संविधान पर शोध का अनूठा काम
राष्ट्रीय जन संगठन विकास संवाद ने लोकतंत्र में संसार का सबसे बड़ा संविधान किस तरह धड़क रहा है ,यह अध्ययन करने का अनूठा काम हाथ में लिया है ।हमारे आईन याने संविधान की भावना और भारतीय समाज के रिश्ते को रेखांकित करने के लिए विकास संवाद ने अपनी ओर से वकीलों और पत्रकारों के लिए एक फैलोशिप का ऐलान किया था ।
अपने तरह की देश में यह पहली फैलोशिप है । इसमें सैकड़ों आवेदकों ने अपने प्रस्ताव भेजे थे ।इनमें से पच्चीस तीस प्रतिभागियों को निकालना कोई आसान काम नही था । उनकी छंटनी के लिए संस्था ने जूरी का गठन किया । जूरी का एक सदस्य मैं भी था । मेरे अलावा जाने माने पत्रकार एन के सिंह, चंद्रकांत नायडू और उच्च न्यायालय की प्रसिद्ध अधिवक्ता सुश्री मंजीत छब्बल भी शामिल थीं ।
फेलोशिप के लिए पत्रकारों और अधिवक्ताओं के प्रस्तावों पर धुंआधार मंथन हुआ । एक एक आवेदक से सवाल जवाब अपने आप में दिलचस्प अनुभव रहा । सभी आवेदक गंभीर थे और अपने ढंग से संवैधानिक मसलों पर तैयारी के साथ आए थे । इस जमावड़े के बहाने दशकों बाद जनाब विभूति झा और पुरुषोत्तम अग्रवाल जी से मुलाक़ात हो गई । लोकतंत्र और संविधान से जुड़े विषयों पर दोनों के व्याख्यान भी सुनने को मिले । मैने भी अपने कुछ विचार रखे । इसी कड़ी में भाई कीर्ति राणा और शाइनी जी से मिलना सुखद अनुभव था । सत्रों के संचालन की स्थाई जिम्मेदारी वरिष्ठ गांधीवादी और चिंतक चिन्मय मिश्र ने संभाली ।
सचिन जैन की अगुआई में विकास संवाद निरंतर सरोकारों की नई इबारत लिख रहा है । उनकी टीम के सदस्य राकेश मालवीय, पंकज शुक्ल तथा अन्य साथी जिस तरीक़े से गंभीर विषयों पर संवाद और विमर्श प्रक्रिया को जीवंत बना देते हैं ,यह भारत के तमाम स्वयं सेवी संगठनों को सीखने लायक है ।
राजेश बदल