कबीर और गांधी के राम: धर्म से परे आत्मा, करुणा और न्याय का प्रतीक

संत कबीर और महात्मा गांधी ने ‘राम’ को किसी धार्मिक प्रतीक से आगे बढ़कर एक आत्मिक सत्य और नैतिक शक्ति के रूप में देखा। यह लेख उनकी राम-कल्पना की गहराई में ले चलता है।

राम भारतीय संस्कृति और चेतना का एक कालजयी प्रतीक हैं। किंतु हर युग में इस नाम का अर्थ बदलता रहा है। जहां एक ओर तुलसीदास और वाल्मीकि के राम धर्म और मर्यादा के प्रतीक हैं, वहीं संत कबीर और महात्मा गांधी के लिए ‘राम’ कोई एक पंथ या संप्रदाय से बंधे देवता नहीं, बल्कि अंतरात्मा की आवाजसत्य की अनुभूति और मानवता का आलोक हैं।

कबीर का राम: निराकार ब्रह्म

मध्यकाल के समाज में व्याप्त जातिवाद, पाखंड और कर्मकांड के विरुद्ध कबीर ने बगावत की। उनके भक्ति मार्ग में राम कोई मूर्तिवान भगवान नहीं, बल्कि निर्गुण ईश्वर हैं – जिसे केवल प्रेम, ध्यान और आत्म-साक्षात्कार से पाया जा सकता है।

“राम नाम का मर्म है न्यारा,

दशरथ का बेटा नहीं हमारा।”

राम–रहीम की एकता:

“राम रहीम एक हैं, नाम धराया दोय।

कहै कबीर सुनो भाई साधो, गुरु की बात न खोय॥”

कबीर ने धार्मिक भेदभाव को खारिज करते हुए कहा कि ईश्वर एक है, चाहे उसे कोई ‘राम’ कहे या ‘रहीम’।

गांधी का राम: सत्य और करुणा का पथ

महात्मा गांधी के राम किसी विशेष धर्म के नहीं थे। वे कहते थे – “मेरा राम वह शक्ति है जो सत्य, प्रेम और अहिंसा का प्रतिनिधित्व करता है।” उनके जीवन और संघर्ष की प्रेरणा रामनाम ही था।

रामराज्य की परिभाषा:

गांधी ने ‘रामराज्य’ को कोई धार्मिक शासन नहीं, बल्कि एक ऐसा समाज बताया जिसमें सभी नागरिकों को न्याय, बराबरी और सम्मान मिले।

“रामराज्य धर्म का राज्य है – सत्य, अहिंसा और न्याय का राज्य।”

उनका अंतिम शब्द “हे राम!” था – जो उनके आत्म-राम के साथ एक गहन संबंध को दर्शाता है।

कबीर और गांधी की एकरूपता:

पहलूकबीरगांधी
राम का स्वरूपनिराकार ब्रह्म, प्रेम का प्रतीकसत्य, अहिंसा और आत्मबल का स्रोत
पूजा-पद्धतिनामस्मरण और ध्याननैतिक आचरण और सेवा
धर्म दृष्टिराम-रहीम एकसर्वधर्म समभाव
समाज दृष्टिभीतर से मुक्तिसामाजिक न्याय और समानता

आज की प्रासंगिकता:

आज जब ‘राम’ को राजनीति, धार्मिक कट्टरता और संकीर्ण पहचान में बांधने का प्रयास हो रहा है, तब कबीर और गांधी की दृष्टि हमें एक नई राह दिखाती है। उनका राम विभाजन नहीं, समरसता लाता है। वह भीतर की शुद्धता, करुणा और सत्य का प्रतीक है – जो धर्म और जाति से परे है।

निष्कर्ष:

राम कोई मूर्ति नहीं, एक चेतना हैं। कबीर और गांधी दोनों ने अपने जीवन और विचारों से यह सिद्ध किया कि राम को पाने के लिए भक्ति से अधिक जरूरी है – सत्य, सेवा और प्रेम का आचरण।

आज के समाज को जरूरत है ऐसे राम की जो जोड़ता है, तोड़ता नहीं।

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