आखिर रसौषधियों नें कोरोना नियंत्रण मे आयुर्वेद की भूमिका तय कर दी

                             

डा आर अचल
डा आर अचल

पिछले साल जब पहली बार कोरोना महामारी ने भारत मे दस्तक दिया था ।वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र में अफरा-तफरी का माहौल था,उस समय भारत के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि कोरोनो के इलाज में आयुष की कोई भूमिका नहीं है।इस बयान को लेकर आयुर्वेद जगत काफी आलोचना हुई। प्रधान मंत्री को आयुर्वेद चिकित्सको के एक प्रतिनिधि मंडल से आन लाइन बात करनी पड़ी।इसके बावजूद आयुर्वेदिक सेनेटाइजर बनाने की भूमिका मिली।इसके बाद पुनः आयुर्वेद के कुछ विद्वानो के आवाज उठाने पर बचाव व रोगप्रतिरोधक क्षमता वृद्धि के लिए आयुष मंत्रालय ने आयुष काढ़ा,हल्दी दूध,च्यवनप्रास आदि का एक प्रोटो काल जारी किया , जिसे जनता ने खूब अपनाया ।आयुर्वेद कालेजों एवं आयुर्वेद के सरकारी चिकित्सको को एलौपैथी चिकित्सकों की भूमिका दी गयी ।

इस तरह एक साल गुजर गये।जब कोरोना कोविड की दूसरी लहर आयी तो पुनःएक बार देश में हड़बड़ाहट मच गयी । दूसरी लहर की मारकता ने भयवह स्थिति उत्पन्न कर दिया। पुनःलोग काढ़े,गिलोय,हल्दी दूध की ओर लौटने लगे।स्थिति ऐसी हो गयी की लोगो ने काढ़ा को ही आयुर्वेद मान लिया ।

आयुर्वेद चमत्कारी,जल्द असरकारी रस,भस्मों से चिकित्सा करने वाले विद्वान चिकित्सको एवं आचार्यो(प्रोफेसर्स) ग्लानि से भरने लगे,क्योकि पिछले लगभग बीस सालो से रस भस्मो के विरुद्ध एक भ्रामक षडयंत्र रचा गया कि इसके प्रयोग से गुर्दे,लीवर खराब हो रहे है। जिसके लिए आयुर्वेद के लोगो ने कम्पनियों की गुणवत्ता हो दोष देकर रस-भस्मो का प्रयोग बंद कर दिया।हाँलाकि आयुर्वेद के प्रसिद्ध चिकित्सक रस-भस्मो के प्रयोग के बल बल पर एलोपैथी चिकित्सको के समानान्तर परिणाम देते रहे ,पर इसके बावजूद सरकारी व संस्थानिक स्तर पर आयुर्वेद के नाम पर जड़ी-बूटियों का प्रचार किया जाता रहा,उन्ही के शोध प्रयोग पर खर्च किया जाता रहा।ऐसा लगने लगा था कि रसशास्त्र पाठ्क्रम की एक औपचारिकता है। परन्तु रस भस्मो के प्रयोग करने वाले आयुर्वेदिक चिकित्सको को विश्वास था कि शास्त्रो में वर्णित रस-रसायनो का गुण-धर्म व्यर्थ नहीं हो सकता है।

इसलिए वे अपने आस्थावान रोगीयों की चिकित्सा देने लेगे।,परिणाम आने लगा ।इसके बाद इस संदर्भ मे रसशास्त्रियो  ने अखबारो,वेब न्यूज पोर्टल पर अनेक लेख लिखे।मेरा लेख भी मीडिया स्वराज व दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ। काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के रसशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. आनन्द चौधरी  ने प्रेसकांफ्रेंस कर अखबारो में बयान दिया कि आयुर्वेद केवल काढा नहीं है,कविड चिकित्सा के लिए आयुर्वेद के रसशास्त्र मे कारकर औषधियाँ है।प्रो.चौधरी ने मंत्रालय व उत्तरदायी संस्थाओं पत्र लिखा।इसके पश्चात आयुष मंत्रालय के प्रोटोकाल में रस-भस्म से निर्मित औषधियों को शामिल किया गया।

मीडिया स्वराज व ईस्टर्न साइंटिस्ट शोध पत्रिका ने कोरोना काल में आयुर्वेद पर एक परिचर्चा श्रृखला शुरु की है,बीएचयू सहित देश भर के आयुर्वेद आचार्यो ने रस शास्त्रीय औषधियों का अपना प्रयोग साझा किया। प्रेरित होकर देश हजारो आयुर्वेद चिकित्सको ने रसौषधियो के माध्यम से चिकित्सा कर लोगो की जान बचाने लगे।इस संबंध नेशनल आयुर्वेदिक स्टूडेंट एवं यूथ फेडरेशन ने अपने सदस्यो के माध्यम से देश भर में ऐसे चिकित्सको की सूची जारी की है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि केरल,तमिलनाडु,महाराष्ट्र सरकारो में आयुर्वेद चिकित्सको को रसौषधियों के प्रयोग के साथ कोरोना नियंत्रण अभियान में शामिल कर सफलता प्राप्त की है।

अंततःआज सुखद स्थिति है कि रस-भस्मो का भय खत्म हो चुका है,कोरोना कोविड चिकित्सा में इसके प्रयोग से लोगो के प्राण उबर रहे है।ये प्रयोग आयुर्वेद कई केन्द्रिय संस्थानों में भी हो रहे है जिसके अच्छे परिणाम की सूचनाये मिल रही है,यह समाचार मिल रहे है महीनो न बिकने वाली दवाओ की बाजार में कमी हो गयी है,फिर भी आयुर्वेद मे एक रोग की बहुत सारी दवाओं के कारण आयुर्वेद चिकित्सक इलाज कर रहे है।इसे यह कह सकते है कोरोना ने आयुर्वेद रसशास्त्र व आचार्य नागार्जुन  का उद्धार कर दिया या यों कहे तो  रसौषधियों ने कोरोना नियंत्रण में आयुर्वेद की भूमिका तय कर दी।

इस्तेमाल हो रही प्रमुख रसौषधियॉं

अंततःआज सुखद स्थिति है कि रस-भस्मो से प्रायोजित भय खत्म हो चुका है,कोरोना कोविड चिकित्सा में इसके प्रयोग से लोगो के प्राण उबर रहे है।ये प्रयोग आयुर्वेद कई केन्द्रिय संस्थानों में भी हो रहे है जिसके अच्छे परिणाम की सूचनाये मिल रही है,यह समाचार मिल रहे है महीनो न बिकने वाली दवाओं जैसे लक्ष्मीविलास रस,त्रिभुवनकीर्तिरस,श्वासकासचिन्तामणि रस,वसंतमालिनी रस,अभ्रक भस्म,त्रयलोक्य चिन्तामणि रस,कस्तूरी भैरवरस,चन्द्रामृत रस,गोदंती भर्म,महाज्वरांश रस,जयमंगलरस आदि की बाजार में कमी हो गयी है,फिर भी आयुर्वेद मे एक रोग की बहुत सारी दवाओं के कारण आयुर्वेद चिकित्सक इलाज कर रहे है।

इसे यह कह सकते है कोरोना ने आयुर्वेद रसशास्त्र व आचार्य नागार्जुन  का उद्धार कर दिया या यों कहे तो  रसौषधियों ने कोरोना नियंत्रण में आयुर्वेद की भूमिका तय कर दी है ।

(नोट-किसी भी दवा का प्रयोग चिकित्सक के परामर्श से ही करें स्वयं चिकित्सा करने हानि हो सकती है।)

 डॉ.आर.अचल संपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट शोध पत्रिका

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