डॉ. सूर्यकांत और टीम ने तैयार किया आइवरमेक्टिन श्वेतपत्र
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर किया गया प्रदर्शित
आइवरमेक्टिन 40 वर्ष से भी अधिक भारत तथा पूरी दुनियां में फाइलेरिया तथा अन्य कृमिजनित बीमारियों के उपचार में प्रयोग मे लायी जा रही है।
यह दवा फाइलेरिया एवं रिवर ब्लाइन्डनेस जैसी बीमारियों में काफी कारगर साबित हुई है।
इसी कारण इस दवा की खोज करने वाले जापान के डॉ. सतोषी ओमूरा तथा अमेरिका के डॉ. विलियम सी. कैम्पबेल चिकित्सकों को 2015 मे नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
केजीएमयू के रेस्पाइरेटरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि आइवरमेक्टिन फाइलेरिया तथा अन्य कृमिजनित बीमारियों के अतिरिक्त कई वायरस जनित बीमारियों मे भी कारगर होती है।
इस दवा को असर कोविड-19 वायरस के विरूद्ध प्रयोगशाला मे देखा गया साथ ही कई देशों में इसके प्रभाव से कोविड-19 बीमारी पर रोकथाम हुई और इससे होने वाली मृत्यु दर में भी कमी आयी।
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि आइवरमेक्टिन कई तरीकों से कोरोना वायरस पर असर करती है।
यह वायरस को संक्रमित मनुष्य की कोशिकाओं के अंदर जाने से रोकती है साथ ही कोशिका के अंदर न्यूक्लीयस में भी जाने से रोकती है।
इसके साथ ही कोरोना की प्रतिलिपियां बनाने की प्रक्रिया को भी रोकती है।
साथ ही यह अन्य दवाओं जैसे डॅाक्सीसाइक्लीन व हायड्रोक्सी क्लोरोक्यून के साथ मिलकर भी प्रभावी कार्य करती है।
भारत सहित पूरी दुनिया में लगभग 40 क्लीनिकल ट्रायल इस दवा की कोविड-19 के उपचार एवं बचाव में असर को लेकर चल रहे हैं।
इस दवा के इन प्रभावों एवं उपयोग को ध्यान मे रखते हुए डॉ. सूर्यकांत एवं देश के अन्य विषेषज्ञों डॉ. वीके अरोरा (दिल्ली), डॉ. दिगम्बर बेहरा (चंडीगढ़), डॉ. अगम बोरा (मुम्बई), डॉ. टी. मोहन कुमार (कोइम्बटूर), डॉ. नारायणा प्रदीप (केरल) आदि द्वारा आइवरमेक्टिन पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया गया (श्वेत पत्र संलग्न)।
इस श्वेत पत्र का अब तक 100 से अधिक देशों के चिकित्सक एवं वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है व इसमें वर्णित जानकारी से लाभान्वित हुए हैं।
सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेवसाइट पर प्रदर्शित किया है। यह केजीएमयू, उप्र एवं देश के लिए गौरव की बात है।
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि उत्तर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा 6 अगस्त 2020 को आइवरमेक्टिन को कोविड-19 के बचाव एवं उपचार के सम्बन्ध में एक शासनादेश पारित किया जा चुका है।
देश में उत्तर प्रदेश ऐसा करने वाला प्रथम राज्य बन गया है।
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि इस शासनादेश के अनुसार कोविड-19 के लक्षण रहित एवं माइल्ड तथा मॅाडरेट रोगियों के उपचार तथा रोगियो के परिजनों एवं कोविड-19 के उपचार में शामिल चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ के बचाव हेतु आइवरमेक्टिन उपयोग में लाया जाता है।
यह बहुत सुरक्षित दवा है। केवल गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं एवं दो वर्ष से छोटे बच्चों में इसका प्रयोग नही किया जाता है।