आरोग्य और स्वास्थ्य अस्पताल में नहीं मिलता, बल्कि वह हमारे पास और हमारे हाथ में है

विचारों को आश्रमों में कैद नहीं किया जा सकता: जस्टिस धर्माधिकारी

शाहजहांपुर 20 अगस्त। विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता। इसे आश्रमों में कैद नहीं किया जा सकता। इसका प्रवाह निरंतर बना रहना चहिए। आरोग्य और स्वास्थ्य अस्पताल में नहीं मिलता, बल्कि वह हमारे पास और हमारे हाथ में है। प्रकृति के निकट जाकर हम श्रेष्ठ स्वास्थ्य हासिल कर सकते हैं। आंतरिक समाधान होना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है।
यह बात जस्टिस सत्यरंजन धर्माधिकारी ने विनोबा जी की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही। श्री धर्माधिकारी ने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमें आत्मनिर्भर होना अत्यंत जरूरी है। अस्पताल-मुक्ति का प्रयत्न करना चाहिए। ग्रामशक्ति को जाग्रत कर इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उन्हें अभावों के बारे में न बताकर उनके पास उपलब्ध प्राकृतिक वातावरण की वैज्ञानिक जानकारी देनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि विनोबा जी अदालत मुक्ति का नारा दिया था। विनोबा जी ने अपनी पदयात्रा के दौरान इस बात को समझा था कि देश में सर्वाधिक विवाद संपत्ति को लेकर हैं। इसलिए उन्होंने मालकियत विसर्जन और अदालत मुक्ति की बात रखी। श्री धर्माधिकारी ने औरंगाबाद के पास के गांव की जानकारी देते हुए बताया कि वहां के ग्रामीण अपने विवादों को अपने गांव में ही हल करते हैं। वे तटस्थ रहकर समस्याओं का समाधान करते हैं। उन्होंने मराठी की कहावत कही कि बुद्धिमान मनुष्य कभी अदालत की सीढ़ी नहीं चढ़ता।

जस्टिस धर्माधिकारी ने आपातकाल में हुए संविधान संशोधन की चर्चा करते हुए कहा कि उसमें लिखा है सामूहिक प्रयत्नों का उपयोग देश को उन्नति की राह पर ले जाने के लिए करें। व्यक्तिगत प्रयत्नों को समूह में बदल कर देशसेवा करना कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि इस देश में गांधी-विनोबा के विचारों की नींव बहुत मजबूत है। इनके विचारों को समाप्त करने की कोशिश करने वाले गलतफहमी में हैं।

विनोबा जी के पास माता का हृदय था, इसलिए वे अपने जीवन में इतना अधिक लोकसंग्रह कर सके। द्वितीय वक्ता युनिवर्सिटी आॅफ टोरंटो में अध्यापन कार्य में संलग्न श्रीमती रीवा जोशी ने विनोबा जी के शिक्षा संबंधी विचारों की व्याख्या करते हुए कहा कि भारत ने अंग्रेजों के जमाने की शिक्षा को आजादी के बाद भी जारी रखा। इसने समाज में बहुत समस्याएं पैद की हैं। इसने समाज में अनेक प्रकार की विषमताएं पैदा की हैं। आज व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र को अच्छी आजीविका के रूप में देख रहा है। इससे शिक्षा अपने मूल उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रही है।

उन्होंने कहा कि अच्छी शिक्षा का मतलब अच्छे रोजगार को पाने तक सीमित हो गया है। शिक्षा में दिल, रचनात्मकता और समुदाय का पोषण करने का गुण होना चाहिए। शिक्षा समाज परिवर्तन का महत्वपूर्ण माध्यम है और उसे जीवन से जुड़ा होना चाहिए। संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।

डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे

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