गांधी : असमानता रामराज्य के लिए खतरा है

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी 

गाँधी का जन्म धार्मिक आस्था से पूर्ण परिवार में हुआ था। उनकी माँ धर्मनिष्ठ एवं साध्वी महिला थीं ,उनके पिता भी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वह कृष्णमंदिर और राममंदिर दोनों में जाते थे और अपने साथ गाँधी को भी ले जाते थे। उनके पिता का जैन आचार्यों से अच्छा संपर्क था ,उनके पारसी और मुसलमान मित्र भी थे। एक सहिष्णुता पूर्ण वातावरण में पलने से गांधी के मन में धर्म के प्रति जो आदर भाव उत्पन्न हुआ उसी से उनका साधनामय जीवन संस्कारित हुआ।

गीता के साथ बाइबिल और कुरान पढ़ते हुए भी वे हिन्दू धर्म को श्रेष्ठ मानते हुए कहते थे की हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता का कारण उसकी सहिष्णुता है। गाँधी की कल्पना का हिन्दू  धर्म केवल एक संकुचित संप्रदाय नहीं है वह एक सतत विकास का प्रतीक और काल की तरह सनातन है
धर्म के सम्बन्ध में गाँधी ने एक वैज्ञानिक दृष्टि दी। वे कहते थे –सारे धर्म सच्चे हैं पर सारे अपूर्ण भी हैं। सब धर्म ईश्वरदत्त हैं परन्तु मनुष्य कल्पित होने के कारण ,मनुष्य द्वारा उनका प्रचार होने के कारण वे अपूर्ण हैं। ईश्वर दत्त धर्म अगम्य है उसे भाषा में मनुष्य प्रकट करता है ,उसका अर्थ भी मनुष्य ही लगाता है। किसका अर्थ सही माना जाए ?

सब अपनी अपनी दृष्टि से उसे देखते हैं ,जब तक वह दृष्टि बनी है तब तक सब सच्चे हैं। उसके बाद दृष्टि पलटने पर पूरा झूठ होना भी असंभव नहीं। इसीलिए हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इससे अपने धर्म के प्रति उदासीनता नहीं आती वल्कि स्वधर्म विषयक प्रेम अँधा न होकर ज्ञानमय हो जाता है। समभाव के विकास से हम अपने धर्म को अधिक पहचान सकते हैं।

रम्भाबाई से लिया राम नाम का मंत्र

गाँधी ने अपने सनातन धर्म को भली प्रकार पहचाना और वही से उपवास ,उपासना ,रामनाम और प्रार्थना ग्रहण किया। गाँधी को रामनाम का मंत्र सर्वप्रथम उनकी नौकरानी रम्भाबाई से प्राप्त हुआ। उनका यह मन्त्र प्रारम्भ में भूत -प्रेत से निवृत्ति के लिए प्रयुक्त होता था। बाद में रामायण ,महाभारत पढ़ने से गाँधी को अवतारवाद का बोध हुआ ,वे राम और कृष्ण को ईश्वर के अवतार के रूप में मानने लगे। बाद में जब उन्हें ईश्वर के निराकार रूप की प्रतीति हुई तो वे यह समझने लगे की ईश्वर धर्म और नीति की स्थापना के लिए शरीर धारण करता है ,इससे गाँधी को ईश्वर के निर्गुण और सगुण रूप का सम्बन्ध ज्ञात हुआ।

कबीर के भाव –दशरथसुत तिहु लोक बखाना ,रामनाम का मरम न जाना से प्रभावित होकर गाँधी ने राम को ईश्वर का पर्याय माना। गाँधी ने राम को सर्वज्ञ माना और सभी प्राणियों में उसी राम के दर्शन किया -वही राम उन्हें ब्राह्मण और भंगी में दिखलाई पड़ते थे। यही कारन है की गाँधी की दृष्टि में ब्राह्मण और भंगी सामान रूप से बंदनीय रहे।

गाँधी जी के लिए राम सत्य के आदर्श थे। लक्ष्मण जब राम से पिता के चौदह वर्ष के वनवास से मुकरने के लिए कहा तो वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण को समझते हुए राम ने कहा —
धर्मो हि परमो लोके धर्मे सत्यम प्रतिष्ठितं। धर्मसंस्कृतमप्येतात पितुर्वचनमुत्तमम।
अर्थात संसार में धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है ,धर्म में ही सत्य की प्रतिष्ठा है पिता जी का यह वचन भी धर्म के आश्रित होने के कारण परम उत्तम है। गाँधी जी को धर्म और सत्य की यह बात ह्रदय में समा गई। नास्तिक ऋषि जाबालि को राम ने जो उत्तर दिया —
सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः ,सत्य मूलानि सर्वाणि सत्यान्नस्ति परंपदम
अर्थात संसार में सत्य ही ईश्वर है। धर्म भी सत्य पर आश्रित है। सत्य ही सब का मूल है। सत्य से बढ़कर इस जगत में दूसरा कुछ नहीं है। वालमीकि रामायण में राम का यह कथन गाँधी जी ने महामंत्र के रूप में अंगीकार किया।

राम ने जीवनपर्यन्त वचन का पालन किया –रघुकुल रीती सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई। गाँधी का जीवन व्रत का जीवन था जब कभी भी व्रत -च्युत की स्थिति आती थी गाँधी राम का सहारा लेते थे।

आजादी के संघर्ष के दौरान अपने व्रत के लिए गाँधी ने जितने भी उपवास किये ,राम के आस्था और विश्वास के बल पर। यह गाँधी के जीवन का अलौकिक नहीं लौकिक पक्ष रहा है। गाँधी जी ने अपनी  मृत्यु के एक दिन पूर्व 29 जनवरी को अपने एक नजदीकी से कहा कि  यदि मेरी मृत्यु किसी बीमारी चाहे एक मुहासे से ही क्यों न हो तुम घर की छत से चिल्लाकर कहना कि  मैं एक झूठा महात्मा था ,यहाँ तक कि  ऐसा कहने पर लोग तुम्हे कसमें खाने को कह सकते हैं ,तब मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।

दूसरी तरफ यदि कोई मुझे गोली मारे और मैं उस गोली को अपने खुले सीने पर बिना पीड़ा से कराहे ले लूं और मेरी जुबान पर राम का नाम हो तभी तुम्हे कहना चाहिए कि  मैं एक सच्चा महात्मा था।

गांधीजी को अपनी इच्छानुसार मृत्यु और बिना कराहे प्राण त्यागते हुए राम का उच्चारण एक सच्चे महात्मा का सबूत देता है। यह है गाँधी की रामभक्ति और राम के प्रति विश्वास।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् और उसके पहले भी गाँधी भारतीय जन जीवन की सुविधा का केंद्र मानकर जिस शासन व्यवस्था की स्थापना के आकांक्षी थे उसे उन्होंने रामराज्य के नाम से पुकारा।

इस शब्द को उन्होंने दो रूपों में परिभाषित किया ,एक उसका धार्मिक अभिप्राय जिसका अर्थ है पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य। दूसरा राजनीतिक  जिसका तात्पर्य है पूर्ण प्रजातंत्र।

ऐसे शासन व्यवस्था में गाँधी के अनुसार अमीरी गरीबी ,रंग और मत मतान्तर के आधार पर स्थापित असमानता नगण्य होगी। 26 फरवरी 1947 की प्रार्थना सभा में गाँधी ने स्पष्ट कहा की –कोई यह समझने की भूल न करे की रामराज्य का अर्थ है हिन्दुओं का शासन। मेरा राम ,खुदा या गॉड का दूसरा नाम है। मैं खुदाई राज चाहता हूँ जिसका अर्थ है पृथ्वी पर परमात्मा का राज्य

ऐसे शासन व्यवस्था में गाँधी के अनुसार अमीरी गरीबी ,रंग और मत मतान्तर के आधार पर स्थापित असमानता नगण्य होगी। 26 फरवरी 1947 की प्रार्थना सभा में गाँधी ने स्पष्ट कहा की –कोई यह समझने की भूल न करे की रामराज्य का अर्थ है हिन्दुओं का शासन। मेरा राम ,खुदा या गॉड का दूसरा नाम है। मैं खुदाई राज चाहता हूँ जिसका अर्थ है पृथ्वी पर परमात्मा का राज्य।

रामराज्य के लिए खतरा है असमानता

25 मई 1947 को एक इंटरव्यू में गाँधी जी ने आर्थिक असमानता को रामराज्य का खतरा बताते हुए कहा की समाजवाद की जड़ में आर्थिक असमानता है। थोड़े को करोड़ों और बाकी लोगों कोसूखी रोटी भी नहीं ऐसी भयानक असमानता में रामराज के दर्शन की आशा नहीं करनी चाहिए।

प्रश्नकर्ता ने तत्काल ही प्रश्न किया –गांधीजी आप तो कहते है की शासक ,जमींदार ,और पूंजीपति केवल संरक्षक -ट्रस्टी बनकर रहें ,क्या आप उन लोगों से उम्मीद करते हैं की वे अपनी प्रकृति बदल देंगे।

गांधी तुरंत उत्तर दिया –यदि ये लोग खुद संरक्षक नहीं बनाते तो समय उन्हें बनाएगा या फिर उनका नाश हो जाएगा। जब पंचायती राज सही अर्थों में बनेगा तो लोकमत सब कुछ कर सकेगा।

जमींदारी ,पूंजी अथवा राजसत्ता की ताकत तब तक ही कायम रहती है जब तक लोकमत को अपनी ताकत समझ में नहीं आती।
गाँधी का रामराज्य ,तुलसी ने परिभाषित किया था –दैहिक दैविक भौतिक तापा रामराज काहू नहि व्यापा।

वाल्मीकि ने रामराज के लिए कहा –आसन प्रजा धर्मपरा रामें शासति नानृता –जब राम शासन कर रहे थे तो लोग सदाचार में विश्वास करते थे ,बिना झूठ बोले जी रहे थे।

गाँधी के राम है –रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम। ईश्वर अल्ला तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान।

गाँधी के राम है –रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम। ईश्वर अल्ला तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान।

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.

20 − seven =

Related Articles

Back to top button