बेटी तेरे कितने रूप – प्रयागराज से उर्वशी उपाध्याय की प्यारी कविता

बेटी 

उर्वशी उपाध्याय, प्रेरणा

उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा

बहुत सरस है सुन्दर है
बेटी का हर रूप।
छाया बन जाती है बेटी
जब जब लगती धूप ।धरती बनकर आश्रय देती
अन्तस्तल से तरल सुधा।
सृष्टि रूप धर जन्मा सबको
दुर्गा बन संहार किया।

लक्ष्मी, काली, सरस्वती,
सब बेटी के ही रूप।
छाया बन जाती है बेटी,
जब जब लगती धूप।

ममता, पीड़ा, विरह वेदना
बेटी जाने, तुम क्या जानो।
मन का धीरज और गहराई
उसके हक में! तुम क्या जानो।

उसके पायल की रुनझुन में,
खुशियों का हर रुप,
छाया बन जाती है बेटी
जब जब लगती धूप।

प्रेम वही मनुहार वही
आंगन का श्रृंगार वही।
भैया के हाथों की शोभा
अल्हड़ प्यार दुलार वही।

सावन की वो रिमझिम बूंदें
और माघ की धूप।
छाया बन जाती है बेटी
जब जब लगती धूप।

 

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