नोटबंदी के 5 साल: आर्थिक हालात आज भी दयनीय

नोटबंदी के पांच साल बाद देश की अर्थव्यवस्था बद से बदतर हालात में

नोटबंदी के 5 साल : नोटबंदी को आज 8 नवंबर 2021 को पांच साल पूरे हो गए हैं. हमारे देश में सरकार भी पांच साल में अपने काम का ब्यौरा जनता को न ​दिखा पाए तो बदल जाती है. हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि नोटबंदी के पांच साल बाद भी जब उससे देशवासियों को कोई लाभ न मिला तो उसके लिए जिम्मेदार मोदी सरकार के साथ देशवासी क्या करेंगे?

मी​डिया स्वराज डेस्क

नोटबंदी के 5 साल : 500 और 1000 रुपये के नोटों के बंद होने के पांच साल बाद आज भी देशवासी उसकी कीमत चुका रहे हैं. 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नोटबंदी का यह ऐलान छोटे व्यवसायियों के लिए मौत की घंटी साबित हुई, जो नकदी अर्थव्यवस्था पर ही निर्भर थे.

इसके बाद छोटे उद्योगों में सुधार के संकेत मिल ही रहे थे लेकिन सरकार द्वारा पारित जीएसटी ने उसकी कमर तोड़ दी. बाद के 11 तिमाहियों में मैन्यूफैक्चरिंग सेंटर दो अंकों की बढ़ोतरी हासिल नहीं कर सका, जोकि एक औद्योगिक क्षेत्र के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है.

आंकड़ों पर गौर करें तो साफ दिखता है कि कैसे नोटबंदी को लेकर केंद्र के दावे फेल साबित हुए? मसलन इन पांच सालों में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का ग्रोथ पांच फीसदी को भी नहीं छू सका. हालांकि इस साल महामारी में हालात और ज्यादा बदतर हो गए. इस साल की पहली तिमाही में सभी क्षेत्र में 49 फीसदी की बढोतरी तो दिखाई गई लेकिन इन रिपोर्टों के मुताबिक, ये अभी भी 2017 के स्तर पर ही बना हुआ है.

ऐसे में देश के लोगों की आय भी बुरी तरह प्रभावित हुई. 2016 के बाद से भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ एक फीसदी से थोड़ी ज्यादा बढ़ी है. जबकि सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है और इस दावे को सच साबित करने के लिए विज्ञापनों पर लाखों रुपये खर्च भी किये जा रहे हैं.

आंकडे बताते हैं कि देश में प्रतिव्यक्ति आय 2016 की तुलना में 5.2 फीसदी पर ही है, जो साफ दर्शाता है कि दावों के मुताबिक पांच साल बाद भी हमारी आय नहीं बढी. हालांकि अगर खाद्य पदार्थों में महंगाई के मुकाबले आय वृद्धि की बात करें तो इसकी तुलना में प्रति व्यक्ति आय ना के बराबर बढी है. इसके बाद बची खुची कसर महामारी ने निकाल दी.

केंद्र सरकार के खुद के आंकडे बताते हैं कि देश में प्रतिव्यक्ति आय 2016 की तुलना में 5.2 फीसदी पर ही है, जो साफ दर्शाता है कि दावों के मुताबिक पांच साल बाद भी हमारी आय नहीं बढी. हालांकि अगर खाद्य पदार्थों में महंगाई के मुकाबले आय वृद्धि की बात करें तो इसकी तुलना में प्रति व्यक्ति आय ना के बराबर बढी है. इसके बाद बची खुची कसर महामारी ने निकाल दी.

केंद्र के लॉकडाउन के जल्दबाजी के फैसले से इनकम और भी ज्यादा प्रभावित हुई. और प्रतिव्यक्ति आय खपत का असर भी 2017-2018 के स्तर पर ही बरकरार है. केंद्र ने नोटबंदी को देश में वित्तीय समस्याओं के लिए एक रामबाण बताया था. केंद्र का वादा था कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म होगा.

और केंद्र के लॉकडाउन के जल्दबाजी के फैसले से इनकम और भी ज्यादा प्रभावित हुई. और प्रतिव्यक्ति आय खपत का असर भी 2017-2018 के स्तर पर ही बरकरार है. केंद्र ने नोटबंदी को देश में वित्तीय समस्याओं के लिए एक रामबाण बताया था. केंद्र का वादा था कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म होगा.

काला धन का सर्कुलेशन बंद हो जाएगा. जाली नोटें बंद हो जाएंगी और इतना ही नहीं, सरकार का यह भी दावा था कि इससे आतंकवाद को नियंत्रण करने में भी मदद मिलेगी. इन सभी दावों में हम यह नहीं कह सकते कि सरकार ने अपनी इन उपलब्धियों को हासिल भी किया है.

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