एंजोय योर मेडिसिन्स                      

महेश चंद्र द्विवेदी ,

महेश चंद्र द्विवेदी
पूर्व पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश 
         
10 जून १९८३ को मैं अपनी पत्नी के साथ न्यू जर्सी के नेवार्क एयरपोर्ट पर वायुयान से उतरकर कस्टम क्लिअरेंस की पंक्ति में खड़ा था. तब अमेरिकनों को भारतीय मसालों तथा आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक दवाइयों की जानकारी बहुत कम थी. हम ने सुन रखा था कि अमेरिका में दवाइयां बहुत मंहगी हैं, अतः मेरी पत्नी ने एलोपैथिक, आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक की अनेक दवाइयां सूटकेस में रख लीं थीं. साथ में गिफ़्ट में देने के लिये दो डिब्बा पान-मसाला भी ले लिया था. हम क्यू में सबसे पीछे थे. अतः औरों के निकल जाने के बाद जब हमारा नंबर आया, तब कस्टम आफ़िसर पूरी तरह फ़ुरसत में था. उसने हमारा सूटकेस खुलवाया और ऊपर ढेर सारी एलोपैथिक दवाइयों को देखकर पूछने लगा, “ये क्या हैं?” मैने उनके बारे में बताया. उसने फिर हाथ डाला और अमृतधारा सहित कई आयुर्वेदिक दवाइयों एवं पान-मसाला को निकालकर अपना प्रश्न दुहराया. मैं बडी कठिनाई से उनके बारे में समझा पाया- विशेषतः अमृतधारा और पान-मसाला की खुशबू सूंघकर वह ऐसा भड़का कि मुझे उसे यह आश्वस्त करने में कि ये ड्रगनहीं है, मेरे पसीने छूट गये. उसके पश्चात जब उसने कपड़ों के नीचे हाथ डाला तो होमियोपैथिक दवाइयों की शीशियों में भरी सफ़ेद रंग की गोलियों को देखकर उसे लगा कि क्षणमात्र में हाईकर देने वाला असली माल तो अब हाथ लगा है. उनके विषय में मेरे द्वारा बताने पर वह अपने विश्वास से ज़रा भी नहीं डिगा. उसने मेरा इन्टेरोगेशन प्रारम्भ कर दिया:

         “आप इतनी दवाइयों का क्या करेंगे?”———“हमें दो महीने रुकना है. अनुमानित आवश्यकता के अनुसार हैं.”

         “कहां रुकेंगे?”———“डेलावेयर में भाई के पास, पर इस बीच फ़्रेण्ड्स से मिलने अन्यत्र भी जाऊंगा.”

         “आप पहले कभी ड्रग सम्बंधी अपराध में पकड़े गये हैं?”……….”नहीं.”

         “आप इंडिया में क्या करते हैं?”————-“पुलिस आफ़िसर हूं.”

         मेरा उत्तर सुनकर वह रुका और शीशियों को खोलकर सूंघने लगा. उन गोलियों से आने वाली स्प्रिट की महक ने उसकी शंका को और बढ़ा दिया और वह मेरी ओर गौर से देखने लगा. तब मैं बोला,

         “गोलियां हार्मलेस हैं- चाहें तो खाकर देख लें.”

         वह उन्हें खाने का साहस तो नहीं कर पाया, परंतु उसने उस कमरे में उपस्थित अन्य सहकर्मियों को बुला लिया और उन्हें शीशियां दिखाकर उनकी राय लेने लगा. वे सभी गोलियों को सूंघ रहे थे, परंतु किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे.

         अंत में हारकर वह मुझसे बोला,

        “ओ. के. यू कैन गो.. आई होप यू ऐन्ड योर फ़्रेंड्स विल एंज्वाय योर मेडिसिन्स (अच्छा, आप जा सकते हैँ— आशा है आप अपने दोस्तोँ के साथ अपनी दवाइयोँका लुत्फ उठायेंगे).”         

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