51 शक्तिपीठों में एक है हिमाचल प्रदेश का चामुण्डा देवी मंदिर, यहां गिरे थे माता सती के चरण

मां चामुण्डा देवी मंदिर

माता चामुण्डा देवी के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ यूं तो साल भर यहां रहती है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में माता के दर्शन का खास महत्व है.

— सुषमाश्री

देवभूमि नाम से अपनी पहचान बना चुके हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर हैं. कांगड़ा जिले का चामुण्डा देवी मंदिर उनमें से प्रमुख है. समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक हिमाचल प्रदेश का यह प्रसिद्ध चामुण्डा देवी मंदिर.

उत्तर भारत की नौ देवियों में चामुण्डा देवी को दूसरा स्थान प्राप्त है. इसलिए इसे दूसरा दर्शन भी कहते हैं. जम्मू के कटरा स्थित माँ वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी आदि शामिल हैं.

कहते हैं कि यहां आकर श्रद्धालु अपनी भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं. इसके बाद यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. देश के कोने-कोने से भक्त यहां आकर माता का आशीर्वाद लेते हैं.

चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यतया मां काली को समर्पित है. माता काली शक्ति और संहार की देवी हैं. जब-जब धरती पर कोई संकट आया है, तब-तब माता ने दानवों का संहार किया है. असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण ही माता का नाम चामुण्डा पड़ा.

यह वही स्थल है जहां राक्षस चंड-मुंड देवी दुर्गा से युद्ध करने आए और काली रूप धारण कर देवी ने उनका वध किया. अंबिका की भृकुटी से प्रादुर्भूत काली ने जब चंड-मुंड के सिर को उपहार स्वरूप भेंट किया तो अम्बा ने वर दिया कि तुम संसार में चामुण्डा नाम से प्रसिद्ध हो.

मान्यता है कि यहां भगवान भूतनाथ आशुतोष शिव शंकर मृत्यु शव विसर्जन और विनाश का रूप लिए साक्षात चामुण्डा माता के साथ विराजमान हैं.

पुराणिक कथा

पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ हैं, जिनमें से सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है. ये सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुए हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलों पर देवी के अंग गिरे थे. शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे. यह बात माता सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं. यज्ञ स्‍थल पर शिव का काफी अपमान किया गया, जिसे सती सहन न कर सकीं और हवन कुण्ड में कुद गईं. जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे. जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया.

पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बांट दिया, जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया.

चामुण्डा देवी मंदिर बड़ा लंबा और दो मंजिला है, जिसमें प्रथम तल पर ही मां का भव्य मंदिर विराजमान है. मंदिर में एक बड़ा हाल है, जहां भक्त कतार में मां के दर्शन करते हैं.

कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, चरणों का कुछ अंश गिरने से चिंतपुर्णी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी, नैनीताल में नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये. मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे.

मंदिर प्रांगण

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है चामुण्डा देवी का मंदिर. चामुण्डा देवी मंदिर बंकर नदी के किनारे बसा है. मंदिर बड़ा लंबा और दो मंजिला है, जिसमें प्रथम तल पर ही मां का भव्य मंदिर विराजमान है. मंदिर में एक बड़ा हाल है, जहां भक्त कतार में मां के दर्शन करते हैं. मूर्ति के ऊपर एक छोटा शिखर है और शेष छत सपाट है. मुख्य मंदिर के पीछे गहरी गुफा में एक शंकर मंदिर है, जिसमें एक बार में केवल एक ही भक्त प्रवेश कर पाता है. मंदिर प्रांगण के आसपास इसके अलावा कई छोटे-बड़े मंदिर विभिन्न देवी-देवताओं के साथ अवस्थित हैं, ये सभी मंदिर दर्शनीय हैं.

नीचे की मंजिल में श्रद्धालु स्नान आदि करके आते हैं. प्रसाद मंदिर द्वारा ही विक्रय किया जाता है, जो शुद्ध होता है और कई दिनों तक ठीक बना रहता है. संजय घाट नव निर्मित घाट है, जिसमें वाणगंगा को नियंत्रित करके स्नान योग्य बनाया गया है, जहां श्रद्धालु सुगमता से स्नान आदि कर सकते हैं.

यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. कहते हैं कि यहां श्रद्धालु कई दिनों तक रुक सकते हैं. साथ ही यात्रा का भरपूर लाभ उठा सकते हैं. पर्यटकों के लिए यह एक पिकनिक स्पॉट भी है.

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