कभी चखा है आपने ‘हिमालयन स्ट्रॉबेरी’ भमोर का स्वाद…
भमोर दिखने में लीची या स्ट्रॉबेरी की तरह होता है इसलिए इसको हिमालयन स्ट्रॉबेरी का नाम दिया गया है। वैसे तो भमोर संपूर्ण हिमालय क्षेत्र में 1000 से 3000 मी0 ऊॅचाई तक पाया जाता है।
भमोर दिखने में लीची या स्ट्रॉबेरी की तरह होता है इसलिए इसे ‘हिमालयन स्ट्रॉबेरी’ नाम से भी जानते हैं। भमोर पूरे हिमालय क्षेत्र में 1000 से 3000 मीटर की ऊॅचाई तक पाया जाता है। इसका आयुर्वेद में अत्यधिक महत्व है। इसमें मधुनाशिनी गुण भी पाये जाते हैं। इसके फल में अतिसार रोगों के निवारण के साथ-साथ लीवर तथा किडनी के लिए काफी फायदेमंद भी है। तो चलिये आपको लिये चलते हैं आज इतने सारे गुणों से भरपूर, ताज़ा ताज़ा भमोर के फलों के बागीचे गढ़वाल हिमालय में…
लोकेन्द्र सिंह बिष्ट
आज आपको लिए चलते हैं ताज़ा-ताज़ा भमोर के फलों के बागीचे गढ़वाल हिमालय में। जी हां, उत्तराखण्ड हिमालय तथा संपूर्ण हिमालय क्षेत्र अपनी नैसर्गिक जैव विविधता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। हिमालय क्षेत्र में असंख्य औषधीय गुणों, आयुर्वेदिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा उत्तराखंड की आर्थिकी में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता वाले असंख्य पौधे पाये जाते हैं। हिमालय क्षेत्रों में पाये जाने वाले 8000 पुष्पीय पौधों की प्रजातियों में से लगभग 4000 प्रजातियां केवल गढवाल हिमालय क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण पौधा भमोर है जिसका वैज्ञानिक नाम Cornus Capitata है।
सामान्यतः भमोरे का फल खाने को नसीब नहीं होता है क्योंकि इसके बृक्ष/जंगल बहुतायत में नहीं मिलते हैं। जहां होते भी हैं तो न के बराबर। ऊपर से ये भमोर इंसान के अलावा खतरनाक जंगली भालू का लोकप्रिय फल/भोजन भी है। काफल की तरह भमोर बहुतायत में नहीं मिलता है, जहां मिलता है, वहां भालू का डर बना रहता है। इसी के चलते भालू द्वारा इंसान पर हमला करने की कई घटनाओं का जिक्र होता रहता है।
आजकल यानी नवंबर दिसंबर में ग्रामीण महिलाएं जंगलों से घास एकत्रित करने का काम करती हैं क्योंकि शीतकाल के लिए मवेशियों के लिए भी चारा एकत्रित करना होता है। इसी दौरान जंगल भी भमोर के फलों से लकदक रहते हैं। जंगलों में घास लेने गयी माताएं व बहनें (घसियारी) ही इसको एकत्रित कर ले आती हैं, या फिर ग्रामीण बच्चे व चरवाहों द्वारा आज भी जंगलों में इसके फल को एकत्रित किया जाता है।
पहले काफल, भमोर, तमले, हिंसर, किंगोड़ आदि जंगली फलों को ग्रामीण एकत्रित कर बड़े चाव से खाते थे। लेकिन जब से ग्रामीण क्षेत्रों, जंगलों से सड़कें और खासकर यात्रा मार्ग गुजरने लगे तो स्थानीय ग्रामीण बच्चे इन प्राकृतिक जंगली फलों को जंगलों से एकत्रित कर सड़कों पर गुजरने वाले पर्यटकों, तीर्थयात्रियों को बेचने लगे। पहले सड़कों पर बच्चे काफल बेचते मिल जाया करते थे लेकिन अब भमोर बेचते हुए भी मिल जाते हैं।
मैं जब भी ग्रामीण बच्चों को काफल बेचते या भमोर बेचते बच्चों को देखता हूँ तो मैं उसने बाते करता हूँ, पूछताछ करता हूं तो बच्चों का एक ही जवाब होता है कि पढ़ाई के साथ साथ वे इस काम को करते हैं। जिनसे उन्हें थोड़ा पैसा मिल जाता है जिससे उनकी किताब, कपड़े आ जाते हैं। जंगलों से पेड़ों से काफल व भमोर तोड़कर लाना भी कोई आसान कार्य नहीं है। इस कार्य में कई जोखिम भी हैं।
मैं बच्चों से काफल और भमोर अवश्य खरीदता हूँ। मुझे अपने गांव की दुष्वारियों का बखूबी ज्ञान है। आप सबसे भी यही निवेदन है कि जब कभी आपको सड़क किनारे काफल या भमोर बेचते बच्चे मिलें तो अवश्य खरीदें।
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भमोर दिखने में लीची या स्ट्रॉबेरी की तरह होता है इसलिए इसको हिमालयन स्ट्रॉबेरी का नाम दिया गया है। वैसे तो भमोर संपूर्ण हिमालय क्षेत्र में 1000 से 3000 मी0 ऊॅचाई तक पाया जाता है।
मैंने आज से 8 वर्ष पूर्व इसके एक पौधे का रोपण अपने खेत में उत्तरकाशी में (पोस्ट ऑफिस के समीप) किया। मुझे लगा कि एक ही पौधे के होने से परागकण पोलीनेशन न होने से इसमें शायद फल न आये। लेकिन खुशी की बात ये है कि इस बृक्ष ने वर्ष 2020 में कुछ फल दिये।
हिमालय क्षेत्रों में भमोर सितम्बर से नवम्बर के मध्य पकता है तथा पकने के बाद इसका फल स्ट्रॉबेरी की तरह लाल हो जाता है जो पौष्टिक तथा औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होता है। इसका स्वाद कसैला होता है। अमरूद की ही तरह इसमे गुद्दा व बीज होते हैं।
भमोर का आयुर्वेद में अत्यधिक महत्व है। इसमें मधुनाशिनी गुण भी पाये जाते हैं। इसके फल में अतिसार रोगों के निवारण के साथ-साथ लीवर तथा किडनी के लिए काफी फायदेमंद भी है।
मेरा सुझाव है कि उत्तराखण्ड के जंगलों में प्राकृतिक रूप से फैलने फूलने व उगने वाले जंगली फलों भमोर, काफल, हिंसर, किनकोड़, लिंगड़ा, तिमला तथा दूसरे फलों तथा अन्य पोष्टिक एवं औषधीय रूप से महत्वपूर्ण जंगली फलों का सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर संरक्षण के साथ स्थानीय लोगों को प्रोत्साहन देकर ये जंगली फल फूल उत्तराखंड की आर्थिकी में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
(लेखक उत्तरकाशी, उत्तराखंड में पत्रकार हैं और बीजेपी से जुड़े हैं)
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