चीन भारत से लंबी अवधि का युद्ध कदापि नहीं लड़ सकता है
कहीं बिहार चुनाव जीतने का दांव तो नहीं ?
–पंकज प्रसून , वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली
आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा था। इस वर्ष के अंत में बिहार और अगले वर्ष की शुरुआत में बंगाल विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं और भाजपा की नैया डूबने का अहसास संघ और भाजपा दोनों को ही हो गया है।जिसकी दो मुख्य वजहें हैं– कोरोना से निपटने में भारत सरकार की विफलता और प्रवासी मजदूरों का देश के विभिन्न इलाकों से पलायन।न रेलगाड़ी,न बस। हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर, सरकार की बेरुखी और पुलिसिया शोषण झेलते हुए खस्ता हाल अपने गांव पहुंचना। लाखों की संख्या में पहुंचे उन मजदूरों को लाख समझाया जाये कि सरकार तुम्हारे लिये ये कर रही है, वह कर रही है–वे समझ नहीं सकते।उन पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का पुराना नुस्खा भी बेअसर है।वे बेशक गरीब हैं, शायद ही साक्षर हैं। लेकिन उनमें राजनीतिक समझदारी का बिल्कुल ही अभाव नहीं.
तो लगता है कि ब्रह्मास्त्र मिल गया। लद्दाख में। वहां की गलवन घाटी में। गलवन नदी जो अक्साई चिन से निकल कर लद्दाख की ओर बहती है और जो सिंधु की एक सहायक नदी है।इस नदी और घाटी की खोज सन्१८९९में गुलाम रसूल गलवन नामक कश्मीरी मूल के एक लद्दाखी ने की थी।
१६जून को मध्य युग की युद्ध शैली में लोहे की कील लगी नुकीली लाठियों और पत्थर से बिहार रेजीमेंट के एक कर्नल सहित बीस जवानों की मौत और सत्रह जवानों को चीनी सेना द्वारा घायल हो जाने के बाद राष्ट्रवाद की लहर बिहार और बंगाल में फैलायी जा रही है। ।बिहार रेजीमेंट की बहादुरी के समाचार भी दिये जा रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि बिहार के लोगों को उन पराक्रमी सैनिकों पर गर्व होना चाहिये।सारे देश में देशभक्ति की लहर दौड़ रही है। बिहारियों के बहादुर होने का विशेष उल्लेख किया जा रहा है।
पिछले वर्ष १४ फरवरी को पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर आत्मघाती बमबार ने बमबारी करके ४० सैनिकों को मार डाला था। उसकी जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आयी लेकिन देश भर में देशभक्ति की ऐसी लहर दौड़ी कि भाजपा लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल करके सरकार बना ली।इस बार बिहार और बंगाल विधानसभाओं के चुनाव के लिये चीन से लड़ाई जबर्दस्त मुद्दा बनायी जा रही है।
कितने आश्चर्य की बात है कि सीमा पर दो महीनों से उत्पन्न तनाव के माहौल में भी सैनिकों को बिना हथियार घूमने की इजाजत दी गयी। सीमा पर तनाव के माहौल में जब सभी सैनिकों को हथियारों के साथ सावधान रहना जरूरी होता है, तो फिर किन परिस्थितियों में बिहार रेजीमेंट के इन अभागे सैनिकों को खुले हाथ टहलने की आज्ञा किसने दी ? क्या वे सैनिक सीमा पर तनाव से अवगत नहीं थे ? या वे एक पर्यटक की हैसियत से बाजार घूमने निकले थे ? कर्नल रैंक के उच्च सैनिक अधिकारी से यह गलती तो हो ही नहीं सकती कि वह अपनी जान के साथ-साथ अपने सैंतीस सैनिकों की ज़िंदगी को भी खतरे में डाल दे।
नोटबंदी से शुरू हुई कारगुज़ारियों के अनगिनत कारनामों ने मोदी सरकार को हास्यास्पद और अविश्वसनीय तो बना ही दिया है। बेहाल अर्थव्यवस्था, घोटालों का अंतहीन सिलसिला, भ्रष्टाचार के नये आयाम, संविधान, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को अंगूठा दिखलाना, सारे संवैधानिक अधिकारों का एक व्यक्ति में सीमित होकर रह जाना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की बदहाली , कोरोनावायरस के संकट से उबरने में सरकार की घोर असफलता, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और मानवाधिकार के मामलों में दुनिया के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा देना, महिलाओं के लिये दुनिया का सबसे असुरक्षित देश घोषित होना, सांप्रदायिकता के दावानल को लगातार हवा देना, रक्षा ,गृह और विदेश मामलों में आजादी के बाद से अबतक का सबसे घटिया प्रदर्शन भाजपा और मोदी सरकार का सबसे बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है। ऐसे में चुनावी जीत की संभावना को कायम रखना उसके लिये सबसे बड़ी चुनौती है । लगता है इसीलिये इस चुनावी चुनौती को पार करने के लिए गलवन घाटी में सैनिकों की मौत और सत्रह सैनिकों के घायल होने की पटकथा लिखी गयी।
आर्थिक स्तर पर चीन के आगे आत्मसमर्पण करने वाले भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को चुनावी संकट से निजात दिलाने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का भी तो कुछ उत्तरदायित्व बनता है।शी चिनफिंग के सामने अपनी भी मजबूरी है।कोरोना के कारण सैकड़ों विदेशी कंपनियां वहां से अपने कारखाने हटा रही हैं। जिससे उसकी आर्थिक स्थिति ख़राब होती जा रही है। हौंगकौंग में चल रहा स्वतंत्रता आन्दोलन उनके लिये सिरदर्द बना हुआ है। जनता के आक्रोश से बचने के लिये सबसे अच्छा उपाय है कि युद्ध में उलझाकर उसका ध्यान हटा देना। इसलिये कम तीव्रता वाला युद्ध सबसे अच्छा तरीका है।
चीन भारत से लंबी अवधि का युद्ध कदापि नहीं लड़ सकता है। उसने गुजरात में हजारों करोड़ रुपयों का निवेश किया है। धोलेरा में ५०० एकड़ जमीन पर २१ हजार करोड़ रुपये की लागत से चीन की सबसे बड़ी इस्पात कंपनी छिंशान चार लाख मीट्रिक टन उत्पादन करने वाला संयंत्र स्थापित कर रही है। जिसका भूमि पूजन खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करने वाले हैं। चीन की ही कंपनी नानचिंग फूचन धोलेरा में ४०० करोड़ रुपये की लागत से मेट्रो कोच बनाने का कारखाना भी लगा रही है।
चीन भारत से लंबी अवधि का युद्ध कदापि नहीं लड़ सकता है। उसने गुजरात में हजारों करोड़ रुपयों का निवेश किया है। धोलेरा में ५०० एकड़ जमीन पर २१ हजार करोड़ रुपये की लागत से चीन की सबसे बड़ी इस्पात कंपनी छिंशान चार लाख मीट्रिक टन उत्पादन करने वाला संयंत्र स्थापित कर रही है। जिसका भूमि पूजन खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करने वाले हैं। चीन की ही कंपनी नानचिंग फूचन धोलेरा में ४०० करोड़ रुपये की लागत से मेट्रो कोच बनाने का कारखाना भी लगा रही है।
इसके अलावा पेटीएम,जोमेटो,ओला कैब सेवा,बायजू आदि कंपनियों में भी चीनी कंपनियों का निवेश है।भारत -चीन तनाव के दौरान ही १२जून को दिल्ली- मेरठ सेमी हाई रेल कोरिडोर तैयार करने का ११२५ करोड़ रुपये का ठेका चीन की शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी को दिया गया है। जबकि जनता से कहा जा रहा है कि वह चीन में बने सामानों का बायकॉट करें।देश आत्मनिर्भर बने।
जून २०१७ को शंघाई में चीन की सबसे बड़ी निजी कंपनियों में से एक ईस्ट होप कंपनी के साथ अडाणी समूह ने एक करार किया जिसके तहत वह गुजरात के मूंदड़ा स्थित विशेष आर्थिक क्षेत्र में ३० करोड़ डॉलर की लागत से सौर ऊर्जा से संबंधित मशीनरी, रसायन और पशुओं के लिये चारा उत्पादन करने का कारखाना लगायेगी।दिलचस्प बात यह है कि १७ जून को पेइचिंग स्थित एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक ने ७५ करोड़ डॉलर यानी ५७४ करोड़ रुपये का क़र्ज़ स्वीकृत किया। इस राशि को भारत के गरीबों की हालत सुधारने और स्वास्थ्य व्यवस्था दुरुस्त करने पर खर्च किया जायेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने १९ जून को सर्वदलीय बैठक में कहा कि ‘ न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है।’लद्दाख में हमारे 20 जांबाज शहीद हुए, लेकिन जिन्होंने भारत माता की तरफ आँख उठाकर देखा था, उन्हें वो सबक सिखाकर गये।’उसमें न तो कहीं ‘चीन’ शब्द आ रहा है। न तो यह पता चल रहा है कि 20 के बदले कितने को ‘सबक’ सिखाया गया। और अगर कोई हमारी सीमा में घुसा ही नहीं तो क्या हमारे सैनिकों को शहादत देने का पागलपन चढ़ा था।
इन बातों का जवाब चीफ औफ डीफेंस स्टाफ या सेनाध्यक्ष या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को देना चाहिये।न कि भाजपा के प्रवक्ताओं पर छोड़ देना चाहिये जो हर सवाल का एक ही जवाब देते हैं कि ऐसा पूछना देशद्रोह है।
अमरीका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यावसायिक साझीदार चीन है। यहां के मोबाइल बाजार पर उसी का कब्जा है। टेलीविजन सेट के बाजार पर ४५ प्रतिशत की हिस्सेदारी है। पिछले वर्ष भारत ने चीन को १६.३२ खरब डॉलर के सामानों का निर्यात किया और चीन से ६८ खरब डॉलर के सामानों का आयात किया था।दोनों देशों के बीच ३४८० किलोमीटर की सीमा है और जो कई जगहों पर विवादित है।
मोदी देश के एकमात्र प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अब तक चीन की कुल मिलाकर नौ बार यात्राएं की हैं। पांच बार प्रधानमंत्री के रूप में और चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में।