जानें, COP26 सम्मेलन में एक हफ्ते में क्या हुआ?
31 अक्टूबर से शुरू हुआ ग्लासगो सम्मेलन 12 नवंबर तक चलेगा
31 अक्टूबर से शुरू हुआ ग्लासगो सम्मेलन 12 नवंबर तक चलेगा. 13 दिनों तक चलने वाले इस वैश्विक शिखर सम्मेलन का आयोजन इस साल ग्रेट ब्रिटेन और इटली ने मिलकर किया है. जलवायु परिवर्तन पर United Nations Framework Convention के 26वें Conference of the Parties (COP) और Paris Agreement के तीसरे मीटिंग से पूरी दुनिया भले ही उम्मीदें लगाए बैठी हो, पर जलवायु परिवर्तन को लेकर आवाज उठाने वाली 18 वर्षीय स्वीडन की कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग इसे वैश्विक नेताओं का दिखावा मात्र मानती हैं.
मीडिया स्वराज डेस्क
31 अक्टूबर से ग्रेट ब्रिटेन के ग्लासगो में शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन का पहला सप्ताह समाप्त आज शनिवार को पूरा हो गया है. 12 नवंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन को हालांकि अभी लंबी दूरी तय करनी है, लेेकिन अब तक की इसकी प्रगति से इस सम्मेलन में शामिल देशों के नेताओं को थोड़ी उम्मीद बंधी है कि छह साल पहले हुआ पेरिस जलवायु समझौता कारगर साबित हो रहा है.
न्यूज एजेंसी भाषा के मुताबिक, दुनिया की कई बड़ी शक्तियों ने इस दशक उत्सर्जन में कटौती के लिए उल्लेखनीय प्रतिबद्धताएं जताईं और निवल शून्य उत्सर्जनों की ओर बढ़ने का संकल्प लिया. कोयले से बिजली का उत्पादन बंद करना, वैश्विक स्तर पर मिथेन उत्सर्जन में कटौती का संकल्प, वनों की कटाई रोकना और नौवहन में निवल-शून्य उत्सर्जन संबंधी योजना समेत वैश्विक अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में कार्बन का इस्तेमाल कम करने के लिए नए गठबंधनों की भी घोषणा की गई.
COP 26 के नाम से जाना जाने वाला दो सप्ताह का यह शिखर सम्मेलन जलवायु संकट से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की अहम परीक्षा है. पेरिस समझौते के तहत, देशों को हर पांच साल में उत्सर्जन कम करने के लिए और महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय योजनाएं बनाने की आवश्यकता है. कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण एक साल की देरी के बाद इस साल नई योजनाएं बनाई जा रही हैं.
शिखर सम्मेलन में अब तक लिए गए संकल्प वैश्विक उत्सर्जन वक्र को नीचे की ओर मोड़ना शुरू कर सकते हैं. मेलबर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माल्टे मीनशौसेन समेत विशेषज्ञों के एक दल ने विश्वसनीय अनुमान लगाया है कि यदि नए संकल्पों के लिए पर्याप्त धन मुहैया कराया जाता है और उन्हें पूरा किया जाता है, तो ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ को इस सदी में 1.9 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने भी इसी प्रकार का निष्कर्ष निकाला है.
यह असल प्रगति है. पृथ्वी की प्रणाली शिखर सम्मेलनों में किए वायदों से नहीं, बल्कि पर्यावरण में बदलाव के लिए वास्तविक कदम उठाने पर ही प्रतिक्रिया देती है इसलिए संकल्पों को पूरा करने के लिए वित्तीय मदद, आवश्यक नीतियों और ऊर्जा एवं भूमि इस्तेमाल के क्षेत्र में कदम उठाए जाने की आवश्यकता है.
इस दशक में विनाशकारी ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से बचने के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने संबंधी आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है. ग्लासगो में वार्ता के दूसरे सप्ताह के दौरान 2030 तक आवश्यक उत्सर्जन की कमी का लक्ष्य हासिल करने पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाएगा. यह खासकर इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि (कोविड-19 के कारण पिछले साल आई कमी के बाद) 2021 में वैश्विक उत्सर्जन के तेजी से बढ़ने की आशंका है.
बता दें कि पिछले सप्ताह बिडेन ने ग्लासगो में आयोजित वर्ल्ड लीडर समिट आफ कोप 26 (COP26) शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शामिल नहीं होने पर निराशा जताई थी. उन्होंने कहा था, चीनी राष्ट्रपति के लिए COP26 में शामिल न होना एक बड़ी गलती है. बाकी दुनिया चीन की ओर देख रही है और पूछ रही है कि वे क्या योगदान दे रहे हैं. उन्होंने दुनिया और COP26 में मौजूद लोगों का भरोसा खोया है. बता दें कि कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन दुनिया का सबसे बड़ा वर्तमान उत्सर्जक है. वहीं, अमेरिका दूसरा और रूस टॉप 5 देशों में से एक है.
वैश्विक कार्रवाई: बड़ी शक्तियों ने ग्लासगो में क्या योगदान दिया?
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र के पिछले जलवायु शिखर सम्मेलन के बाद से हमने जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में की जाने वाली कोशिशों में बढ़ोतरी देखी है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में दो-तिहाई से अधिक योगदान देने वाले दुनिया के 100 से अधिक देशों ने निवल शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए निश्चित तिथियां निर्धारित की हैं.
ग्लासगो शिखर सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, जापान, कनाडा, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड समेत दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने अपने 2030 लक्ष्यों को मजबूत किया. जी7 समूह के देशों ने 2030 तक अपना सामूहिक उत्सर्जन आधा करने का संकल्प लिया.
विकासशील दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने भी COP 26 में नई प्रतिबद्धताएं जताईं. चीन ने 2060 तक निवल-शून्य उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा और अपने 2030 के लक्ष्यों को मजबूत किया. उसकी इस दशक के अंत तक उत्सर्जन चरम पर पहुंचाने की योजना है. भारत ने भी 2070 तक निवल-शून्य लक्ष्य हासिल करने और अक्षय ऊर्जा स्थापना में बढ़ोतरी का संकल्प लिया. भारत में 2030 तक देश की आधी बिजली का उत्पादन नवीकरणीय स्रोतों से किए जाने का लक्ष्य रखा गया है.
COP 26 के शुरुआती दिनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में कार्बन का उत्सर्जन बंद करने की घोषणाएं की गईं. ब्रिटेन ने घोषणा की कि वह कोयले का उत्पादन बंद करेगा और उसने कोयले से बिजली का उत्पादन बंद करने के लिए नए वैश्विक गठबंधन की शुरुआत की.
दुनिया के 100 से अधिक देशों ने 2030 तक मीथेन उत्सर्जन 30 प्रतिशत तक करने के नए संकल्प पर हस्ताक्षर किए. 120 से अधिक देशों ने 2030 तक वनों की कटाई रोकने का भी संकल्प लिया. अमेरिका भी उन देशों के गठबंधन में भी शामिल हो गया है, जो वैश्विक नौवहन में निवल-शून्य उत्सर्जन हासिल करने की योजना बना रहे हैं.
लेकिन इस सप्ताह विकसित देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में गरीब देशों की मदद के लिए हर साल 100 अरब डॉलर देने के एक दशक पुराने अपने वादे को पूरा करने से चूक गए. जलवायु परिवर्तन से निपटने संबंधी कदमों के लिए वित्तीय मदद संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करना वार्ता के दौरान भरोसा कायम करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
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ग्लासगो के पहले सप्ताह में छह साल पहले पेरिस में किए गए वैश्विक वादों की तुलना में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक कदम उठाए गए, लेकिन इस सम्मेलन के परिणाम ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आवश्यक कदमों को उठाने से चूक गए.
कई विकासशील देश चाहते हैं कि अमीर देश किसी नए लक्ष्य का संकल्प लेने से पहले जलवायु परिवर्तन से निपटने संबंधी कदमों के लिए वित्तीय मदद देने की दिशा में अधिक प्रतिबद्धता बढ़ाएं. क्या ग्लासगो में आम सहमति बन पाएगी? इसके लिए शिखर सम्मेलन की अगले सप्ताह होने वाली बैठकों पर गहरी नजर रखनी होगी.