शरीर और दिमाग से डेटा चोरी का नया फ़ंडा

मानवता एवं जैव विविधता को बचाने का धर्म युद्ध

 डा0 वंदना शिवा 

हम धरती हैं
हम हैं जीवन
हम जैव विविधता
हम चेतन मन…..

धरती हमारा परिवार है और हम सभी इसके सदस्य हैं। हम सभी सम्प्रभु, स्वायत्त, स्वसंगठित, एक दूसरे पर आश्रित और जागरूक प्राणी हैं। हम सभी अपने परिवार में अंतरसंबंधों के तानेबाने से जुडें हुए हैं। हम जैव विविध प्राणी एकदूसरे के साथ भोजनपानी, श्वांसवायु, जीवन और बुद्धि के रिश्ते में गुंथे हुए हैं। इस धरती के सभी प्राणी पवित्र हैं। हम सभी पोषण प्राप्त कर जीवन यापन करते हैं। जीवन जीना हमारे स्वभाव में है। जीवन हमारा नैसर्गिक अधिकार है। यह जैव विविधता दिवस पर हम धरती के सभी प्राणियों की स्वतंत्रता और मानवता को संरक्षित करने हेतु संकल्प लेने का दिन है।

जब मन/दिमाग संवेदनहीन हो जाता है, तब उसमें शैतान बस जाता है। और मशीनी दिमाग शैतान से भी खतरनाक होता है। प्रकृति को समझने के लिए मन में संवेदना, दया और प्रेम का भाव होना बहुत जरूरी होता है। वैसे धन कमाने की इच्छा और प्रयास हर इंसान करता है, लेकिन यह होड़ असामान्य हो जाए तो इंसान लुटेरा बन जाता है। ऐसा लुटेरा जो आदिवासियों को उनकी जमीन से खदेड़ने, मिट््टी से उर्वरता को छीनने, भूमिगत जल को जमीन से पूरी तरह सोखने, नदियों को जल से मुक्त करने, जैव विविधता से जीवन के गुणों को छीनने और स्वदेशी ज्ञान को हड़पने का ही कार्य करते हैं। इसी तरह वे लुटेरे पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकारों को माध्यम बनाकर जैव चोरी/ बायोपाइरेसी करते हैं और जैव विविधता को इस तरह खत्म कर देते हैं, जैसे सोने की खान से चुनचुन कर सोना समाप्त किया जाता है।
शरीर और दिमाग से डेटा चोरी
आपने सुना होगा कि फलां का फेसबुक हैक हो गया! किसी का ई-मेल हैक हो गया! और फलां के एकाउंट से डाटा चोरी हो गया! इसी तर्ज पर एक नई तरह की जैव चोरी सामने आ रही है। आपको यह जानकर आपको अचरज होगा कि हमारे शरीर हमारे मन/मस्तिष्क और शारीरिक गतिविधयों का डेटा चोरी होने जा रहा है। अब हमारा शरीर भी कच्चे माल के रूप में देखा जाने लगा है। यहां तक कहा जाने लगा है कि डेटा ’इज द न्यू ऑइल’  यानी डाटा एक नए तरह का तेल है।
मैकेनिकल माइंड और डेटा चोरी
यह जैव चोरी/बायोपाइरेसी का उच्च-स्तर है। इस तरह की जैव चोरी और हेराफेरी करने के लिए नए तरह के उपकरणों की आवश्यकता होती है। इस नई विधा से जिस इंसान से यह डेटा चोरी होता है, उसे इस चोरी के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता। डकैती के इस कारनामे को विशेष तरह के मैकेनिकल माइंड, डाटा चोर इंजीनियर ही देख और समझ सकते हैं। उन्हें ही इस चोरी के उद्देश्य  इस डेटा के निवेश, उससे होने वाले फायदे और परिणाम के बारे में जानकारी होती है।
विलुप्ति के कागार पर खडे़ हैं हमः
आज धरती पर कई तरह की प्रजातियां विलुप्त हो गई और कई विलुप्त होने की कगार पर हैं, क्योंकि उनके अस्तित्व के लिए अब इस धरती पर माकूल स्थिति नहीं रही। धरती से उनके सफाये के लिए कई हद तक हम भी जिम्मेदार हैं। हमने धरती और उसके प्राणियों को बेजान समझकर उनका दोहन/निष्कर्षण किया। तो क्या! हम सच में मानव जाति के खात्मे तक इस धरती को मृत-जीवों का टीला बनाकर छोड़ना चाहेंगे?
आज हमारे पास दो ही विकल्प हैं-

1. या तो हम धरती के जीवन और धरती पर जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अपनी शैतानी होड़ को खत्म कर दें।

2. या हम मानवजाति के खात्मे तक धरती को जीवन-रहित करने के इस नापाक कार्य को जारी रखें।

माइक्रोसॉफ्ट  को मिला नया पेटेंट
जब दुनिया में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन चल रहा था, उसी बीच विगत 26 मार्च को डब्लूपीओ यानी विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन की तरफ से माइक्रोसॉफ्ट  को बौद्धिक सम्पदा पैटेंट मिला। इसकी पेटेंट की संख्या डब्लूओ 2020/060606 है। माइक्रोसॉफ्ट  के इस पेटेंट के जरिये बिना आपकी अनुमति या सहमति के आपके शरीर और दिमाग से डेटा चोरी को अंजाम दिया जाएगा। यह चोरी मानव मूल्यों और मानव स्वायत्तता की चोरी है। यह हमारी बौद्धिक सम्पदा पर डाका है।
हमारी बौद्धिक सम्पदा पर डाका

हम अपने कम्प्यूटर पर काम कर रहे हैं। हमारे कम्प्यूटर पर कोई डिवाइस जुड़ी होगी जो सीधे सरवर से कनेक्ट होती। अब यह डिवाइस सरवर के आदेश पर हमारे यानी यूजर/उपयोगकर्ता के शरीर में हो रही हलचल या क्रियाओं को पढ़ता है। इन सूचनाओं को सरवर तक पहुंचाता है। यह काम ठीक उस क्रिप्टोकरेंसी/डिजिटल मुद्रा सिस्टम की तरह होता, जिसमें पैसे का लेनदेन डिजिटल माध्यम से होता है। डिवाइस में एक सेंसर लगा रहता है। यह सेंसर उपयोगकर्ता/यूजर के शरीर की गतिविधि को समझ लेता है। अब यूजर के शरीर की गतिविधि के आधार पर डेटा तैयार किया जाता है। फिर क्रिप्टोकरेंसी सिस्टम इस डेटा को सत्यापित करता है। यह सिस्टम आंकलन करता है कि किसी उपयोगकर्ता के शरीर/बॉडी का एक्टिविटी डेटा क्रिप्टोकरेंसी सिस्टम द्वारा कितनी बार सेट किया गया है।
यह पेटेंट नाटकीय रूप से इंसान होने के मायने को बदल रहा है। इसके लिए हम एक डेटा भण्डार की तरह हैं। यह पेटेंट हमारी स्वायत्तता और हमारी सम्प्रभुता पर डाका डालता है। और हमारे शरीर और दिमाग पर नियंत्रण करता है। यह पेटेंट हमारे शरीर और हमारे दिमाग पर बौद्धिक सम्पदा का दावा जताता है। और हमारी बौद्धिक सम्पदा को लूटने का षणयंत्र करता है।
उपनिवेशवाद का नया दौर
माइक्रोसॉफ्ट  का डब्लूओ 060606 पेटेंट उपनिवेशवाद की तर्ज पर की जाने वाली एकतरफा घोषणा है। जैसे कि उपनिवेशवाद/कोलोनिज्म के दौर में होता था, जिसमें उपनिवेशकों ने लोगों की जमीनें, प्राकृतिक संसाधन, संस्कृति तथा सम्प्रभुता पर अपना अधिकार कर दिया था। इस पेटेंट की शक्ल में उपनिवेशवाद फिर से लौटने की जुगत/प्रकिया में है। माइक्रोसाफ्ट  ने हमारे शरीर और मन को कच्चे माल की तरह आंका है। उसके लिए हमारे जीवन, हमारी संवेदनाएं, हमारे अस्तित्व, हमारे सम्मान से कोई सरोकार नहीं। वह हमें बेजान और सूचना की खान समझ रहा है। उसे हमसे डेटा चाहिए बस।

जीवन की विकृति को न्यौता

पहली बात-हमारे शरीर से सिर्फ डेटा ही चोरी होगा, ऐसा नहीं है। इस लूट की सीमा का कोई अंत ही नहीं दिखता।  यह डेटा हमारे शरीर से निकलने वाली तंरगों के विकीरण से, रक्त-प्रवाह से, दिल की धड़कन से, नाड़ी की गति से, स्मृति से, तार्तिक सोच से, चेतना से, अवचेतन से, गहरी और गम्भीर भावनाओं से, मस्तिष्क की विद्युत गतिविधियों के माध्यम से और मांस-पेशियों में हो रहे आंदोलन से माइक्रोसाफ्ट  चोरी को अंजाम देने जा रहा है।
दूसरी बात- माइक्रोसॉफ्ट  का यह पेटेंट मानवता/इंसानियत को खत्म करने वाला है। हम जीवंत प्राणी हैं। चेतन प्राणी है। आध्यात्मिक प्राणी हैं। बौद्धिक प्राणी हैं। हम निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं। हमारे पास विद्वता और नैतिक मूल्य हैं। इन सभी गुणों के तानेबाने से ही कोई प्राणी इंसान कहलाता है। लेकिन पेटेंट डब्लूओ 060606 के जरिये की गई कल्पना के तहत हम डिजिटल साम्राज्यवाद में उपयोगकर्ता/यूजर, टेटा के कुंवे और एक उपभोक्ता के अलावा कुछ भी नहीं है। इस पेटेंट की यह प्रक्रिया मानव में रचनात्मकता और चेतना को गायब कर देगी।
तीसरी बात- यह पेटेंट मानव और उसके मूल्यों को पुनर्परिभाषित कर रहा है। मानवीय मूल्यों में नैतिक, पारिस्थितिक और आध्यात्मिक मूल्य शामिल हैं। हमारे लिए आजीविका उपार्जन और न्यायोचित कार्य करना धर्म है। धरती की जैव विविधता को निरंतर पोषित करना मानवता है। मानवता से ही आध्यात्मिकता  का विकास, स्वसंगठन का विचार और दया के भाव का जन्म होता है। इंसान को प्रेम और दया के मापदण्डों से ही मापा जाता है। लेकिन पेटेंट 060606 का उद्देश्य  मानव से इन मानव गुणों को लूटकर कंगाल कर देना, चेतना विहीन कर देना और मृत पर्याय कर देना है। मानव और मानवता को माइक्रोसॉफ्ट  और पेटेंट कार्यालयों  के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

हम बीजों पर पेटेंट के विरूद्ध लड़ाई से सबक लें-

पेटेंट का मतलब एक तरह के अधिकार से है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी बिल्कुल नई सेवा, तकनीकी, प्रक्रिया, उत्पाद या डिजाइंग के लिए दिया जाता है। ताकि कोई दूसरा उनकी नकल तैयार ना कर सके। पेटेंट कानून मिलने के बाद यदि कोई व्यक्ति या संस्था किसी उत्पाद को खोजती या बनाती तो उस उत्पाद को बनाने का एकाधिकार प्राप्त कर लेती है। ंऔर अगर कोई दूसरा व्यक्तिय सा संस्था उस वस्तु का उत्पादन करता है तो वह कानूनी मुश्किल में पड़ जाता है।

बीज पर पेटेंट कभी नहीं

बीज पर पेटेंट किया जाना नैतिक और पारिस्थितिक रूप से सररासर गलत था। और जब जीवन की बात हो तो, जो गलत हो उसे सही किया जाना जरूरी हो जाता है। 33 साल पहले मैंने जैव विविधता और बीजों की अखण्डता की यात्रा शुरू की। और बीजों की जैव चोरी तथा बीजों को पेटेंट होने से बचाया।
नवधान्य का जन्म भी जैव विविधता को बचाने के अभियान के साथ ही हुआ। यानी आप कह सकते हैं कि नवधान्य जैव विविधता बचाने का एक अभियान है। हमने समूची दुनिया में बीजों की स्वतंत्रता पर जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। इसके चलते दुनिया में बीज स्वराज पर लोगों की चेतना जागृत हुई। इसी आंदोलन के चलते नवधान्य ने देशभर में 150 बीज बैकों की स्थापना की। नवधान्य के बीज बचाओ आंदोलन ने बीज को लोगों के लिए सुरक्षित कर दिया, जोकि होना भी चाहिए था और उन्ही का था। हमने जैव विविधता संरक्षण के लिए कानून और संधि भी पारित करवाई। 1992 का रियो में पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता के लिए एक नया कानून बनकर तैयार हुआ।

राष्ट्रीय जैव विविधता अधिनियम 2002

जैव विविधता संरक्षण अधिनियम परम्परागत जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग होने वाले लाभों के समान वितरण के लिए सहूलियत प्रदान करता है।
भारत ने ऐसे कानून पारित किए हैं, जो कहते हैं कि बीज आविष्कार नहीं। और बीज पर पेटेंट नहीं किया जा सकता ( पेटेंट अधिनियम 3 जे)
’’जैव संसाधनों से पौधे, जीव-जंतु  और सूक्ष्म जीव या उनके भाग, वास्तविक या संभावित उपयोग या मूल्य सहित उनके आनुवांशिक पदार्थ और उप-उत्पाद (मूल्यवर्द्धित उत्पादों को छोड़कर) अभिप्रेरित हैं।’’

भारतीय पेटेंट ऑफिस ने इसी अधिनियम की सहायता से मोनसेंटों को जलवायु के प्रति लचीले/रेजीलेंस बीजों और बीटी कॉटन बीजों पर पेटेंट करने से रोका।

पौध प्रजाति सुरक्षा एवं किसान अधिकार अधिनियम 2001

पौध प्रजाति सुरक्षा एवं किसान अधिकार अधिनियम 2001 एक भाग किसानों के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करता है- इस अधिनियम के तहत किसी किसान को किसी फसल प्रजाति के बीज को संरक्षित करने, खेती करने, उसे बचाने, उपयोग में लाने, फिर से बोने, आदान-प्रदान करने और बेचने का ठीक उसी तरह हकदार माना जाएगा जैसा कि वह पहले से इसका हकदार था।
हमने केवल जैव विविधता और जीवन की अखण्डता की लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि स्पष्टता पूर्वक यह बात दुनिया के सामने रखी कि वनस्पति, पशु और बीज किसी भी तरह से आविष्कार के विषय नहीं हैं। हमने जैव चोरी पर पेटेंट के विरूद्ध भी लड़ाई लड़ी और कामयाबी हासिल की। जैसे- यूएसडीए और डब्लूआर ग्रेस नीम (पेटेंट सं0 436257) राइस टेक बासमती (पेटेंट सं0 56, 63, 484), मोनसेंटो का गेंहूं पर पेटेंट (पेटेंट सं0 962578)

यह पेटेंट धर्म-विरोधी, जीवन-विरोधी और अधर्म की बुनियाद पर गढ़ा गया दर्शन/फिलोसोफी है। जिस तरह से प्रत्येक युग में अधर्म के विरूद्ध धर्म युद्ध लडे़ गए, वैसे ही इस युग में भी हमें बहुत बड़ा धर्म युद्ध लड़ना होगा। मानवता को बचाने का धर्म युद्ध। जैव विविधता को बचाने का धर्म युद्ध। जीवन को बचाने का धर्म युद्ध। नकली दुनिया और आभाषी निर्माणों से बचने का धर्म युद्ध। हमें उसी तरह से कमर कसने के लिए तैयार होना है, जैसे हमने अपनी जैव विविधता को मोनसेंटो और जहरीले गिरोह/पॉइजन कार्टेल के चंगुल से बचाने को कमर कसी। और हम इस युद्ध मे विजयी हुए। 

आज से 33 साल पहले जब मैंने पॉइजन कार्टेल की अपराधिक कल्पना के बारे में सुना, तब मैंने बीज, बीजों की स्वतंत्रता और जैव विविधता के संरक्षण का संकल्प लिया और अपना जीवन इसी में लगा दिया। इस जैव विविधता दिवस पर मैं अपना बाकी जीवन सभी प्राणियों की स्वतंत्रता और मानव की स्वतंत्रता के संरक्षण लिए समर्पित करने का वचन देती हूं। 

अनुवाद: दिनेश चंद्र सेमवाल

 

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