कोरोना से बचाव में गंगाजल की अद्भुत बैक्टेरियोफास क्षमता का उपयोग हो 

 

प्रोफ़ेसर यू के चौधरी बनारस में राम दत्त त्रिपाठी के साथ गंगा का निरीक्षण करते हुए

प्रोफ़ेसर यू के चौधरी , वाराणसी

*हे भोलेनाथ !

 गंगाजल Ganga water का बैक्टेरियोफास bacteriophages  क्या गोमुख का जैनेटिक कैरेक्टर है ? और यह क्या कोरोना वायरस जैसे कितने ही वायरसों का निदान है ? अभी भारत में कोरोना वायरस  के फैलाव की गति को गंगाजल के बैक्टेरियोफास bacteriophages  का उपयोग कर गंगा पर बने  dams डैम्स और बैरेजेज barrages के जरिये कैसे किया जा सकता है ?

 इन प्रश्नों का , हे दया सागर आप जवाब देनें की कृपा कीजिए :*

*भगवान , भोलेनाथ कहते हैं , सुनों :

*गंगा  की विभिन्न शक्तियों में एक उसके जल में रोग-संक्रमण-वायरस को समूल  नष्ट करने की विशेष क्षमता का होना है । यह क्षमता कोरोना वायरस के अतिरिक्त अन्य वायरसों को भी मारने की हो सकती है. 

(The Ganga water contains a significantly higher proportion of bacteriophages – a kind of virus that kill bacteria. Our ancient scriptures like Vedas, Puranas and Upanishads say that Ganga jal is medicinal water. Scientists later found that Ganga water has bacteriophages capable of killing pathogens.)

इसलिये गंगा की इस शक्ति का उद्गम  कैसे है और इसे कैसे संरक्षित किया जाना चाहिए , जानने की आवश्यकता देशवासियों को है । इसे समझने के लिये हिमालय स्थित कुछ नदियों के उद्गम  स्थान के मात्र जल-रंग के विषय में  सोचने की आवश्यकता है कि ये अलग-अलग क्यों हैं ? 

हिमालय पर  नदियों के उद्गम  स्थल विभिन्न ऊँचाइयों पर हैं । इन स्थानों के चट्टानों की संरचनायें   तथा ढाल अलग-अलग हैं और हरेक नदी के जल-रंग में भिन्नता है । यह गुण परिलक्षित करता है  कि नदियों के भूजलीय स्रोत विभिन्न गहराइयों के अलग अलग हैं । यह और भी परिभाषित करता है कि नदियों के उद्गम स्थल की ऊँचाई और भूतलीय जल में  सम्बन्ध है ।

यही कारण है कि गंगा की  उद्गम -स्थली ^गोमुख^ से धवल-श्वेत-गंगाजल  Ganga Water white colour का रंग है । और यमुना जी के उद्गम स्थली पर जल का रंग नीला blue  है और सोन-नदी के उद्गम  स्थली पर जल भूरे brown रंग का है ।

ये जल रंग इनके जन्मजात , जेनेटिक कैरेक्टर्स , हैं। ये अन्य कितने ही गुणों की व्याख्या उसी तरह करते हैं  जिस तरह नवजात शिशु के शरीर का जन्मजात रंग उसके विशेष क्रोमोजोम्स को एवं अन्य गुणों को । अतः नदी उद्गम  का जल-रंग नदी हृदय के विशिष्ट  गुण की व्याख्या  करता है । हिमालय के इन तीन नदी उद्गम  के जल रंग  विभिन्न ऊँचाइयों पर अगल-बगल की नदियों के हैं

। इनके जल के अन्य चारित्रिक गुणों के अन्तर में गंगाजल में बैक्टेरियोफास का होना गंगाजल का महानतम दुर्लभ चरित्र है । यह चरित्र स्थान विशेष पर पर्वतीय ऊँचाई से आधारित भूतलीय जल गुण हैं । अतः गंगाजल का बैक्टेरियोफास गंगा के उद्गम  स्थल का चारित्रिक गुण है । इसका गंगा की धारा में संतुलित प्रवाह गंगा की विशेष औषधीय शक्ति है ।इससे वायु जल और मृदा के द्वारा कोरोना वायरस का फैलाव नियंत्रित होगा । वातावरण रोग मुक्त होगा ।

इस जल को डैम्स के जलाशयों से और बैरेजेज से  बैक्टेरियोफास का क्या सम्बंध  कैसे  है इन्हें समझने की आवश्यकता है ? और यह भी  आवश्यक है कि इन्हें कैसे व्यवस्थित कर  देश को कोरोना वायरस जैसे समस्त आपदाओं से  संरक्षित रखा जा सके ।

गोमुख से निकलने वाले औषधीय गुण वाले गंगा जल पर बंगाल के गंगा सागर तक सबका हक़ है. लेकिन टिहरी बांध बिजली बनाने, सिंचाई और दिल्ली को पेय जल सप्लाई के लिए में गंगा जी को रोक लिया जाता है. नरोरा बांध के बाद गंगा जी में नाम मात्र हिमालय का जल जाता है और फिर आगे विषैला औद्योगिक कचरा तथा शहरी माल जल डाल कर प्रदूषित कर दिया जाता है जिससे गंगा जल की रोग नाशक क्षमता घाट जाती है. चित्र लोकेंद्र सिंह बिष्ट

इसके लिये अभी आवश्यक है कि गंगा पर जितने भी डैम्स और बैरेजेज हैं उनके गेट को उतना उठाया जाये  अर्थात् ओपन किया जाये  जितना से गंगा की मुख्यधारा में अभी के गोमुख प्रवाह के बराबर जल की वृद्धि  हो जाये  । यही है उद्गम  स्थान के  बराबर नदी में न्यूनतम जल के प्रवाह को बनाये रखना । इस सिद्धांत के  गंगा के बढ़े डिस्चार्ज में बैक्टेरियोफास का घनत्व बढ़ेगा , जल वेग बढ़ेगा , इनसे वातावरण ज्यादा स्वस्थ्य होगा और आमूल रूप से कोरोना वायरस का फैलाव  रूकेगा । इस तरह वर्तमान के समस्त डैम्स और बैरेजेज को यथास्थिति में रखते हुए इसके कार्य पद्धति को बदलकर कोरोना वायरस को वर्तमान में परास्त किया जा सकता है । इस समस्या के उपरांत बैक्टेरियोफास को संरक्षित करने के लिये स्थायी तकनीक से औपरेशनल सिस्टम को बदलते हुए गंगाजल , मात्र पेय-जल,  मेडिसिन है , इसे सत्यापित करते रह सकोगे.

जय भोलेनाथ

(Prof. U K Chaudhary is an eminent river engineer and former professor of civil engineering at IIT in the Banaras Hindu University (BHU). He is also founder of Ganga Research Lab in BHU.) 

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