आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि

गीता प्रवचन – विनोबा – दूसरा अध्याय

आत्मज्ञान
विनोबा के गीता प्रवचन की
प्रस्तुति : रमेश भैया

भाईयों, पिछली बार हमने अर्जुन के विषाद-योग को देखा। जब अर्जुन के जैसी ॠजुता ( सरल भाव ) और हरिशरणता होती है, तो फिर विषाद का भी योग बनता है। इसी को ‘हृदय-मंथन’ कहते हैं।

गीता की इस भूमिका को मैंने उसके संकल्प के अनुसार ‘अर्जुन-विषाद-योग’ जैसा विशिष्ट नाम न देते हुए ‘विषाद-योग’ जैसा सामान्य नाम दिया है, क्योंकि गीता के लिए अर्जुन एक निमित्तमात्र है।

यह नहीं समझना चाहिए कि पंढरपुर (महाराष्ट्र) के पांडुरंग का अवतार सिर्फ पुंडलीक के लिए ही हुआ, क्योंकि हम देखते हैं कि पुंडलीक के निमित्त से वह हम जड़ जीवों के उद्धार के लिए हजारों वर्षों से खड़ा है।

इसी प्रकार गीता की दया अर्जुन के निमित्त से क्यों न हो, हम सबके लिए है।

अत: गीता के पहले अध्याय के लिए ‘विषाद-योग’ जैसा सामान्य नाम ही शोभा देता है।

यह गीतारूपी वृक्ष यहाँ से बढ़ते-बढ़ते अंतिम अध्याय में ‘प्रसाद-योग’– रूपी फल को प्राप्त होने वाला है।

ईश्वर की इच्छा होगी, तो हम भी अपनी इस कारावास की मुद्दत में वहाँ तक पहुँच जायेंगे।

दूसरे अध्याय से गीता की शिक्षा का आरंभ होता है।

शुरू में ही भगवान् जीवन के महासिद्धांत बता रहे हैं।

इसमें उनका आशय यह है कि यदि शुरू में ही जीवन के वे मुख्य तत्त्व गले उत्तर जायें, जिनके आधार पर जीवन की इमारत खड़ी करनी है, तो आगे का मार्ग सरल हो जायेगा।

दूसरे अध्याय में आनेवाले ‘सांख्य-बुद्धि’ शब्द का अर्थ मैं करता हूँ – जीवन के मूलभूत सिद्धांत। इन मूल सिद्धांतों को अब हमें देख जाना है।

परंतु इसके पहले हम ‘सांख्य’ शब्द के प्रसंग से गीता के पारिभाषिक शब्दों के अर्थ का थोडा स्पष्टीकरण कर लें, तो अच्छा होगा।

‘गीता’ पुराने शास्त्रीय शब्दों को नये अर्थों में प्रयुक्त करने की आदी है।

पुराने शब्दों पर नये अर्थ की कलम लगाना विचार-क्रांति की अहिंसक प्रकिया है। व्यासदेव इस प्रक्रिया में सिद्धहस्त हैं।

इससे गीता के शब्दों को व्यापक सामर्थ्य प्राप्त हुआ और तरोताजा बनी रही, एवं अनेक विचारक अपनी-अपनी आवश्यकता और अनुभव के अनुसार उसमें से अनेक अर्थ ले सके।

अपनी-अपनी भूमिका पर से ये सब अर्थ सही हो सकते हैं, और उनके विरोधी की आवश्यकता न पड़ने देकर हम स्वतंत्र अर्थ भी कर सकते हैं, ऐसी मेरी दृष्टि है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

9 − 2 =

Related Articles

Back to top button