कोरोना से डरे नहीं, आयुर्वेद के अस्त्र से लड़ें

बहुरूपिया कोरोना वायरस के नये संस्करण डेल्टा प्लस के दुनिया में भय व्याप्त है , क्योंकि अभी तक कोई सटीक इलाज नहीं ढूँढा जा सका है. पर वैद्य डा आर अचल कहते हैं कि डरने के बजाय धीरज के साथ आयुर्वेद के नियमों का पालन और औषधियों के सेवन से कोरोना का मुक़ाबला किया जा सकता हैं

                                                                                              डॉ.आर.अचल

एक कहावत है कि जो डर गया वो मर गया ।महामारी काल में अक्सर ऐसा होता है, भयावह सूचनाओं के कारण हमारे मन  में मृत्यु भय एक स्थाई भाव बन जाता है, जिससे हमारा आत्मबल, सत्वबल कमजोर हो जाता है, जिस स्थिति में  महामारी के सहज शिकार हो जाते है।कुछ ऐसा कोरोना  कोविड महामारी में भी हुआ है।

कोरोना के पहले दौर मे समूचा चिकित्सा जगत निर्विकल्प और स्तब्ध था।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अभी तक उहापोह की स्थिति में है, क्योंकि उसका चिकित्सा सिद्धांत रोगकारक अर्थात जीवाणु-विषाणु के विरुद्ध प्रभावी साल्ट के खोज पर निर्भर है, जबकि विश्व की सभी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में लक्षणों के आधार पर रोग के बजाय शरीर की चिकित्सा का सिद्धांत है।इसीलिए ऐसी स्थिति में ये प्रभावी होती है।

इसका सबसे सटीक उदाहरण है डेंगू, जिसकी चिकित्सा में पपीते का पत्ता और गिलोय, बकरी का दूध,एलोवेरा विकल्प बन गया ।इसीतरह कोविड महामारी में जब आधुनिक चिकित्सा में नित्या प्रोटोकाल बदला जा रहा था उसी समय भारत सहित चीन,ताइवान,वियतना,मेडागास्कर,कांगो आदि देशों में परम्परागत चिकित्सा विधियों में विकल्प खोजा जा रहा था, जो कोविड के दूसरे दौर में विकल्प बन कर उभरा है।

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा कोविड चिकित्सा प्रबंधन के लिए आयुष चिकित्सा पद्धतियों के प्रयोग की अनुमति व प्रोटोकाल जारी करने के बाद कुछ आयुर्वेद संस्थानों के साथ आयुर्वेद चिकित्सकों ने चिकित्सा करना शुरु किया, जिसका उत्साह जनक परिणाम देखने को मिला है. 

 कुछ चुने हुए आयुर्वेद चिकित्सकों के बातचीत करने पर ये दवायें व चिकित्सा विधि प्रभावी पायी गयी है। यही दवायें पिछले वर्ष आई.एम.एस आयुर्वेद बी.एच.यू वाराणसी सहित अनेक संस्थागत व निजी चिकित्सकों द्वारा प्रस्तावित की गयी थी।

दो वर्षों में यह देखने में आया है कि बसंत ऋतु में कोविड का संक्रमण हो रहा है, जिसकी शुरुआत मार्च में हो रही, अप्रैल-मई में पीक पर पहुँच रहा है, जून आते-आते प्रसार कमजोर पड़ जा रहा है।इसलिए इसके संक्रमण से बचने के लिए फरवरी-मार्च में विशेष सावधान रहने की जरूरत है।

शिशिर ऋतु में संचित सान्द्र कफ(रसतत्व) तरल होने लगता है जिससे पाचाग्नि मंद  हो जाती है जिसके कारण प्रतिश्याय(फ्लू)श्वास, कफ,कफजज्वर(न्यूमोनिया)आदि का संक्रमण सहजता से हो जाता है। कफ प्रकृति के व्यक्तियों में इसकी विशेष संभावना होती है। वातज प्रकृति के व्यक्ति इससे कम प्रभावित होते है।पित्तज प्रकृति के व्यक्ति नहीं के बराबर प्रभावित होते है।

कफ विकार के प्रकोप में(संक्रमण) मुँह का स्वाद मीठापन लिए कुछ नमकीन सा हो जाता है। मितली, अग्निमांदश्(भूख की कमी)  वमन(उल्टी), आलस, शरीर का भारीपन, नींद की अधिकता के बाद सर्दी-जुकाम हो जाता है। उपेक्षा गंभीर रोगों की स्थिति में पहुँचा देती है।इस समय कोरोना से संक्रमित रोगी के संपर्क मे आने से कोरोना भी हो सकता है।इसलिए ऐसी स्थिति मे विशेष सावधानी की जरूरत है।इस किसी भी प्रकार सर्दी जुकाम का लक्षण होने पर अकेले में रहना उचित है।

इन लक्षणों का पता चलते ही इन्हें रोक देना स्वास्थ्य रक्षा के पहले चरण में ही सफलता है।इसलिए फरवरी महीने से ही इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवायें जैसे च्यवनप्राश ,असगंध,कालमेघ,चिरायता,गिलोय मुलेठी, लताकरंज या कालीमिर्च,दालचीनी,धनियाँ,मुनक्का आदि के काढ़े का सेवन शुरु कर देना चाहिए।नाक में अणुतैल, षडविन्दु तैल, तुरवक तैल या गाय का घी डालना चाहिए।

इस समय सर्दी,जुकाम,थकावट,हल्का बुखार, स्वाद का अनुभव न होने से घबराने की जरूरत नहीं है, यह सामान्य मौसमी परेशानी भी हो सकती है या कोरोना भी हो सकता है, परन्तु दोनों परिस्थितियों के लिए एक चिकित्सा प्रभावी होती है।कुछ ऐसे भी लोग होते है, जिन्हें कोई परेशानी नहीं होती है परन्तु आलस्य़, थकावट का अनुभव हो सकता है, जाँच करने पर कोविड पाजिटिव पाया जाता है।ऐसी स्थिति में भी घबराने की आवश्यकता नहीं है।15 दिन एकांत में विश्राम करने हुए उपरोक्त दवायें लेनी चाहिए।

इन दोनों परिस्थितियों में लक्ष्मीविलासरस, त्रिभुनवकीर्तिरस, गोदंतीभस्म, टंकण भस्म,चन्द्रामृतरस आदि से प्रयोग आशातीत सफलता मिली है।चिकित्सकों के अनुसार अलाक्षणिक या लक्षण वाले रोगियों पर शत प्रतिशत सफलता मिली है।ऐसे रोगी 10 से 15 दिनों से स्वस्थ हो गये है, गंभीर स्थिति में पहुँचने से बच गये है।

कोविड के पहले चरण की उपेक्षा के कारण रोगियों सूखीखाँसी,100 से 103 डिग्री बुखार,अरुचि, भूख न लगने, कमजोरी की शिकायत पायी गयी है।इस स्थिति में भी उपरोक्त दवाओं के साथ व्योषादि बटी या लवंगादि वटी चूसने तथा सितोपलादि या तालिशादि चूर्ण में अभ्रक भस्म मिला कर शहद के साथ लेने या कनकासव या सिरसादि या भारंग्यादि क्वाथ या वासावलेह लाभ मिला है. इस स्थिति में धतूरे, अरुषे का पत्र या अजवाई, कपूर,लौंग को पानी में उबाल कर भाप लेने से तत्काल लाभ मिलता है।इनके प्रयोग से दो-तीन दिन में आराम मिल जा रहा है, परन्तु दवा का सेवन 15 से 20 दिनों तक करना चाहिए।चिकित्सकों के अनुसार 10 से 14 दिनों जाँच रिपोर्ट भी निगेटिव हो जाती है। रोगी गंभीर स्थिति से जाने बच जाता है।

दोनों चरणों में उचित चिकित्सा न मिलने पर रोगी गंभीर स्थिति में पहुँच जाते है।इस स्थिति में साँस लेने में कष्ट,कमजोरी,बुखार,सीने में भारीपन,बोलने, चलने में परेशानी,डिसेन्ट्री आदि लक्षण पाये गये हैं।इस साल ऐसे रोगियों पर इन्हेलर, आक्सीजन प्रयोग किया है, जिसके लिए अफरा-तफरी मच गयी थी।परन्तु सफलता नहीं मिली है।इसके विपरीत आयुर्वेद चिकित्सकों ने प्रथम चरण में प्रयुक्त दवाओं के साथ श्वास कास  चिन्तामणिरस,त्रैलोक्य चिंता मणिरस. समीपन्नगरस,मलचंद्रोदय आदि के प्रयोग से सफल कोविड चिकित्सा का प्रबंधन किया है।श्वासकष्ठ में उपरोक्त भाप लेने से तत्काल लाभ मिला है।

*कोविड संक्रमण काल में सबसे अधिक खतरा टीवी,दमा,एलर्जी,एड्स,लीवर,गुर्दे,सुगर के रोगियों पर हो रहा है इसलिए ऐसे लोगों को विशेष सावधान रहना चाहिए।ऐसे लोगों को भीड़-भाड़ से बचते हुए अपनी नियमित दवाओं के साथ इम्यूनिटी बढाने वाली दवायें सेवन करना चाहिए।भय-भ्रम नकारात्मक सूचनाओं एवं दृश्य से बचना चाहिए।योग, स्वाध्याय आदि में मन लगाना चाहिए।

आयुर्वेद संस्थानों एवं विभिन्न राज्यों के निजी  डाक्टरों  के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस से डरे नहीं आयुर्वेद के अस्त्र से लड़ें जिसमें कोरोना पर विजय सुनिश्चित है।

 वैद्य डा आर अचल , देवरिया, संपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट जर्नल एवं संयोजक सदस्य-वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस

(अनुभव संदर्भ-प्रो.जे.एस.त्रिपाठी,डा.सुशील कुमार दूबे,प्रो.बी.के द्विवेदी-आई.एम.एस आयुर्वेद बी.एच.यू.वाराणसी, डा.रमनरंजन-असि.प्रो.पटना आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज बिहार,डा.संजयकुमार सिन्हा-लखनऊ,डॉ.धनवंतरि त्यागी हापुड़, डा.रुचि भारद्वाज-दिल्ली,डॉ.इन्द्रजीत यादव-देवरिया,प्रो.पी.के.गोस्वामी-डायरेक्टर नार्थ ईस्ट इन्टिट्यूट आफ आयुर्वेद एवं होम्योपैथी शिलांग, डॉ मदन गोपाल वाजपेयी-आयुषग्राम चित्रकूट,प्रो.ब्रजेश मिश्रा नागपुर,प्रो.जी.आर.आर भट्टाचार्य-चैन्नई,डा.प्रशान्त तिवारी भोपाल, डा.उदय कुलकर्णी नासिक, आदि के लेखक स्वयं)

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