कोविड के तीसरे दौर में आधुनिक चिकित्सा और आयुष को एक साथ काम करना होगा
कोरोना कोविड के दो दौर लगभग गुजर गये है। तीसरे दौर की भयावह चर्चायें हो रही है।आगामी दौर वाले कोविड को डेल्टा वैरिएंट के रूप में नामकरण भी हो चुका है,परन्तु आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अभी भी उहापोह की स्थिति में है।
कोविड प्रसार को रोकने के असफल उपायों जैसे लाकडाउन,मास्क और सेनेटाइजर से आगे रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है।यदि इमानदारी से देखा जाय तो ये उपाय पूरी तरह से असफल रहे हैं,क्योकि दुनिया में इसका प्रयोग होता रहा और कोविड का प्रसार के साथ ही,लोग मरते भी रहे ।परन्तु अभी भी दुनिया के शासकों, नीति- नियामकों को इसके अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।ले-देकर जल्दीबाज़ी में निर्मित वैक्सिनेशन है,जो शुरु से ही विवादों के घेरे में रहा है।आज किसी भी देश की वैक्सिन के बारे में यह निश्चित विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता है कि वैक्सिन लेने वाले को कोरोना संक्रमण नहीं होगा,यदि हुआ तो यह भी निश्चित नहीं है कि उसकी जान बच जायेगी।
गंभीर संक्रमितों के लिए कोई भी व्यवस्था अभी निश्चित नहीं करती है।आक्सीजन ,वैन्टीलेटर या एंटीवायरल दवायें कोविड पर प्रभावी हैं।वैक्सिन के विषय आईसीएमआर की एक रिपोर्ट भी जारी की जा चुकी है,वैक्सिन लेने वाले 67 प्रतिशत लोग कोविड से संक्रमित हुए हैं।इसमें कितने मरे,इसका आँकड़ा नहीं जारी किया गया है।
ऐसी स्थिति में आयुर्वेद या देशी चिकित्सा पद्धतियों के रूप में एक आशा की किरन दिखती है,हाँलाकि सरकारों ने इस बारे में कोई आँकड़ा इकठ्ठा नहीं किया है, परन्तु जो लोग आम लोगों के स्वास्थ्य पर नजर रखते हैं वे देख चुके है, कि कस्बों, ग्रामीण परिवेश वाले नगरों, गाँवों के लोगों ने कोविड की पहली-दूसरी दोनो लहरों को आसानी से पार कर लिया है।
मुझे लगता है कि 15 अप्रैल से 15 मई तक उत्तर भारत का कोई परिवार या गाँव नहीं बचा है जहाँ कोरोना के लक्षणों वाले फ्लू का संक्रमण नहीं हुआ हो, पर जाँच न होने के कारण ये आँकड़ों में नहीं है।
ऐसा होता भी रहा है, यह सामान्य अवधारण है कि सर्दी-जुकाम में अंग्रेजी दवायें नहीं लेनी चाहिए।सर्दी-जुकाम भी फ्लू का एक वर्ग है, यह कोविड के प्रमुख लक्षणों में भी है।पिछले साल से देखा जा रहा है कि संक्रमित रोगियों के स्वस्थ होने का कोई निश्चित फार्मुला नहीं है ।तुलसी, गिलोय,कालमेघ,चिरायता आदि के काढ़े से भी ठीक हुए हैं, विटामिन सी, पैसासिटामाल या विश्राम और खान-पान की सावधानी से भी लोग स्वस्थ्य हुए हैं।कुछ लोग ऐसे भी मिले हैं जो बिना दवा के स्वस्थ हो गये हैं।
इसलिए तीसरे दौर के लिए हमें प्राथमिक चिकित्सा पर जोर देना होगा।जाँच की औपचारिकता से पहले ही प्राइमरी लक्षण का पता चलते ही चिकित्सा शुरु करनी होगी।जैसा कि पहले से ही फ्लू की आधुनिक चिकित्सा में कोई प्रमाणिक उपाय नहीं है, इसलिए देशी चिकित्सा पद्धतियों को कोविड नियंत्रण व्यवस्था में प्रमुखता से शामिल करना होगा।केन्द्रीय प्रोटोकाल से चिकित्सकों को मुक्त करना होगा।इसके लिए चिकित्सकों को स्वतंत्रता देनी होगी।आईसीएमआर और सीसीआरएस का टास्क फोर्स बनना होगा।आयुष की सभी पद्धतियों को इस अभियान में शामिल करना होगा।आयुष के समस्त संसाधनों जैसे अस्पताल, मेडिकल कालेजों, निजी चिकित्सकों कोविड नियंत्रण टास्कफोर्स में प्रमुखता में शामिल करना चाहिए।
आधुनिक चिकित्सा और आयुष को एक साथ काम करना होगा।इसके लिए अतिरिक्त चिकित्सकों,कर्मचारियों की नियुक्ति भी आवश्यक है।15 अगस्त तक तैयारियाँ पूरी हो जानी चाहिए।सबसे अहम बात यह है कि मीडिया द्वारा भयावह बीमारी के रूप में प्रसारण के कारण मानसिक रूप मे लोग हताश हो रहे हैं , जिससे उनकी इम्यूनीटी कमजोर हो जा रही है.परिणाम बीमारी की क्षमता बढ़ जा रही है, इसलिए सूचना तंत्र में भी सुधार करने की आवश्यकता है।
लेखक डा आर अचल आयोजक सदस्य-वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस एवं संपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट जर्नल हैं .