NEWS MEDIA : कितनी खबरें वास्तव में खबरें हैं

—राजेंद्र तिवारी, वरिष्ठ  पत्रकार, राँची से

राजेंद्र तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार

बीते हफ्ते तीन-चार बड़े सवाल छाये रहे- कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी, गहलौत-सचिन, गाजियाबाद में पत्रकार की हत्या और लद्दाख में चीनी घुसपैठ। कोरोना और चीनी घुसपैठ संबंधी खबरें हिंदी अखबारों में अब पहले पेज की सुर्खियों से गायब हो गयी हैं। लेकिन बाकी मुद्दों पर भी उचित संदर्भ व पृष्ठभूमि के अभाव में सवाल उठते हुए नहीं दिखाई देते हैं। क्या अखबारों का काम सिर्फ सूचनाओं को छापना है या फिर उनको खबर के स्वरूप में छापना है? कोलकाता का अखबार द टेलीग्राफ ने लगभग इन सभी सूचनाओं को खबरों व स्टोरी के तौर पर पेश करके तीखे सवाल पूछे हैं। यह अखबार पहले से ही ऐसा करता आ रहा है।इस कॉलम में आज हम एक खबर के जरिये विभिन्न अखबारों की ध्वनि को समझने की कोशिश कर रहे हैं-

शुक्रवार, 24 जुलाई के अंक में इस अखबार के पहले पेज शीर्षक लगाया है – डिसेंट इज डेलाइटेड। साथ में पृष्ठभूमि भी बता दी है। यह शीर्षक सात कॉलम में है और इस हेडिंग के बैनर के नीचे दो खबरें लगाई लगाई हैं। पहली स्टोरी राजस्थान के स्पीकर पीसी जोशी की अपील पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई को लेकर है और दूसरी स्टोरी है सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर चल रही टिप्पणियों पर। द टेलीग्राफ का यह प्रस्तुतिकरण सुप्रीम कोर्ट को कटघरे में खड़ा करके सवाल पूछता नजर आ रहा है। दूसरे अखबारों ने इसी खबर को जिस तरह दिया है, उससे ध्वनित होता है कि सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र में असहमति के अधिकार को अक्ष्क्षुण रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इंडियन एक्सप्रेस ने भी इसी खबर को पहले पेज पर मुख्य खबर बनाया है और इसका शीर्षक है – SC refuses stay on time given to rebel MLAs, asks can dissent be shut down like this । अमर उजाला ने भी इस खबर को पहले पेज पर प्रमुखता से लिया है और इसका शीर्षक है – असहमति की आवाज दबाना क्या लोकतंत्र को खत्म करना नहीं। प्रभात खबर ने शीर्षक लगाया है – लोकतंत्र में असहमति नहीं दबा सकते – सुप्रीम कोर्ट।

देश में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबार दैनिक जागरण ने भी इसे पहले पेज पर लीड के तौर पर प्रस्तुत किया है लेकिन इसने भी शीर्षक दिया है – लोकतंत्र में असहमति का स्वर नहीं दबा सकते।यहां भी पूरी खबर यह कहती नजर आती है कि सुप्रीम कोर्ट असहमतियों के अधिकार को लेकर बहुत संजीदा है और उसके रहते लोकतंत्र में इस लोक अधिकार के खिलाफ साजिश नहीं की जा सकती। अंग्रेजी के सबसे बड़े अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को मामले के संदर्भ तक सीमित रखते हुए शीर्षक दिया है – Advantage Raj Rebels as SC Lets HC Rule on Disqualification Plea। इसके प्रस्तुतिकरण में असहमति के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को कोट के तौर पर अलग से दिया गया है।

इन अखबारों का प्रस्तुतिकरण सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर सुप्रीमकोर्ट को कसते हुए सवाल खड़ा करता हुआ दिखाई तक नहीं पड़ रहा। बल्कि इन अखबारों के शीर्षक से लोकतांत्रिक-संवैधानिक संस्था के रूप में सुप्रीम कोर्ट के मजबूती से निष्पक्ष खड़े रहने की ध्वनि सुनाई देती है।

इसमें गलत कुछ भी नहीं है। लेकिन जिस अंतर को ऊपर के अनुच्छेदों में उभारने की कोशिश की गई है, उससे खबर और सूचना के बीच अंतर को समझा जा सकता है। और सूचना देने का काम तो सरकार का सूचना विभाग, विभिन्न पब्लिक रिलेशन कंपनियां व पीआर प्रोफेशनल्स करते रहते हैं। खबर देने का काम पत्रकारिता करती है। खबर बनती है सूचना में विभिन्न आयामों को जोड़ने से। खबर से यह पता चल पाता है कि देश-समाज व व्यक्ति पर सूचित की जा रही बातों का क्या असर पड़ सकता है। अपने अखबार में छपी प्रमुख ‘खबरों’ पर निगाह डालिये और देखिये उनमें से कितनी खबरें वास्तव में खबरें हैं?

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