डिफेन्स के क्षेत्र में अब आत्म निर्भरता की घोषणा, क्या सेना हथियार लॉबी की जकड़बन्दी से निकल पायेगी ?
दिनेश कुमार गर्ग
अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत की मिलिट्री दुनिया की चौथी बड़ी मिलिट्री है, जिसकी ताकत फिलहाल आयात के हथियारों और उपकरणों पर टिकी हुई है। अगर खुदा न खास्ता भारत को चीन जैसे महाबली पड़ोसी चीन से या आगे चल कर चीन, पाकिस्तान, तालिबान, ईरान और कुछ अरबी देशों से भिड़ना ही पड़ा तो वह भिड़न्त एक विश्वयुद्ध का हिस्सा होगी और भारत को अपनी लड़ने की ताकत बनाये रखने के लिए स्वदेशी उत्पादन के अभाव में लगातार रक्षा उपकरणों के इम्पोर्ट की जरूरत होगी , जो युद्ध से घिरे भारत के लिए एक टेढी़ खीर साबित हो सकती है।
चीन से युद्ध अब एक वास्तविक संभावना नज़र आने लगी है क्योंकि चीन पैगोन्ग त्से और डैमचोक से हटने के बजाय उस क्षैत्र में अब अपनी ताकत और बढा़ने की कार्र्वाई कर रहा है। उसने डेमचोक और पेगोन्ग त्से में घुसपैठ करने के पहले से ही काशगर एयरपोर्ट पर परमाणु बाम्बर तैनात कर लिए और संभावित रणभूमि के ठीक पीछे, तोपों, टैन्को , आर्मर्ड वेहीकिल्स सेनाओं आदि का खासा जमावडा़ बना लिया तब घुसपैठ किया है।
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इस बीच यह भी खबर आ रही है कि नवंबर में अमरीकी चुनाव पूर्व अफगानिस्तान से प्रेसीडेण्ट ट्रम्प के वायदे पर अमल करते हुए अमरीकी सेनाएं अफगानिस्तान से पूर्णतः निकल रही हैं जिसका लाभ लेने के लिए चीन और पाकिस्तान बेताब हो रहे हैं । याद रखें कि चीन की बेल्ट रोड इनीशिएटिव बी आर आई योजना में अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं । अतः चीन अमरीकी पुल-आउट का लाभ लेने के लिए ईरान को प्रलोभित कर उसे अपने क्षेत्रीय युद्धक गुट में शामिल करने की जबरदस्त कोशिश कर रहा है। चीन की रणनीति कामयाब हो सकती है क्योंकि ईरान एक तो अमरीका विरोधी है और दूसरे धर्मान्ध नेताओं की जकड़बन्दी में है जिन्हे किसी भी अमरीका विरोधी जिहाद में कभी भी शामिल होने के लिए राजी किया जा सकता है।
भारत को बन रही क्षेत्रीय सामरिक परिस्थितियों से निपटने के लिए आत्म निर्भर डिफेन्स की तैयारी करने की जरूरत थी और डी आर डी ओ का गठन 1958 में नेहरू काल में हुआ था जो बाद में आईवाश ही साबित हुआ क्योंकि हथियार लाबी ने सामरिक स्वदेशीकरण के नेहरू के सपने को बाद में नपुंसक बना दिया । डी आर डी ओ के गठन के 62 वर्षों में हथियारों काआयात ही सेना की शक्ति का स्रोत बना रहा ।
मोदी सरकार ने जनवरी 2019 में उत्तर प्रदेश में डिफेंस कारीडोर की स्थापना का काम शुरू किया पर डिफेन्स के क्षेत्र आत्म निर्भरता के लिए जिस बाध्यकारी पॉलिसी की जरूरत थी उसे आज राजनाथ सिंह ने घोषित कर दिया है। अब लगता है कि सेना के हाथ में वास्तविक ताकत भरने का सरकारी काम शुरू हुआ है।
डिफेन्स मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने आज देश को बताया कि रक्षा उपकरणों के उत्पादन के मामले में देश अब “आत्मनिर्भर भारत ” कार्यक्रम पर कार्य करेगा । डिफेन्स मंत्रालय अब अपनी डिफेन्स परचेज को दो भागों में विभक्त कर आन्तरिक रक्षा खरीद पर 50000 करोड़ रूपये व्यय करेगा। रक्षा खरीद कके 101 आइटमों को विदेश से आयात करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है । यह संख्या आगे और भी बढे़गी। इस निर्णय से आयात की मनाही वाली सूची में दर्ज आइटमों का उत्पादन डी आर डीओ द्वारा तैयार डिजाइन और टेक्नालाॅजी से किया जायेगा। रक्षा मंत्री ने यह भी बताया कि अगले 6-7 वर्षों में आन्तरिक रक्षा क्रय के मद में 4 लाख करोड़ के डिफेन्स परचेज की योजना है। आत्म निर्भर भारत के अन्तर्गत परचेज लिस्ट में व्हील्ड आर्मर फाइटिंग व्हीकिल्स भी शामिल हैं जिनके आयात पर दिसंबर 2021 तक प्रतिबन्ध लगने के संकेत हैं , और उसमें से अभी आर्मी द्वारा 5000 करोड़ रुपये मूल्य के 200 व्हील्ड आर्मर्ड व्हीकल्स का कान्ट्रैक्ट करने के इमकान किया गया है । आयात प्रतिबन्धित लिस्ट में आर्मी के लिए 130000 करोड़ और नेवी के लिए 140000 करोड़ के उपकरण हैं जो अब आत्मनिर्भर भारत के अन्तर्गत लाया गया है।
अप्रैल 2015 से अगस्त 2020 के दौरान आर्मी ,एयर फोर्स और नेवी ने प्रतिबन्धित सूची के आइटमों में से 260 स्कीमों के लिए 3.5 लाख करोड़ रुपये के कान्ट्रैक्ट किये हैं । अब आत्मनिर्भर भारत आने के बाद अगले 6-7 वर्षों में घरेलू रक्षा प्रतिष्ठानों से 4 लाख करोड़ रुपये के कान्ट्रैक्ट किये जाने की आशा है। डिफेन्स मिनिस्ट्री की आत्म निर्भर भारत योजना के पीछे दर असल प्रधानमंत्री की ईकोनामी , इन्फ्रास्ट्रक्चर , सिस्टम , डेमोग्राफी ( जनसंख्या ) और डिमान्ड इन पांच खम्भों पर आत्मनिर्भर भारत को खडा़ करने का आह्वान है जिसके बाद आत्मनिर्भर भारत के लिए एक स्पेशल इकोनामिक पैकेज की घोषणा भी की है।
लेखक उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत्त उपनिदेशक हैं।