ग्रेटा थनबर्ग बोलीं, COP26 शिखर सम्मेलन फेल
ग्रेटा थनबर्ग ने इस सम्मेलन को वैश्विक नेताओं का दिखावा बताया
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पर्यावरण व जलवायु संकट कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने पिछले एक हफ्ते से ग्रेट ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित COP26 शिखर सम्मेलन को फेल बताया. उन्होंने खुले मंच से लोगों को संबोधित करते हुए इसे वैश्विक नेताओं का दिखावा बताया.
मीडिया स्वराज डेस्क
छोटी सी उम्र में ही दुनिया भर में पर्यावरण और जलवायु संकट कार्यकर्ता के रूप में अपनी खास पहचान बना चुकीं स्वीडन की 18 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग ने ग्रेट ब्रिटेन के ग्लासगो में अयोजित संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता को विफल करार दिया है. ग्रेटा थनबर्ग ने बड़े स्तर पर लोगों को संबोधित करते हुए विश्व के नेताओं पर नियमों में जानबूझ कर खामियां छोड़ने का आरोप लगाया. शिखर सम्मेलन स्थल के बाहर एक रैली में थनबर्ग ने गैर बाध्यकारी संकल्पों के बजाय प्रदूषण करने वालों पर नकेल कसने के लिए सख्त नियमों का आह्वान किया.
अपने भाषण में ग्रेटा थनबर्ग ने कहा कि विश्व के नेता साफतौर पर सच्चाई से डरते हैं. वे कितनी भी कोशिश कर लें, पर इससे बच नहीं सकते. वे वैज्ञानिक सहमति को नजरअंदाज भी नहीं कर सकते और सबसे बढ़कर हमें या लोगों को अनदेखा भी नहीं कर सकते, खासकर तब जब हममें उनके अपने बच्चे भी शामिल हैं.
ग्रेटा ने कहा कि विश्व नेताओं के लिए यह सम्मेलन एक ऐसा मंच बन गया है, जहां वे इस बात का दिखावा कर सकें कि वे जलवायु परिवर्तन के लिए कार्रवाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘वास्तव में जो हमारी जरूरत है, उससे हम काफी दूर हैं, मुझे लगता है कि यदि लोग इस COP की असफलता को महसूस कर लें, तो वही इनकी सफलता होगी.’
ग्लासगो में न्यूयार्क टाइम्स क्लाइमेट हब के मंच पर गुरुवार को पैनल इवेंट में ग्रेटा व वेनेसा नकाटे (Vanessa Nakate) और मलाला युसुफजई (Malala Yousafzai) समेत कई अन्य महिलाएं शामिल हुई थीं.
बता दें कि स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर चल रहे संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में विरोध करने का फैसला कर लिया है. इसके लिए आह्वान करते हुए उन्होंने ट्वीट भी किया था.
ग्रेटा थनबर्ग ने लिखा, ‘समय समाप्त हो रहा है. COP26 जैसे सम्मेलनों से परिवर्तन तब तक नहीं आएगा, जब तक कि इन पर बाहर से कोई बड़ा सार्वजनिक दबाव न हो. इस शुक्रवार (केल्विंग्रोव पार्क 11 पूर्वाह्न) और शनिवार (11.30 बजे) को जलवायु मार्च हड़ताल में शामिल हों और अपनी आवाज बुलंद करें. हम साथ हैं तो मजबूत हैं.’
इस खबर के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया ने ग्लासगो में वैश्विक प्रयासों में कोई वास्तविक योगदान नहीं दिया. विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ऑस्ट्रेलिया एकमात्र ऐसा देश है, जिसने इस दशक में उत्सर्जन की कटौती का कोई नया लक्ष्य तय नहीं किया गया है. ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब और रूस की तरह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम उठाने से बचता दिख रहा है.
वहीं, अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी का कहना है कि शिखर सम्मेलन में अमेरिका ने रूसी अधिकारियों के साथ मिथेन गैस से हो रहे प्रदूषण को कम करने पर बातचीत की. बता दें कि मिथेन एक बेहद हानिकारक गैस है, जो जलवायु को नुकसान पहुंचाती है. साथ ही, इस बारे में भी चर्चा की कि हम एकजुट होकर मिथेन से कैसे निपट सकते हैं.
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