोनों ही सीमाओं पर यदि कोई गलत हरकत हो, तो उसका माकूल जवाब दिया जा सके” रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह बात बुधवार को भारतीय वायु सेना की कमांडर कॉन्फ्रेंस में कही। रक्षा मंत्री के इस बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं।
एक ओर अब यह साफ हो चला है कि चीन के साथ पूर्वी लद्दाख पर LAC में सैन्य वापसी को ले कर जो बातचीत हुई है, उसके परिणाम उतने सकारात्मक नही दिख रहे हैं जैसी भारत अपेक्षा कर रहा था। दूसरी तरफ पाकिस्तान की ओर से भी किसी संभावित खतरे को नकारा नही जा सकता।
सेना की आपूर्ति श्रृंखला को जारी रखने की चुनौती
किसी भी जंग को लड़ने के लिए सेना के लिए आवश्यक सामग्रियों की आपूर्ति में निरंतरता सबसे महत्वपूर्ण पक्ष होता है। सैनिकों के भोजन से ले कर, साजो सामान, हथियार, मौसम के अनुकूल कपड़े इत्यादि ऐसे जरूरी संसाधन हैं, जिनको साधे बिना युद्ध मे सफलता नही मिल सकती। इन्ही सब के मद्देनजर भारत सरकार और भारतीय सेना ने LAC पर अपनी सप्लाई चेन को दुरुस्त करने का निर्णय लिया है।
भारतीय सेना ने पर्याप्त मात्रा में सैनिकों के लिए विशेष राशन और अन्य सामग्रियों की आपूर्ति के लिए प्रक्रिया चालू कर दी है। इसके पीछे कारण यही है कि चीनी सेना उन इलाकों को पूरी तरह से खाली करने को अभी तैयार नही दिख रही है, जहां से बातचीत की शर्तों के अनुसार उसे वापस जाना था। पेंगोंग त्सो झील के इलाकों, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स समेत ऐसी कई जगहें हैं जहां से ‘डिस इंगेजमेंट’ की प्रक्रिया के तहत चीन को अपने जमावड़े हटाने थे।
चीन का खतरनाक ढंग से इन इलाकों पर बने रहने के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि भारतीय सेना भी अपने मोर्चों को मजबूत करे और ऐसी परिस्थिति के लिए तैयार रहे कि सीमा पर तनातनी काफी लंबी भी खिंच सकती है। इसके लिए सेना अपनी ओर से सैनिकों तक पहुचने वाली रसद और अन्य साजो सामान की पर्याप्त आपुर्ति बनाये रखना चाहती है।
सामान्य परिस्थिति में अग्रिम मोर्चों पर तैनात सेना की टुकड़ियों के पास लगभग 90 दिन के लिए इन सामानों को स्टॉक होता है, किंतु आने वाली सर्दियों के मद्देनजर कुछ विशेष तैयारियां भी करनी पड़ेंगी। और यह भी ध्यान देना पड़ेगा कि सर्दियों में जब सारे राजमार्ग बर्फबारी की वजह से बंद हो चुके होंगे तब यह आपूर्तियाँ कैसे संभव हो पायेगी।
सप्लाई के नए रास्तों की तलाश बेहद जरूरी है
नवंबर के महीने से 15000 फुट की ऊंचाई पर स्थित लद्दाख की हमारी अग्रिम चौकियां बाकी देश से स्थल मार्ग से कट जाया करती हैं। इसी वजह से पहले ही इतना स्टॉक जमा कर लिया जाता है कि किसी तरह की परेशानियां न हों। चूंकि इस बार समस्या विकट है, सेना सर्दियों के मौसम में भी आपूर्ति के नए मार्गों को तलाश रही है।
वैसे तो लेह का हवाई अड्डा हमारी सैन्य आपूर्तियों को सम्हालने के लिए सक्षम रहता था। किंतु आज आवश्यकता अधिक है। हवाई जहाजों की अपनी बाध्यताएँ होती हैं। मौसम प्रतिकूल होने और बहुत अधिक ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से लेह के हवाई अड्डे का पूर्ण रूप से उपयोग हो पाने में मुश्किलें आती हैं। इसी वजह से सेना जोजी ला दर्रे को पूरी सर्दी भर चालू रखने का भगीरथ प्रयास शुरू कर चुकी है। श्री नगर से लद्दाख को जोड़ने वाला राजमार्ग जोजीला से हो कर गुजरता है। इस को लगातार ऑपरेशनल बनाये रखने के लिए सेना ने बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन की सेवाएं भी लेने का फैसला किया है, जो इस तरह के काम मे पारंगत मानी जाती है। दूसरा विकल्प मनाली से लद्दाख को जोड़ने वाला राजमार्ग भी है जो रोहतांग पास से हो कर गुजरता है। किंतु यहां सेवाएं बहाल कर पाना अपेक्षाकृत मुश्किल है।
इसके अलावा इस बात का रिव्यु भी किया जा रहा है कि सैनिकों को खाद्य सुविधाओं की कितनी आवश्यकता हो सकती है। कम से कम बोझ के साथ अधिक कैलोरी वाले भोजन की उपलब्धता एक अति आवश्यक कदम होगा।
भारतीय सेनाएं इन सब के लिए पूरी तरह मुस्तैद हैं और जैसा कि रक्षा मंत्री ने भी कल बताया, बालाकोट जैसे हमले कर के हमारी वायु सेना ने अपना दम खम पहले ही दिख दिया था। जिस आश्चर्यजनक तेजी के साथ वायु सेना ने अपने जमावड़े को लेह तक पहुचाया है और जितनी तेजी के साथ वहाँ पर अभ्यास शुरू कर दिए हैं उसके संदेश हमारे दुश्मनों तक भी पहुचे हैं। वह कोई गलत हरकत करने से पहले हज़ार बार जरूर सोचेंगे।
(लेखक सेवानिवृत्त वायु सेना अधिकारी हैं)