कोरोना में ज़िम्मेदारी की ईद

मरियम हिसाम सिद्दीक़ी

ईद दुनिया भर के मुसलमानों का ऐसा त्योहार है जिसकी प्रतीक्षा साल भर रेहती है। प्रतीक्षा करने वालों में अधिकांश बच्चे और महिलाएँ होती हैं। भारत अकेला ऐसा देश है जहां सदियों से ईद की खुशियों में मुसलमानों के साथ बड़ी तादाद में उनके हिंदू भाई भी शामिल होते रहे हैं। इस बार की ईद कोरोना Covid – 19  जैसी भयानक महामारी की वजह से देश में लगे लॉकडाउन के ६२ वें दिन पड़ रही है। बड़ी संख्या में लोग सोच रहे थे कि आखिर इस साल ईद पर देश के मुसलमान क्या  करेंगे?

  मुसलमानों ने  वही किया जो देश के ज़िम्मेदार नागरिकों को करना चाहिए था। किसी भी बड़ी मुस्लिम संस्था, राजनीतिक पार्टी या धार्मिक केंद्र की ओर से कोई दिशा निर्देश जारी होते, इससे पहले  ही साधारण मुस्लिम नागरिकों विशेषकर महिलाओं ने सोशल मीडिया के द्वारा एक दूसरे से यह अपील करने लग गई कि इस साल हम ईद के अवसर पर नये कपड़े नही बनाएँगे.

 पूरी – पूरी रात महिलाओं से खचाखच भरे चूड़ियों और अन्य सौंदर्य  प्रसाधन के बाजारों में नहीं जाएंगे। बच्चों के लिए घर में मौजूद जो सब्से अच्छे कपड़े होंगे उन्हें पहनाकर अपने अपने घरों में ही ईद मनाएंगे।

 न किसी के घर ईद मिलने जाएंगे और ना किसी को घर बुलाएंगे।  बात केवल ईद ना मनाने तक सीमित  नहीं है । मुस्लिम समाज की महिलाओं और पुरुषों ने एक बड़ा फ़ैसला यह भी किया कि ईद की खरीदारी  करने से बचें. पैसों में कुछ और पैसे मिलाकर उन गरीबों की मदद करेंगे जो लॉकडॉउन की इतनी लम्बी अवधि के करण भुखमरी की हालत तक पहुंच गए हैं।  भूखे  प्यासे और परेशान हाल लोगों में जाट  पात , वर्ग या धर्म न देखने और सभी की मदद करने का निर्देश इस्लाम में पैगंबर हजरत मोहम्मद (स•आ•व)  ने शुरू में ही दे दिया था जिस पर मुसलमान आज भी प्रतिबद्ध  हैं। 

यह भी एक सुखद आश्चर्य है कि इस बार गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करने की अपीलों के दौरान मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह का ज़िक्र शायद इतिहास में सर्वाधिक हुआ। महिलाओं को एक दूसरे से कहते सुना गया कि अगर  प्रेमचंद की कहानी का हीरो हामिद ईद में मिले पैसों का इस्तेमाल अपनी दादी के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी चिमटा खरीदने का फ़ैसला कर सकता था तो हम चिमटा ही नहीं दुनिया की सबसे ज़्यादा ज़रूरी किसी गरीब की भूख  मिटाने के लिए अपने पैसों का इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते ? 

            भोपाल, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और लखनऊ तक के बाजारों में ईद की खरीदारी करने के लिए निकली बहुत ही कम तादाद में महिलाओं से खरीदारी ना करने की अपील मेगाफोन के ज़रिए करते कई मुस्लिम महिलाओं को देखकर सिर्फ अच्छी अनुभूति ही नहीं हुई। मेगाफोन से अपील करने वाली  महिलाओं  ने अफ़वाहों को तोड़ने का भी काम किया  है जिन अफ़वाहों के द्वारा मुस्लिम महिलाओं की छवि केवल घरों में खाना खाने बनाने और बच्चे पैदा करने की मशीन जैसी प्रचारित की जाती रही है।

 मेगाफोन लेकर बाजारों में निकली इन महिलाओं ने साबित कर दिया कि मुस्लिम महिलाएँ  अब न तो अशिक्षित हैं ना बच्चे पैदा करने की मशीनें हैं, बल्कि उनका भी देश और समाज के सरोकारों और परेशानियों से उतना ही गहरा संबंध है जितना किसी बड़े बुद्धि जीवी या लेखक को हो सकता है। 

     

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