नहीं रहीं हिंदी की सुप्रसिद्ध कहानीकार-लेखिका मन्नू भंडारी
आपका बंटी, महाभोज, एक इंच मुस्कान, रजनीगंधा…जैसी कालजयी रचनाओं के लिए हमेशा याद आएंगी
आपका बंटी, महाभोज, एक इंच मुस्कान, रजनीगंधा…जैसी कालजयी रचनाओं के लिए हमेशा याद आएंगी सुप्रसिद्ध हिंदी लेखिका और कहानीकार मन्नू भंडारी.
मीडिया स्वराज डेस्क
हिंदी की इस सुप्रसिद्ध कहानीकार लेखिका का जन्म 3 अप्रैल, 1939 को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में हुआ था. आपके बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था. लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम अपनाया. एमए की पढ़ाई करने के बाद वर्षों तक वह दिल्ली के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस कॉलेज में अध्यापिका रहीं.
एक विदुषी स्त्री और शिक्षक से कहीं इतर मन्नू भंडारी ने एक कथाकार के रूप में अपनी बड़ी छाप छोड़ी. बिना किसी गुटबंदी और खेमेबाजी का शिकार हुए वह लिखतीं रहीं और साहित्य जगत को ‘मैं हार गई’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’, ‘एक प्लेट सैलाब’, ‘यही सच है’, ‘आंखों देखा झूठ’, ‘अकेली’ और ‘त्रिशंकु’ जैसे कथा संकलनों से समृद्ध किया.
इन संग्रहों की कहानियां उनकी सतत जागरुकता, सक्रिय विकासशीलता को रेखांकित करती हैं. राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ पढ़े-लिखे और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा है. उनकी सीधी-साफ भाषा, शैली का सरल और आत्मीय अंदाज, सधा शिल्प और कहानी के माध्यम से जीवन के किसी स्पन्दित क्षण को पकड़ना उन विशेषताओं में है, जिसने उन्हें लोकप्रिय बनाया.
उनका लिखा नाटक ‘बिना दीवारों का घर’ भी काफी चर्चित रहा. नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर आधारित नाटक खूब लोकप्रिय हुआ था. इनकी ‘यही सच है’ कृति पर आधारित ‘रजनीगंधा’ फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी. इस फिल्म को 1974 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था.
इसके अतिरिक्त उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत हैं.
इन सबके बीच यह जानना जरूरी है कि मन्नू भंडारी ने चर्चित हिंदी लेखक व संपादक राजेंद्र यादव से शादी की और दशकों के साथ के बाद उनसे अलग भी हो गईं. खास बात यह कि भंडारी ने विवाह टूटने की त्रासदी पर एक घुट रहे बच्चे को केंद्रीय विषय बनाकर एक उपन्यास लिखा ‘आपका बंटी’, जिसने उन्हें शोहरत के शिखर पर पहुंचा दिया.
‘आपका बंटी’ को उन बेजोड़ उपन्यासों में शुमार किया जाता है, जिनके बिना बीसवीं शताब्दी के हिंदी उपन्यास की चर्चा भी नहीं की सकती है, न ही स्त्री और बाल-विमर्श को सही धरातल पर समझा जा सकता है.
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