ओलंपिक भी कोरोना का शिकार हो गया, खेल पत्रकार बेरोज़गार

कोरोना में सबसे अधिक खेलो की दुनिया प्रभावित , अख़बारों में खेल के पन्नों पर लगा ग्रहण

—- राजेश शर्मा

राजेश शर्मा

आम जिंदगी और देशों की अर्थव्यवस्था के अलावा जिस क्षेत्र को कोरोना ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वह है खेलों की दुनिया.वही खेलों की दुनिया, जो विश्व के 200 से ज्यादा देशों में फैले हुए खेलप्रेमियों को एक सूत्र में बांधती है. फुटबॉल, क्रिकेट , टेनिस, हॉकी से लेकर ओलंपिक और एशियाई खेलों तक, कोरोना ने न केवल खेल से जुड़ी गतिविधियों पर लगभग रोक लगा दी है बल्कि न्यूज़ चैनलों और अखबारों में खेल के पन्ने की अहमियत भी खत्म कर दी है. इस हद तक कि ज्यादातर खेल पत्रकारों को इस साल नौकरी से निकाला जा रहा है. इस वर्ष के अंतरराष्ट्रीय खेल कैलेंडर पर नजर डालें तो रद्द या स्थगित होने वाला सबसे महत्वपूर्ण खेल आयोजन इसी जुलाई महीने में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेल रहे. इनका आयोजन टोक्यो में 24 जुलाई से 9 अगस्त के बीच होना था. अब इनका आयोजन 2021 में 23 जुलाई से 8 अगस्त के बीच किया जायेगा. दो गौरतलब बातों में से पहली बात यह है कि पहली बार ओलंपिक ऑड ईयर में आयोजित होंगे. दूसरी यह है कि पहली बार ओलंपिक खेलों को रद्द नहीं बल्कि स्थगित किया गया है. वैसे ओलंपिक खेल तीन बार रद्द भी किये जा चुके हैं. 1916 में पहले विश्व युद्ध के कारण और 1940 तथा 1944 में द्वितीय विश्वयुद्ध की वजह से इनका आयोजन संभव नहीं हो पाया था. इस नजरिये से देखा जाये
तो कोरोना के इस दौर को अघोषित तीसरे विश्व युद्ध का दर्जा दिया जा सकता है. एक ऐसा युद्ध जिसमें देश एक दूसरे के खिलाफ नहीं बल्कि एक-दूसरे के साथ मिलकर प्राकृतिक आपदा पर विजय हासिल करने के लिए एक जंग लड़ रहे हैं.

वैसे वास्तविकता के धरातल पर भी ओलंपिक खेल पूरी खेल भावना से खेले जाने के बावजूद कहीं न कहीं सभी देशों के लिये शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक हो गया है. 2016 के ओलंपिक खेलों की स्वर्ण पदक सूची में शामिल पहले 10 देशों के नामों पर गौर करें. अमेरिका 47, ब्रिटेन 27, रूस 19, जर्मनी 17, जापान 12, फ्रांस 10, दक्षिण कोरिया 9, इटली 8 और ऑस्ट्रेलिया 8. इनके अलावा नीदरलैंड और हंगरी के भी भी 8-8 स्वर्ण पदक रहे लेकिन ज्यादा पदकों की बदौलत इटली और ऑस्ट्रेलिया नौवें और दसवें नंबर पर रहे.

खेलों का महाकुंभ कहलाने वाले ओलंपिक खेलों ने आधुनिक युग में वापसी के बाद एक बहुत लंबा सफर तय किया है और दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित खेल आयोजन के तौर पर स्थापित हुआ है. 1896 में जहां इसमें सिर्फ 14 देशों के 241 खिलाड़ियों ने 43 स्पर्धाओं में भाग लिया था, वहीं 2012 में 204 देशों के साढ़े दस हज़ार एथलीटों और 2016 में ब्राजील में आयोजित पिछले ओलंपिक खेलों में 205 देशों के 11,238 खिलाड़ियों ने कुल 306 स्पर्धाओं में भाग लिया. गौरतलब है कि 1900 और 1904 के ओलंपिक खेलों का आयोजन महज खानापूर्ति भर था लेकिन उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति और सभी देशों ने ओलंपिक खेलों को गंभीरता से लेना शुरू किया .एक बहुत ही रोचक जानकारी यह है कि ओलंपिक खेलों के इतिहास में सिर्फ चार ऐसे देश रहे हैं, जिन्होंने कभी ओलंपिक खेलों का बहिष्कार नहीं किया और हर आयोजन में शामिल हुए. यह हैं ग्रीस, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन. पिछले कुछ दशकों में ओलंपिक खेलों में अपना वर्चस्व कायम करने के लिये कई देशों के खिलाड़ियों द्वारा या व्यक्तिगत शोहरत हासिल करने के उद्देश्य से खिलाड़ियों द्वारा नशीली दवाओं का सेवन करने की वजह से इन खेलों की छवि को जरूर धक्का लगा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा लगातार कड़ी कार्रवाई के चलते ऐसे मामलों की संख्या में काफी गिरावट आयी है. सच तो यही है कि युद्ध के मैदान की जगह अब खेल के मैदान सभी देशों के लिये अपनी शक्ति दिखाने का
प्रतीक बन गये हैं और उसके लिये ओलंपिक खेलों से अच्छा मंच और कोई नहीं है क्योंकि बाकी सभी खेलों या आयोजनों में 8 से लेकर लगभग 150 देश तक ही भाग लेते हैं, चाहे वह विश्वकप क्रिकेट हो या विश्व कप फुटबॉल. उम्मीद है कि अगले साल न केवल एक बार फिर से खेलों की दुनिया में रौनक लौटेगी बल्कि खेलप्रेमियों की दिलचस्पी भी. खेल पत्रकारों के लिए यह न केवल फिर से नौकरी पाने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है बल्कि इससे यह भी तय होगा कि खेल पत्रकारों की जमात हमेशा के लिए पत्रकारिता से विलुप्त नहीं हो जायेगी ।

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