गांधी और आर एस एस – एक नयी व्याख्या

गॉंधी और आरएसएस – दोनों की विचारधारा परस्पर विरोधी मानी जाती रही है . लेकिन आश्चर्यजनक रूप से राम नारायण सिंह अपनी इस संक्षिप्त टिप्पणी में दोनों को समय की ज़रूरत बता रहे हैं . 

लिबरल और कन्सर्वटिव का बहुत पुराना संवाद होता आया है। कल गाँधीवादी रूढ़िवादी थे आज प्रगतिशील। टैगोर और गाँधी का पत्राचार प्रसिद्ध  है। तब गाँधी इस बात के हिमायती थे कि सभी विचारो को आने दीजिए पर पैर ज़मीन पर टिकाए रखिये। 

चंद्र्शेखर ने लोक सभा में भी कहा था कि उन्हें हिंदू होने का गर्व है।

 प्रभाष जोशी को हिंदुत्व के इस्लामीकरण की बहुत चिंता थी। उनके लिए हिंदुत्व का बहुलता वाद और उदारता ही उसकी पहचान भी है और ताक़त भी। 

इसे भी देखें : गांधी और राम

१९९५-९६ में संवाद प्रयास के एक चार दिवसीय कार्यक्रम में प्रभास जी के साथ भोडसी आश्रम में एक ही कमरे में रुकने का अवसर मिला था। उनके जन्म दिन पर लगभग हर वर्ष दिल्ली में आयोजित प्रभास प्रसंग में सामिल होने का अवसर मिल ही जाता है। पी साईनाथ से ले कर मुरली मनोहर जोशी के सारगर्भित व्याख्यान के साथ प्रभास जी का पसंद्दीदा कबीर भजन भी सुनने और धुर लिबरल से लेकर खाँटी संघी बुद्धिजीवियों से मेल मुलाक़ात भी हो जाती है। 

 विविधता को बचाए रखने की चिंता जितनी जायज़ है उतनी ही इस विविधता  वादी समाज के अस्तित्व को भी बचाए रखने की चिंता जायज़ है। हिंदुत्व का बहु देव वाद उसकी विविधता की गारंटी है। एको सद विप्रा बहुदा बदंति हिंदुत्व का मूल अधार है।लाख इस्लमिकरन के बाद भी इसे नहीं बदला जा सकता। धर्मांतरण की कोई व्यवस्था नहीं है। सबका आत्मसात् assimilation करने की व्यवस्था रही है।जातीय व्यवस्था ने अपने जीवन्त रूप में इस प्रक्रिया में महत्व पूर्ण भूमिका निभाया है। 

समाज शास्त्रियों के अलावा धर्म पाल को पढ़ना हिंदुस्तान को समझने की कुंजी हो सकती है। धर्म पाल के शिष्य राजीव दीक्षित से ले कर राजेंद्र सिंह जल पुरुष को लोंगो ने सुना होगा । कर्नाटक में उन्ही के एक शिष्य शुलेविले चक्रवर्ती को वहाँ के लोग विभिन्न हिस्सों में सम्मान से सुनते हैं। 

धर्म पाल मूलतः गाँधी वादी इतिहासकार थे। कॉंधला  मेरठ के मूल निवासी,ब्रिटिश आर्कायव्ज़ में २० वर्षों तक भारत के पहचान चिन्हों को तलाशने वाले अद्भुत अध्येता। वर्धा में शरीर छोड़ा। प्रभाष जोशी से लेकर मोहन भागवत तक उनके मुरीद। धर्म पाल जी के सानिध्य का अवसर कई बार मुझे भी मिला। 

कृपया इसे भी देखें : गांधी को संग्रहालयों से बाहर निकालो राम दत्त त्रिपाठी का भाषण

बहुलता वादी हिंदू समाज एक हज़ार सालों से सेमैटिक समाज के घात प्रति घात को झेल रहा है। मिश्र रोमा सब मिट गए। अपनी हस्ती बचाए रखने का संघर्ष सफलता पूर्वक करता आ रहा है। इस प्रक्रिया में कभी गाँधी को तारन हार बना कर पैदा करता है तो कभी आरएसएस को। दोनो अपने समय के कन्सर्वटिव होते हैं और एक नयी सिन्थिसस पैदा करते हैं। दोनो अपने समय की ज़रूरत होते हैं।

बहुलता वादी हिंदू समाज एक हज़ार सालों से सेमैटिक समाज के घात प्रति घात को झेल रहा है। मिश्र रोमा सब मिट गए। अपनी हस्ती बचाए रखने का संघर्ष सफलता पूर्वक करता आ रहा है। इस प्रक्रिया में कभी गाँधी को तारन हार बना कर पैदा करता है तो कभी आरएसएस को। दोनो अपने समय के कन्सर्वटिव होते हैं और एक नयी सिन्थिसस पैदा करते हैं। दोनो अपने समय की ज़रूरत होते हैं।

राम नारायण सिंह ,

राम नारायण सिंह

भूतपूर्व पुलिस महानिदेशक, 

उत्तर प्रदेश 

नोट : इस लेख पर आपकी टिप्पणी का स्वागत है . 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

13 + two =

Related Articles

Back to top button