गांधी जी के एकादश व्रत और उनकी प्रासंगिकता

​डॉ- मुनीज़ा रफ़ीक़ ख़ान

गांधी जी आत्मानुशासन का पालन एकादश व्रत के द्वारा करने की बात करते है वे मानते है कि हम इन एकादश व्रत को अपना कर अपने जीवन को संयमित कर सकते है.

महात्मा गांधी न तो बड़े वक्ता थे और न ही उनका शरीर देखने में बहुत सुंदर था॰ वे सादा जीवन जीते थे और हमेशा लाइमलाइट में आने से बचते थे॰ इसके बावजूद उनकी गिनती विश्व के गिने- चुने महापुरुषो मे होती है॰ इसका मुख्य कारण है कि वो ख़ुद पर विश्वास करते थे॰ 

 महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था॰ इस दिन को उनके सम्मान में विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर मनाया जाता है॰ महात्मा हिंदी के दो शब्दों महान+आत्मा से बना है॰ एक बार गांधी जी से जब यह पूछा गया कि आप विश्व को क्या संदेश देना चाहते हैं, तो उनका कहना था, “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है॰ “

खुद पर विश्वास करो

खुद पर विश्वास करें और इससे आप विश्व को हिला सकते हैं, ऐसा गांधी जी का कहना था॰ मनुष्य अक्सर वही बनता है, जिस पर उसे विश्वास होता है॰ अगर आपको पहले ही यह विश्वास हो जाए कि मैं यह काम नहीं कर पाऊंगा तो इससे आपका आत्मविश्वास कम हो जाएगा, लेकिन जैसे ही आपको विश्वास होगा कि आप यह काम कर लेंगे तो आप उक्त काम को कर लेंगे, जबकि शुरुआत में इस काम को करने की आपमें क्षमता नहीं थी॰ उनका मानना था कि देश को आजाद कराने की उन पर एक बड़ी जिम्मेदारी थी , और उन्होंने इसे अपने विश्वास के दम पर पूरा क॰ या। उन्हें पहले से भारत की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में पता था, यही उनकी सफलता का राज रहा॰ खुद में विश्वास के कारण ही करोड़ोंभारतीयों ने उन पर विश्वास किया॰ 

गांधी जी के एकादश व्रत

गांधी जी का जीवन मूल्याधारित रहा है॰ आत्मानुशासन के लिए उन्होंने कतिपय व्रतों के पालन पर बल दिया है॰ गांधी जी के अनुसार व्रत का अर्थ है, “अटल निश्चय”॰ वे यह भी कहते हैं कि समस्त संसार का अनुभव इस बात की गवाही देता है कि ऐसे निश्चय के बिना मनुष्य उत्तरोत्तर ऊपर नहीं उठ सकता॰    

गांधी जी का जीवन मूल्यो पर आधारित था वो आत्मानुशासन की बात करते है, वो कहते है ख़ुद पर विश्वास करो ॰ गांधी जी आत्मानुशासन का पालन एकादश व्रत के द्वारा करने की बात करते है वे मानते है कि हम इन एकादश व्रत को अपना कर अपने जीवन को संयमित कर सकते है॰    

जिन व्रतों का गांधी जी ने उल्लेख किया है वे इस प्रकार हैं – (१) सत्य (२) अहिंसा (३) सर्व धर्म समभाव  (४) अपरिग्रह (५)) अस्तेय (६) र्ब्रह्मचर्य (७) शरीर-श्रम (८) अस्वाद (९) अभय (१०) अस्पृश्यता निवारण (११) स्वदेशी 

1- सत्य :- झूठ ना बोलना तो छोटी बात है ॰ गांधी जी का सत्य शब्द बहुत ऊचा है, सत्य ही परमेश्वर है ॰ मंदिर और मस्जिद सत्य नहीं है ॰ गांधी जी मंदिर नहीं जाते थे ॰ अगर आप सच्चे है तो सत्य पर अडिग रहे,उसमे ही भगवान और अल्लाह है॰ चंपारण मे उन्हे सत्य के प्रति आग्रह यानि सत्याग्रह का ही तो प्रयोग किया है अगर आपको अपने पर विश्वास है तो हमेशा सच्चे रहिए॰ जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका मे थे और वकालत कर रहे थे तो उन्होने तय कर लिया था कि झूठे केसेस की पैरवी नहीं करेगे॰ एक बार मुवक्किल ने झूठ बोल कर गांधी जी को एक केस दे दिया॰ ये केस झूठ पर आधारित था ये बात गांधी जी को केस की पैरवी करते वक्त कोर्ट मे पता चला॰ मुकदमे की सुनवाई के वक्त ख़ुद गांधी जी ने जज साहब से कहा कि इस केस को ख़ारिज कर दीजिये क्योकि ये झूठा केस है॰ जज ने भी इस बात की प्रशंसा की ॰ क्या आज हम वकीलो से ऐसी उम्मीद कर सकते है ? शायद नहीं॰

2- अहिंसा :- छोटे से छोटे या बड़े से बड़े जीव के प्रति हिंसा का प्रयोग नहीं करना ही अहिंसा नहीं है बल्कि अपने व्यवहार से या बोल चाल की भाषा से भी हिंसा को नहीं दिखाना अहिंसा है ॰ इस अहिंसा के द्वारा ही गांधी जी आज़ादी हासिल कर पाए॰ सबके साथ बराबरी का व्यवहार तथा सबके साथ प्रेमभाव रखना, सबकी भलाई का सोचना भी अहिंसा है ॰ आज हम भोजन के प्रकार शाकाहारी या मासाहारी मे ही अहिंसा को परिभाषित कर देते है॰ शाकाहारी की जब बात आती है तो एक प्रसंग याद आता है गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम मे जब ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ानa रहने आते हैSas तो उनको मांस मछ्ली खाने की इजाज़त गांधी जी देते है। यहा वो मासाहार भोजन मे हिंसा नहीं देखते है ॰ ये अलग बात है की ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान ने आश्रम मे कभी मीट नहीं खाया, और आश्रम के नियमो का पालन किया॰ गांधी जी की नज़र मे अहिंसा का अर्थ सबसे प्यार करना, सम्मान करना दूसरों की भावनाओ का ख्याल रखना भी है॰ किसी को भी मानसिक शारीरिक या आर्थिक क्षति न पहुचे वो इसका ध्यान रखते थे॰ आज वर्तमान समय मे हो रहे हाथरस , ऊना , आजमगढ़ , बलरामपुर की घटनाए और आय दिन माब लिंचिंग व महिलाओ पर हो रहे अत्याचार गांधी जी के मूल्यो को शर्मसार कर रही है॰   गांधी जी की अहिंसा की ताक़त को लोग समझ नहीं रहे है ॰ हमे आज ये सोचना है कि क्या हम आज गांधी जी के रास्ते पर चल रहे है॰ 

हिंसा के बदले हिंसा के गांधी सख्त विरोधी थे॰ उनका कहना था कि आँख के बदले आँख हिंसा का जवाब नहीं है, ये भावना पूरे विश्व को अंधा कर देगी॰ हिंसा का जवाब हिंसा नहीं है॰ बदले की भावना से अगर हम काम करेगे तो समाज और देश टूटेगा॰ गांधी जी का तो यहा तक कहना था कि सांप्रदायिक दंगो मे अगर मुस्लिम परिवार का कोई व्यक्ति मारा गया हो और उसका बच्चा जीवित है तो हिन्दू परिवार उसे अपने घर मे मुस्लिम रीति रिवाज के साथ पालन पोषण करे, इसी प्रकार अगर हिन्दू परिवार का कोई व्यक्ति मारा गया है और उसका बच्चा जीवित है तो मुस्लिम परिवार उसे अपने घर मे हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार पालन पोषण करे॰ ऐसा करने से दोनों संप्रदाय के लोगो को अपने अपराध का प्रायश्चित होगा। 

3- सर्व धर्म समभाव:- सत्य और अहिंसा के बाद गांधी जी सबसे अधिक महत्व सर्व धर्म समभाव को देते थेs, उनका कहना था कि जितना हम अपने धर्म का सम्मान करते है उतना ही दूसरे के धर्म का भी सम्मान करना चाहिए। आज धर्म के नाम पर नफरत फैलाया जा रहा है जिससे हम अपने धर्म के साथ साथ अपने देश और समाज का भी नुकसान कर रहे है॰ गीता, कुरान, बाइबिल जल जायगी तो दूसरी आ जायगी लेकिन इंसान की जान ले लेने पर दूसरा इंसान नहीं आ सकेगा। हिंसक वारदातों मे दुकाने लूटीती है तो देश का ही नुकसान होता है,नफरत,लव जिहाद के नाम पर मारकाट करके हम कभी आगे नहीं बढ़ सकते॰ अगर चार भाई मिल जुल कर रहेगे और काम करेगे तो वो परिवार खूब तरक्की करेगा॰ वह बग़ीचा जिसमे सुंदर सुंदर रंग बिरंगे व तरह तरह के फूल होते है वही सुंदर लगता है॰ जिस देश मे या समाज मे सब धर्म , जाति के लोग रहते है वो सुंदर व खुशहाल होता है॰ हिंदुस्तान एक देश के साथ साथ एक कुटुंब है, जहा विभिन धर्म , जाति , वर्ग , अलग अलग भाषा बोले वाले, विभिन संस्कृतियो को मानने वाले लोग रहते है॰ आज अफसोस है की इस कुटुंब पर किसी की नज़र लग गई है, नफरत और हिंसा धर्म के नाम पर फैलाई जा रही है कुछ लोग अपने स्वार्थ के कारण इसे खत्म करने मे लगे है॰ कोई धर्म लड़ाना नहीं सिखाता]धर्म मूल्यो की बात करता है, समानता, न्याय , और अहिंसा की बात करता है॰  आज कट्टरवादी सोच के लोग जो सभी समुदायो मे है वो धर्म के मूल्यो को खत्म करने मे लगे है और ये कट्टरवादी ताकते नफरत समाज मे फैला कर समाज को बाटने का काम कर रही है , जिससे हमारा देश कमजोर हो रहा है । 

4- अपरिग्रह:- आवश्यकता से अधिक संग्रह करना न सिर्फ अनावश्यक परिग्रह है बल्कि चोरी का ही एक प्रकार है ऐसा गांधी जी का कहना था ।   गांधी जी कहते थे कि अपनी इच्छाओ को संयमित करो॰ अपरिग्रह सुख और शांति के तरफ ले जाता है॰ लेकिन आज मीडिया दिखा रही है की ज़्यादा से ज़्यादा सामान खरीदे । एक तरफ गांधी जी के रास्ते पर चलने की बात की जा रही है, तो दूसरी तरफ सरकार उपभोक्ता के सामान कार,मोबाइल, टी वी आदि को खरीदने के लिए लोन दे रही है॰ उपभोगता वाद की तरफ लोगो को ले जाया जा रहा है । 

  आज ज़रूरते कम है लेकिन ख्वाहिशे अधिक है॰ लॉकडाउन ने हमे सीखा दिया है की हमारी

  ज़रूरते कितनी सीमित है और हमने उसे कितना बढ़ा दिया है॰ गांधी जी का कहना था कि

 प्रकृति ने हमे अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए बहुत कुछ दिया है लेकिन किसी एक  

  व्यक्ति की इच्छा को पूरा करने की छमता प्रकृति मे नहीं है इसलिए हमेअपनी इच्छाओ 

  को कम करना चाहिए॰ 

अस्तेय:– अस्तेय यानि चोरी न करना ही नहीं है बल्कि अपनी जरूरतों को कम करना जैसे   कपड़े , जूते आदि हम अपनी आलमारियों मे भर लेते है, ये भी अस्तेय है॰  दूसरे के हक़ को छीनना भी चोरी है ऐसा गांधी जी के अस्तेय की परिभाषा है॰ अनावश्यक आवश्यकताएं तो अनंत हैं जितनी भी बढ़ाओबढ़ जाती हैं पर घट भी सकती हैं यदि हम यत्न से घटाए । आवश्यकताओं पर हमे लगाम लगाना चाहिए जिससे एक खुशहाल ज़िंदगी जी सके और एक बेहतर समाज बना सके॰ 

6 – ब्रह्मचर्य:- गांधी जी की दृष्टि मे ब्रह्मचर्य का अर्थ विवाह नहीं करना या सन्यासी बन जाना नहीं है ॰ किसी भी स्त्री या पूरुष पर बुरी नज़र ना रखना भी ब्रह्मचर्य है, अपनी पत्नी के साथ भी बिना पत्नी की सहमति के संबंध बनाना , बुरे विचार और विषयो से मन को हमेशा साफ रखना भी ब्रह्मचर्य का पालन करना है॰ आज सन्यासी व योगी के वेश मे पुजारी , मौलवी क्या कर रहे है ये हम सब देख रहे है॰ इस दिखावे और दोहरेपन से मुक्ति प्राप्त करनी होगी॰      

7- शरीर श्रम:- गांधी जी का कहना है कि जो शरीर श्रम नहीं करते है उन्हे खाने का हक़ नहीं है॰ रोज़मर्रा का सारा काम स्वम करना चाहिए॰ गांधी जी बहुत दूर कि दृष्टि रखने वाले इंसान थे॰ उनका मानना था कि श्रम करेगे तो हमेशा स्वस्थ रहेगे॰ कमर दर्द , गठिया जैसे अनेकों रोग शारीरिक श्रम करने वालों को कम होते है॰ गांधी जी का कहना था कि कोई करोडपति यदि काम न करे और पडा रहे बिस्तर पर तो आराम करते करते आजिज़ तो आ ही जाएगा और खाना पचाने के लिए जिम जाएगा, और पसीना बहायगा॰ जिम मे पसीना बहाने के लिए आज लोग पैसा खर्च करते है, लेकिन अगर ये लोग शारीरिक श्रम करे तो यही पैसा किसी अन्य रचनात्मक कार्य मे लगाया जा सकता है॰ 

आज गरीब परिवार की लड़कियो या उन लड़कियो की नॉर्मल डेलीवरी होती है जो घर का कार्य स्वम करती है जबकि शहर की लड़किया अपनी डेलीवेरीऑपरेशन से करवाती है क्यूकी शारीरिक श्रम न करने के कारण गर्भावस्था मे तरह तरह के complications हो जाते है।  गांधी जी कहते है की श्रम करने से स्वम भी सुखी रहेगे और स्वास्थ भी अच्छा रहेगा ॰ 

8- अस्वाद:- आमतौर पर हम वही खाते है जो हमारी ज़बान को अच्छा लगता है, जो हमे अच्छा नहीं लगता है या जिसका हमे स्वाद अच्छा नहीं लगता है वो हम नहीं खाते है॰ गांधी जी कहते है कि भोजन हमे स्वाद के लिए नहीं खाना चाहिए बल्कि वो हमारे स्वास्थ के लिए पौष्टिक है तो खाना चाहिए॰ हमे सिर्फ स्वाद पर नहीं जाना चाहिए, जो भी चीज़े प्रकृति ने हमे खाने के लिए दी है उसका स्वाद लेकर खाना चाहिए॰ गांधी जी ने बहुत ज़ोर देकर ये बात कही है कि बच्चो को बचपन से ही यह सिखाना चाहिए कि उन्हे सब कुछ खाना है॰       

9- अभय:- सत्य पर अडिग रहना यही निडरता या अभय है॰ शोषण के खिलाफ हमे निडरता से विरोध करना चाहिए। सरकार की  दमनकारी नीतियो के खिलाफ हमे अपनी आवाज़ उठाते रहना चाहिए । गांधी जे की निडरता के कई वाक्ये है॰  गांधी जी जब चंपारण मे थे और अंग्रेज़ो के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे तब अंग्रेज़ो ने उनको जान से मारने के लिए उनके बावर्ची बत्तख मिया से कहा कि गांधी जी को जब दूध पीने के लिए दे तो दूध मे ज़हर मिला दे, जिससे जब गांधी जी दूध पीए तो मर जाय। अंग्रेज़ ऑफिसर ने बत्तख मिया को धमकाया की ऐसा नहीं करने पर उनके परिवार वालों को मार दिया जायगा॰ लाचारी मे बत्तख मिया ने दूध मे ज़हर तो दाल दिया, किन्तु गांधी जी को दूध देते समय हाथ से दूध के ग्लास को गिरा दिया और सब कुछ सच सच बता दिया॰ गांधी जी दूसरे दिन उस अंग्रेज़ अधिकारी के घर जाते है और कहते है मै आ गया हूँ मुझे मार दो॰ मुझे मारने के लिए गरीब को क्यू सहारा बनाया॰ गांधी जी के ये ये निडरता देखकर अधिकारी हक्का बक्का रेह गया॰ बाद मे ये अधिकारी भी गांधी जी के मुरीद हो गए॰ क्या आज ऐसी निडरता किसी नेता मे है ? शायद नहीं । 

गांधी जी की निडरता की बात आती है तो एक प्रसंग का ज़िक्र याद आ जाता है॰  गांधी जी पर सबसे पहला जान लेवा हमला सन 1934 मे और दूसरा सन 1944 मे हुआ था॰ आगाखान महल की लंबी कैद के बाद जब गांधी जी रिहा हुए तो आराम के लिए पुणे के करीब पंचगनी ले जाय गए । गांधी जी के विचार हिन्दुत्व वादियो को हमेशा से ही खटकते थे । पुणे मे गांधी जी के खिलाफ हिदुत्ववादी लगातार प्रदर्शन व नारेबाजी करने लगे । 22 जुलाई 1944 को एक नौजवान गांधी जी के तरफ छुरा लेकर झपटा लेकिन भिसारे गुरु जी ने बीच मे ही उस नौजवान को पकड़ लिया । गांधी जी ने उस नौजवान को छोड़ देने का निर्देश दिया और कहा कि उस व्यक्ति से कहो कि वो मेरे पास आकर रहे जिससे मै जान सकू की वो मुझे क्यू मारना चाहता है ,लेकिन वो व्यक्ति गांधी जी के साथ रहने को तयार नहीं हुआ । ये नौजवान और कोई नहीं नाथुराम गोडसे था । जान से मारने वाले व्यक्ति को भी अपने साथ रखने की हिम्मत गांधी मे थी, और ये निडरता किसी सच्चे व अहिंसा के पुजारी मे ही हो सकती हैं॰ 

10 अस्पृश्यता निवारण:- गांधी जी छुवाछूत के सख्त विरोधी थे॰ उनकाकहना था कि छुवाछूत हिन्दू धर्म का अंग नहीं हैं॰ इससे हिन्दू धर्म मे सड़न आ गई है॰ इसे खत्म होना चाहिए, इस छुवाछूत से अहिंसा धर्म का भी पालन नहीं होता है॰ यह गुनाह है ॰ हर हिन्दू का ये कर्तव्य है कि छुवाछूत न करे॰ छुवाछूत का ये मतलब नहीं है कि छोटी जाति के लोगो को कुछ दान दे दिया,उनको बराबरी का हक़ व सम्मान देना ज़रूरी है॰ आज ऊंचे पदो को प्राप्त पढे लिखे दलित भी छुवाछूत के शिकार है॰ कार्य  स्थलो पर उनके पीने का पानी औरर ग्लास अलग होता है॰ एन सी आर बी के सरकारी आकडे बताते है कि 2019 मे 935 एस सी /एस टी के केसेस दर्ज हुये है उत्तर प्रदेश मे ये दर 2019 मे 11,829 यानि 25.81 प्रतिशत है॰ 2019 मे भारत मे प्रतिदिन बलात्कार के 87 केस आए है जिसमे अधिकतर नाबालिग आदिवासी दलित समाज से आते है॰ आज बलात्कारियों को न तो कानून का डर है और न समाज का, अगर किसी तरह  बलात्कारी को जेल होती भी है तो जेल से निकालने पर बलात्कारी को फूल मालाओ से स्वागत किया जाता है॰ उन्हे मंत्री व नेता द्वारा सम्मानित किया जाता है॰ आज हमारे देश मे दलितो कि स्थिति बाद से बदतर है॰ अस्पृश्यता किसी कानून से कम नहीं होने वाली बल्कि इसके लिए हमे अपनी सोच बदलनी होगी॰ आज भी कोई दलित घोड़ी पर बैठ कर बारात निकलता है तो उसका केवल विरोध ही उची जाति के लोग नहीं करते बल्कि मारने पीटने और और घोड़ी से उतार देने की शर्मनाक घटना उत्तर प्रदेश मे हुयी है॰ एक पढ़ी लिखी उच्च जाति की महिला जो अमेरिका मे भी कई वर्ष रही थी ने कुछ महीने पहले एक दलित लड़की की शादी मे आर्थिक मदद करने पर बातचीत के दौरान मुझसे कहा कि आजकल दलित भी अपने यहा शादीयो मे दो सब्ज़ीया और पनीर खिलाने लगे है, इन्हे अपनी औकात मे रहना चाहिए॰ ऐसी गंदी और घटिया सोच पढे लिखे लोगो मे ज़्यादा ही दिखाई देती है॰ छुवाछूत की भावना आज भी लोगो मे है॰ इस तरह की सोच आज भी समाज मे है तो समाज कैसे बदलेगा॰ जाति से कोई साफ या गंदा नहीं होता है॰ बहुत से उच्च जाति के हिन्दू और मुस्लिम के घर बहुत गंदे होते है वही छोटी जाति कहे जाने वाले लोगो के घर या दलितो के घर साफ होते है॰ समाज को बदलना है तो अपनी सोच मे बदलाव लाना होगा, तभी हम समता पर आधारित अहिंसामूलक समाज जिसकी गांधी जी ने कल्पना की थी बना पायगे॰ 

11 स्वदेशी:- गांधी जी का कहना है कि आसपास हो रहे उत्पादन की वस्तु का प्रयोग करना ही स्वदेशी है॰ स्वदेशी मे स्वार्थ नहीं होना चाहिए॰ आज बाबा रामदेव, अंबानी व अडानी सिर्फ अपना स्वार्थ और अधिक से अधिक लाभ कैसे हो ये देख रहे है इन्हे न तो गरीबो की चिंता है और न ही देश की चिंता है॰ स्वदेशी की आड़ मे गरीब, किसान व आदिवासियो की ज़मीन को लूटा जा रहा है और बड़ी बड़ी कंपनियो व कॉर्पोरेट घरानो को दिया जा रहा है। जिसका विरोध करने पर फर्जी मुकदमे मे फसा कर जेल मे बंद कर दिया जा रहा है॰ गांधी के अनुसार वस्तु के उत्पादन मे जिन जिन लोगो का योगदान हो उनको बराबरी की हिस्सेदारी मिलनी चाहिए॰ उधारण के तौर पर स्वदेशी के नाम पर पूजीपति अडानी द्वारा बनाया जा रहा फ़ोरचून का सरसों का तेल स्वदेशी नहीं है॰ सरसों का तेल हमारे घर के आस पास भी पेराया जाता है और आयल मील मे मिलता है , इनका सेवन स्वदेशी है । केवल अपने देश मे या अपने देश के लोगो द्वारा उत्पादित वस्तु स्वदेशी नहीं हो सकती उदाहरण स्वरूप गांधी जी ने विदेश मे सिंगर  सिलाई मशीन देखा था और तब भारत की महिलयों को उन्होने हाथ से सिलाई करते देखा तो गांधी जी ने कहा था कि ये मशीन महिलाओ को देना चाहिए इससे उनका समय भी बचेगा और ऊर्जा भी, जबकि ये मशीन विदेशी थी॰ हर वो सामान जो हमारे देश मे बन रहा है स्वदेशी नहीं हो सकता॰ उसके उत्पादन मे कितना लाभ हो रहा है और वो लाभ किसे मिल रहा है यह भी देखना बहुत आवश्यक है॰ 

गांधी जी के एकादश व्रत के एक भी व्रत का पालन करने का संकल्प अगर हम ले तो समाज मे बदलाव ला सकते है। आज हम एक कठिन दौर से गुज़र रहे है हमारा संविधान और लोकतन्त्र खतरे मे है, आज गांधी जी के बताए रास्तो पर चलने की ज़्यादा ज़रूरत है । ज़रूरत है की हम उनके विचारो को अपनाए, तभी हम गांधी के सपनों को साकार करने और एक बेहतर समाज बनाने की दिशा मे आगे बढ़ पायगे। 

——————————————————- कुलसचिव , गांधियान इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीस , राजघाट , वाराणसी

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