तस्मै श्री गुरवे नमः

श्रीगुरु पूर्णिमा पर विशेष

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज 

        अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया 

       चाक्षरुन्मीलितम येन तस्मै गुरवे नमः 

     जिस गुरु ने ज्ञान रूपी शलाका द्वारा अज्ञानरूपी अंधकार से अंधे हुए शिष्य के चक्षु खोल डाले हैं उन सदगुरु महाराज को मेरा नमस्कार है। 

सभी मानव मात्र में शक्ति सोइ हुई रहती है ,जिसे समर्थ गुरु ही जगाता है। यह हमारा विश्वास ही नहीं वरन शास्वत नियम है। गुरु पूर्णिमा पर एक सनातन परंपरा रही है ,सदगुरु के पास अपने गुरुकुल में शक्तिपात के द्वारा साधक चेतना प्राप्त करता है। शक्तिपात की अनुभूति तभी होती है जब साधक में श्रद्धा विश्वास और निष्ठां हो तथा उसे गुरु का अनुग्रह प्राप्त हो। शिष्य के सम्बन्ध में कहा गया है –मन्त्र पूजा रहस्यानि यो गोपयति सर्वदा ,अर्थात शिष्य को मन्त्र पूजा एवं रहस्य को गोपनीय रखना चाहिए। गुरु के सम्बन्ध में कहा गया की गुरु को सभी आगमों शास्त्रों के तत्वों एवं अर्थ को जानना चाहिए ,उनका वचन अमोघ होना चाहिए ,वह शांत मन वाला हो। उन्हें वेद वेदार्थ में पारंगत होना चाहिए ,वे योगमार्गगामी हों और उन्हें देवता के  समान कल्याणकारी होना चाहिए। ऐसे गुरु के चरणों को शिष्य अपने सिर पर रखता है और अपना शरीर ,धन और जीवन गुरु को समर्पित कर देता है। शास्त्रों में कहा गया है —

    यो गुरुः स शिवः प्रोक्तो यः शिवः स गुरुः स्मृतः 

   यथा शिव तथा विद्या यथा विद्या तथा गुरुः 

  शिव विद्यागुरोस्तस्माद भक्त्या च सदृश्यम फलम 

अर्थात गुरु शिव के समान है तथा गुरुभक्ति और शिवभक्ति के फल सामान होते हैं। 

    हमारे समाज की संजीविनी शक्ति गुरुपरम्परा रही है। अगस्त्य ,परशुराम ,वशिष्ठ ,विश्वामित्र ,बाल्मीकि ,भारद्वाज से लेकर शंकराचार्य ,रामानुजाचार्य ,मध्वाचार्य ,कबीर ,रामानंद। चैत्यन्य महाप्रभु ,रामकृष्ण परमहंस ,विवेकानंद ,दयानन्द ,रामतीर्थ आचार्य श्रीराम शर्मा जैसे अनेक महामानव गुरु के रूप में मानव को चेतनशील बनाये रखने के लिए अवतरित होते रहे हैं जिनके  विचार और अनुग्रह से ही मानवता का अस्तित्व है। 

  आदि गुरु अवधूत दत्तात्रेय का मत है की साधक का विशेष गुरु उसकी आत्मा ही होती है। आत्मा ही देह और इन्द्रियों को प्रकाश देता है। आत्मा का स्वरूप सत्य ,शांत ,शाश्वत ,अविनाशी और निर्विकार है —

     आत्मानो गुरुरात्मैव पुरुषस्य विशेषतः 

    यत्प्रत्यक्षनुमानाभ्यां श्रेयोसावनविन्दते 

अर्थात पुरुष का विशेषरूप से गुरु अपनी आत्मा ही है। आत्मा के ज्ञान से आत्मा के निर्देश से ही पुरुष अपना पुरुषार्थ प्राप्त कर सकता है। जैसे जैसे आत्मबोध बढ़ता है आत्मज्ञान प्राप्त होता है। 

    सामान्य जीवन में व्यक्ति के भीतर अन्तर्निहित चेतना को विद्यालय और विश्वविद्यालय गुरु के माध्यम में आत्मबोध जागृत करके ही करते हैं। उच्च शिक्षित व्यक्ति बड़े गर्व से अपने विश्वविद्यालय का उल्लेख करते हैं। करउँ कृपा गुरुदेव की नाई –अर्थात गुरुदेव की कृपा में कोई संशय नहीं होता। 

  गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सभी गुरुजनो को कोटि कोटि नमन।

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