लापरवाही और डरना छोड़िए अब समुदाय ने ही कोरोना को हराना है

दैनिक भास्कर भोपाल संस्करण के मुखपृष्ठ की तस्वीर डराने वाली हैं। श्मशान में चिता जलाने की जगह नही हैं। आज तक की ख़बर ( के अनुसार लखनऊ में श्मशान को चारों ओर से ढका जा रहा है ताकि वास्तविक तस्वीरों को छुपाया जा सके।अस्पतालों में जगह नही है। देश के कई हिस्सों में कोरोना से मारे जा चुके लोगों की चिता जलाने के लिए इंतज़ार करना पड़ रहा है । https://www.aajtak.in/india/uttarpradesh/story/lucknow-baikunth-dham-shamshan-ghat-cremation-viral-video-action-boundary-corona-deaths-1239348-2021-04-15 ) 

कोरोना की पहली लहर के बाद वर्ष 2021 की शुरुआत में जनवरी, फरवरी माह में प्रतिदिन कोरोना मरीज़ों की संख्या कम रही तो अप्रैल आते-आते अब एक दिन में दो लाख से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव सामने आ रहे हैं।
भारतीय जनता को भी कोरोना से डर मीडिया में कोरोना की खबरों के बाद लगता है। पुलिस की सख्ती के बाद ही मास्क निकलता है। हरिद्वार में हुए कुंभ के दौरान सामाजिक दूरी का पालन करने के सभी नियमों की धज्जियां उड़ाई गई तो दर्शकों की मौजूदगी में हुए ‘रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज़’ और भारत और इंग्लैंड के बीच हुए शुरुआती क्रिकेट मैचों में दर्शक बिन मास्क के जिस तरह से बैठे थे उससे लगता है कि कोरोना सिर्फ़ दिल्ली के मरकज़ में शामिल कुछ जमातियों के लिए ही था।

 किसान आंदोलन और पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाड, पुडुचेरी विधान सभा के चुनाव प्रचारों में कोरोना को दरकिनार कर दिया गया।
इस बार कोरोना पिछली बार से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है और सीधे फेफड़ों पर वार कर रहा है। बच्चों के स्कूल खुलने पर चर्चा, युवाओं की नौकरियां तो अब दूर की बात लगने लगी हैं अभी जान बचाना मुश्किल है। विनोद कापड़ी की डॉक्यूमेंट्री 1232 KMs की कहानी फिर दोहराई जा रही है।
सरकार जब कोरोना से लड़ने के हर मोर्चे पर विफल साबित रही है तो अब समुदाय को ही समुदाय की रक्षा के लिए आगे आना होगा। अपनी ही जनता जिन्हें पिछले साल हमने प्रवासी मज़दूर बोल कर रास्तों में छोड़ दिया था अब हमें उनकी हर कदम पर सहायता करनी होगी।
कोरोना मरीज़ों को गम्भीर स्थिति में अब भी प्लाज़्मा थेरेपी दी जा रही है।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत उत्तराखंड, किच्छा निवासी अलीम खान द्वारा लोक सूचना अधिकारी , राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी से यह जानकारी मांगी गई थी कि दिनांक 13/11/2020 तक सुशीला तिवारी में कितने मरीज़ों को प्लाज़्मा थेरेपी दी गई तथा उन मरीज़ो में से कितनों की प्लाज़्मा थेरेपी के बाद मृत्यु हुई और कितने मरीज़ो को बचाया जा सका । इसकी सूचना यह प्राप्त हुई थी कि दिनांक 13/11/2020 तक कुल 172 रोगियों को प्लाज़्मा थेरेपी प्रदान की थी जिसमें से 142 रोगी जीवित रहे और 30 रोगियों की मृत्यु हुई।
देहरादून में मोहित शेट्टी और आकाश छाबड़ा द्वारा सोशल मीडिया पर ‘रक्तमित्र उत्तराखंड परिवार देहरादून’ नाम से ग्रुप बनाए गए हैं जो कोरोना के गम्भीर मरीज़ों के परिवारों का प्लाज़्मा दानदाताओं से सम्पर्क करवा रहे हैं।मोहित बताते हैं कि पहली लहर के दौरान एक दिन में प्लाज़्मा की जरूरत वाली 40-50  कॉल आती थी, पिछले 4 दिनों से यह आंकड़ा 400-500 पहुंच गया है।  प्लाज़्मा दानदाताओं की इतनी मांग होने के बावजूद दिन के सिर्फ 4-5 डोनर प्लाज़्मा दान के लिए आगे रहे हैं। उनमें से पहली लहर के दौरान प्लाज़्मा दान करने वाले ही ज़्यादा लोग आगे आए हैं। नए प्लाज़्मा दानदाता आगे नही आ रहे हैं। बार-बार प्लाज़्मा दान करने के कारण एक ही प्लाज़्मा दानदाता के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है।
हल्द्वानी के रहने वाले अभिनव वार्ष्णेय और शैलेन्द्र सिंह दानू भी इसी तरह का एक ग्रुप ‘वन्देमातरम ग्रुप हल्द्वानी’ चला रहे हैं जो कोरोना के गम्भीर मरीज़ों के लिए प्लाज़्मा दानदाताओं की पहुंच आसान कर रहे हैं। अभिनव बताते हैं कि कुमाऊं क्षेत्र में अभी स्थिति इतनी गम्भीर नही हुई है, बरेली से प्लाज़्मा दानदाताओं की मांग बहुत अधिक आ रही है। उत्तराखंड से बाहर जाकर इलाज करा रहे मरीज़ों के परिवार वाले वहां सम्पर्क न होने की वज़ह से प्लाज़्मा के लिए वापस इन्हीं समाजसेवियों को कॉल कर रहे हैं।
देहरादून के रहने वाले अंकुर अग्रवाल के पिता राकेश कुमार कोरोना पॉजिटिव होने के बाद देहरादून के सिनर्जी अस्पताल में भर्ती हैं। वह बताते हैं कि शहर में न तो रेमडेसिवर उपलब्ध है और न ही प्लाज़्मा दानदाता मिल रहे हैं।देहरादून के ही अक्षय नेगी के माता-पिता कोरोना पॉजिटिव होने के बाद दून अस्पताल में भर्ती हैं, उनके पिता को प्लाज़्मा की जरूरत थी। रक्तमित्र ग्रुप की मदद से प्राप्त हुए प्लाज़्मा में से एक – एक यूनिट अक्षय के पिता और दूसरे मरीज़ को चढ़ाई गई, अब तीन- चार दिन बाद चढ़ने वाली दूसरी यूनिट की व्यवस्था ‘रक्तमित्र उत्तराखंड परिवार देहरादून’ और ‘वन्देमातरम ग्रुप हल्द्वानी’ जैसे सोशल मीडिया ग्रुपों के हवाले है।पहले से ही रक्त की कमी से जूझने वाले ब्लडबैंकों के पास कोरोना से उबर चुके लोगों के प्लाज़्मा की भारी कमी बनी हुई है।
भारतीय जनता को अब कोरोना के साथ जीना सीखना होगा और इससे बचने के उपाए सामाजिक दूरी का पालन करने के साथ ही मास्क से दोस्ती करनी होगी। देश की स्वास्थ्य सेवाएं ध्वस्त हो चुकी हैं, योग करते हुए सुरक्षित रहकर कोशिश करिए कि आपको अस्पताल जाने की जरूरत ही न पड़े।
हिमांशु जोशी, उत्तराखंड।

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