केरल ने मॉडल कोविड 19 मैनेजमेंट से मृत्यु दर को कैसे कंट्रोल किया!

कोरोना काल में आयुर्वेद परिचर्चा अंक 15 : केरलीय आयर्वुेद के प्रयोग

आज जब कोविड में जब उत्तर भारत में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होकर काल कवलित हो रहे हैं। वहीं सुदूर दक्षिणी प्रांत केरल में मृत्यु दर बहुत कम है। यहां लोगेा के संक्रमित होने और संक्रमण की स्थिति में ठीक होने की दर बहुत अधिक है। इसका श्रेय स्थानीय आयुर्वेदिक पद्धति को दिया जा रहा है। इसको केरलीय आयुर्वेद के नाम से आज हम जानने लगे हैं।

बीबीसी के पूर्व संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी ने एक ऑनलाइन परिचर्चा में केरल के आयुर्वेद विशेषज्ञों से इसको समझने की कोशिश की।

इस परिचर्चा में विद्वानों ने खासतौर से केरल से जुड़े विद्वानों ने केरलीय आयुर्वेद के कोविड में सफलता की वजह केरल के लोगांे का आयुर्वेद पर भरोसा और सरकार की लोगों के इलाज के लिए अपनाई गई मैट्रिकुलस नीति को बताया। सरकार ने पिछले कोविड काल से सबक लेते हुए आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज से मिलकर एक चार स्टेप की नीति तैयार की। स्वास्थ्यम अमृतम पुनर्जनी और सुखायुष्य। इसके तहत बिना लक्षण प्रारंभिक लक्षण वाले मरीजों की पहचान कर उन्हें राज्य के स्वास्थ्य तंत्र की सहायता से घर पर ही दवाईयां उपलब्ध कराईं। मरीज के स्वस्थ होने के बाद भी 40 से 45 दिन तक मॉनीटरिंग करते हुए कोरोना के साइड इफेक्ट्स पर निगरानी रखी। इसका फायदा मिला। इसके अलावा हर्षम प्रोजेक्ट के तहत लोगों के मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा।

आहार विहार को सही रखने पर जोर

इम्यूनिटी सही रखने के बारे में परिचर्चा में आहार विहार को सही रखने पर जोर दिया गया। सुबह हल्का नाश्ता दोपहर में भोजन और शाम जल्दी और हल्का भोजन लेने की सलाह दी। साथ ही आवश्यकतानुसार जरुरी दवाओं के बारे में भी बताया। जंक फूड की जगह ट्रेडिशनल भोजन पर जोर दिया। पोस्ट कोविड डायट के बारे में भी जानकारी दी। उत्तर और दक्षिण की आयुर्वेदिक दवाईयों में अंतर इसकी एक दूसरे क्षेत्र में अनुपलब्धता और इसके समाधान पर विचार हुआ।

विद्वानों ने यह भी बताया कि केरल में पक्षाघात जैसी बीमारी में प्राथमिक इलाज एलोपैथ में कराने के बाद लोग आयुर्वेदिक चिकित्सा कराना ठीक समझते हैं।

वायु जल प्रदूषण और देश काल

अंत में चरक संहिता में उल्लिखित महामारी के कारकों में प्रमुख रूप से वायु जल प्रदूषण और देश काल पर चर्चा के साथ परिचर्चा का समापन हुआ।

कोरोना,निपाह,स्वाईन फ्लू आदि संक्रामक बीमारियों ने भारत में सबसे पहला दस्तक केरल में देती रही है,जिनके नियंत्रण में केरलीय आयुर्वेद की अहम भूमिका रही है।यहाँ आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति उत्तर भारत कुछ अलग शैली में है।इसलिए यह दुनियाँ में केरलीय आयुर्वेद के नाम से प्रसिद्ध है। जिसका केरल के  कोविड-19  नियंत्रण में महत्व पूर्ण भूमिका है।

परिचर्चा में केरल से रमेश पीआर विजयन डॉ जयदेवन सोनभद्र से डॉ नीतूश्री पाठक और देवरिया से इस्टर्न साइंटिस्ट के संपादक डॉ आर अचल शामिल हुए।

रिपोर्ट : एसके मिश्र

रामदत्त त्रिपाठी

अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक , सामाजिक कार्यकर्ता , विधिवेत्ता  और सूचना संचार के विशेषज्ञ हैं. राम दत्त त्रिपाठी ने 1992 से 2013 इक्कीस वर्षों तक बी बी सी लंदन के लिए कार्य किया और वह एक प्रकार से भारत मे बी बी सी की पहचान बन गये।

Dr. C.V. Jayadepvan

Principal VPSV Ayurveda College Kottakal, Kerala 

Chairman,Clinical Research Institute for Yoga & Ayurveda

Dr.Ramesh.P.R Varier, 

Chief (Clinical Research)

Governing body of Central Council of Research in Ayurveda and Sidha (CCRAS) under the Ministry of Health & family Welfare, Govt. of India, New Delhi.

Dr.Nitu Shree

Associate Prof. Major S D Singh PG Ayurvedic College, Farrukhabad UP, Young Scientist Awarded 

Ph D Scholler Dept of Dravyagun IMS BHU

डॉ.आर.अचल

आयुर्वेद चिकित्सक,मुख्यसंपादक-ईस्टर्न साइन्टिस्ट जर्नल,क्षेत्रीय संपादक-साइंस इण्डिया मासिक (भोपाल) महासचिव-स्वदेशी विज्ञान संस्थानम्,देवरिया उप्र, सदस्य-राष्ट्रीय संयोजक समिति-वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस

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