कोरोना काल : सूर्य से जीवनी शक्ति वापस पाने का समय
दिनेश कुमार गर्ग
कोरोना मानवता का एक ऐसा अदृश्य शत्रु है जो विश्वव्यापी है और जो अब नये-नये आयामों से मानव को परेशान कर रहा है। अभी तक माना जाता था कि कोरोना वायरस सूखी खांसी , बुखार , कमजोरी के लक्षणों को प्रकट करने के साथ श्वसन तंत्रिका को अवरूद्ध करता है । पर अब दिल्ली में एक प्रेग्नेण्ट डाक्टर को बिना लक्षणों के कोरोना ग्रस्त पाये जाने से इसके एक नये भयानक आयाम का पता चला है । प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक विश्व लगभग 25 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और 170 हजार लोग असमय मृत्यु के शिकार हो चुके हैं । सबसे बुरा यह कि इसकी जांच की किटें इसे शतप्रतिशत डिटेक्ट नहीं कर पातीं। कोई इलाज नहीं, सिवाय संक्रमित व्यक्ति की अपनी इम्यूनिटी शक्ति से कोरोना से लड़ने के।
इसलिए मानव को बचाने के लिए कोराना महामारी के जनक चीन सहित पूरी दुनिया में लाॅकडाउन की विधा अपनायी गयी।
चीन को लाॅकडाऊन के माध्यम से कोरोना नियंत्रण में आश्चर्यजनक सफलता मिली जबकि पूरा विश्व अभी इसकी गिरफ्त में कराह रहा है।
ऐसे में विशेषज्ञों का ध्यान पिछली सदी में सन् 1918 की इन्फ्लुएंजा महामारी के समय अपनाए गये नियंत्रात्मक व उपचारात्मक उपायों पर गया जिनमें आपसी संपर्क रहित होना, सोशल डिस्टैन्सिंग , कोरेन्टाइन के साथ सूर्य की मुलायम धूप का सेवन भी शामिल रहा है।
अमेरिकी सरकार के होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के एक प्रयोग में पता चला है कि धूप से कोरोना वायरस ‘बहुत जल्द’ खत्म हो गया। हालांकि, प्रयोग का यह शुरुआती परिणाम है। विभाग ने कहा है कि प्रयोग के अंतिम नतीजे आने बाकी हैं। प्रयोग से जुड़े कुछ विवरण में यह बात सामने आई है। इससे पहले भी साइंटिस्ट मानते रहे हैं कि अधिक तापमान में कोरोना वायरस का प्रभाव कम हो सकता है या फिर खत्म हो सकता है। हालांकि, आधिकारिक रूप से अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
अमेरिकी सरकार के होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के प्रयोग में ये देखा गया कि उच्च तापमान और अधिक ह्यूमिडिटी में कोरोना वायरस अधिक देर तक नहीं टिकता। प्रयोग के विवरण में जिक्र किया गया है- ‘दिन की रोशनी में बाहरी वस्तुओं की सतह से कोरोना संक्रमण का खतरा कम पाया गया,’ वहीं ‘धूप में वायरस जल्दी ही खत्म हो गया।’
हालांकि, इस बात का भी जिक्र किया गया है कि जिस जगह पर ह्यूमिडिटी कम रहती है, वहां संक्रमण के खतरे कम करने के लिए अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है.
पर यहां यह भी ध्यान रखने लायक है कि कुछ ही दिन पहले फ्रांस के Aix-Marseille यूनिवर्सिटी में किए गए एक प्रयोग में पाया गया था कि 60 डिग्री सेल्सियस तापमान में वायरस का प्रभाव कुछ कम जरूर होता है, लेकिन अधिक तापमान में भी वे संक्रमण फैलाने में सक्षम रहते हैं।
इस संबंध में हम प्राचीन भारतीय सभ्यता में सूर्य को दिये गये महत्व का अवलोकन कर लेते हैं। शास्त्रों में सूर्य को जगत की आत्मा , रोगों की औषधि बताया गया है ।भारत में सनातन समाज सूर्य की किरणों को कृमिनाशक मानकर सूर्य की आराधना करता है। रोज प्रातः सूर्यार्घ देना एक धार्मिक अनिवार्यता है जिसका अब पालन लगभग नहीं होता। भारत में भी नगरीय जीवन के अभ्यस्त लोगों को सूर्य की किरणों का एक्सपोजर बहुत कमजोर होता है क्योंकि वे अधिकांशतः इनडोर्स रहते हैं, बाहर धूप में निकलना पसन्द नहीं करते । ग्रामीणों को तो चाहे अनचाहे सूर्य से एक्सपोजर का लाभ मिलता ही रहता है पर नगर वासियों को उनकी जीवनशैली की वजह से सनलाइट का एक्सपोजर न्यूनतम होता है।
ऋग्वेद , अथर्ववेद और सूर्य उपनिषद में सूर्य के लिए एक मंत्र है – सूर्य आत्मा जगतस्थुशस्च । अर्थात सूर्य चराचर जगत की आत्मा है। हम सभी जानते हैं कि आत्मा का मतलब क्या है । आत्मा यानी वह शक्ति जिसके अभाव में प्राणि जगत विघटित हो जाता है ।
महामारी की स्थिति में सूरज और शुद्ध हवा के उपचारात्मक प्रभावों का पता पश्चिमी जगत को वर्ष 1918 में अमरीका के बोस्टन में एक हास्पिटल मेडिकल आफिसर के व्यावहारिक ज्ञान के आधार पर की गयी व्यवस्था से हुआ। बात यह हुई कि बोस्टन के हास्पिटल में घायलों और मरीजों की भारी खेप आई और हास्पिटल मेडिकल आफिसर ने देखा कि गंभीर रूप से बीमार नाविकों को खराब वेन्टीलेशन वाली जगहों में रखा गया था जिससे उनकी स्थित खराब हो रही थी । अतएव उसने बीमार नाविकों को अधिक फ्रेश एअर और प्रकाश देने के लिए उन्हें वार्ड की बजाय टेण्ट में रख दिया । उन्हें उपयुक्त समय में धूप खाने की व्यवस्था की गयी। उस समय बीमार सैनिकों को बाहर खुली हवा में रखने का प्रचलन था। इस कारण उस समय की एक और घातक बीमारी टीबी तथा श्वसन संक्रमण के मरीजों को भी शुद्ध हवा के लिए खुले में या क्रास वेन्टीलेटेड रूम में रखा जाता था।
एंटीबायोटिक के प्रचलन में आने तक यह उपचार लोकप्रिय रहा। उसकी इस सफलता ने विशेषज्ञों का ध्यान धूप और हवा के गुणकारी प्रभाव की तरफ खींचा।सूर्य की किरणें चूंकि फेफडो़ व हास्पिटल के संक्रमण को नष्ट कर देती हैं अत एव संक्रमित मरीजों को धूप में लाना फायदेमंद हो सकता है।
दर असल याद कराने लायक है कि प्रथम विश्व युद्ध के समय मिलिटरी सर्जन संक्रमित घावों को विसंक्रमित करने के लिए धूप का नियमित प्रयोग करते थे। विसंक्रमण शक्ति के अलावा धूप मरीजों में विटामिन डी का सिन्थेसाइजेशन भी कर देती थी। आम के आम गुठली के दाम। सूर्य के इस लाभकारी पक्ष की खोज 1920 में हुई। मालुम होना चाहिये कि विटामिन डी की कमी से श्वसन संक्रमण और इन्फ्लूएंजा होने की संभावना बढ़ जाती है। धूप के गुणकारी प्रभाव का संबंध हमारे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति से है। धूप के गुणकारी प्रभाव से संक्रमण के प्रति हमारे शरीर की प्रतिक्रिया में बदलाव आता है।
प्रश्नोपनिषद में जीवन का प्रादुर्भाव सूर्य से माना गया है । ऋषि पिप्पलाद स्पष्ट कहते हैं कि हम आप सभी प्राणी और वनस्पति सूर्य की किरणों के माध्यम से पृथ्वी पर आते हैं । कर्म बन्धन से मुक्त होने पर उत्तरायणी गति पाने पर ही सूर्य को ओर निवर्तित हो पाते हैं ।
यह एक आध्यात्मिक निरूपण है पर इसका एक भौतिक कोन्नोटेशन भी है – यह कि सूर्य हमारी काया के विभिन्न स्तरों पर खासा प्रभाव रखता है और हम सब को उचित रूप से सूर्य की कोमल किरणों और शुद्ध वायु के बीच में जीवन जीने का भी अभ्यास करना चाहिए। आप सभी ने जैविक घडी़ के बारे में सुन रखा होगा । जैविक घडी़ यानी काया को दिन और रात , प्रकाश और अंधकार के प्रति संवेदनशील बनाने वाली प्राणि शरीर की बायोलाॅजिकल एक्टीविटी। जिसका मतलब है कि प्राणि जगत के लिए प्रकाश यानी सूर्य का प्रकाश बहुत जरूरी है। समुद्र तटों पर धूप सेकती सुन्दरियों और उनके मित्रों की तस्वीरें कभी न कभी आपने देखी होंगी। आखिर क्यों लोग धूप सेंकते हैं- क्योंकि यह शरीर को एक खास टेम्प्रेचर में अच्छा लगता है । मानव की धूप सेंकने की जैविक प्रवृत्ति उसे अनायास ही जीविनी शक्ति के वर्धित होने का भारी लाभ देता है ।
सूर्य और उसकी प्रणवंत किरणों के इस पक्ष को दृष्टिगत करते हुए इस महामारी के समय मीडिया स्वराज का आग्रह है कि कृपया घर की खिड़कियॉं खुली रखिये , क्रास वेन्टीलेशन होने दीजिये, बाल-सूर्य की किरणों को खिड़कियों-दरवाजों से हवा के साथ आने दीजिये, घर से बाहर मास्क लगाकर निकलिए ,बाहर से घर आने पर वस्त्रों सहित स्नान करिये ,हाथों , जूतों मोबाइल और ऐनक को सैनिटाइज करते रहिये । कोराना ही नहीं हर तरह के इनफेक्शन से बचेंगे।
लेखक दिनेश कुमार गर्ग एक पत्रकार, अध्यापक और उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग में संपादक तथा उप निदेशक रहे हैं .