वन्यजीवों का संरक्षण कैसे हो

वन्यजीवों से फसलों के नुकसान के लिये फसल बीमा का प्रावधान होना चाहिये

डॉ दीपक कोहली

प्रकृति और अन्य वन्यजीवों की प्रजातियों के महत्व को पहचानने के लिए वन्यजीवों का संरक्षण आवश्यक है। वन्यजीवों में ऐसे वनस्पति और जीव (पौधे, जानवर और सूक्ष्मजीव) शामिल हैं, जिनका मनुष्यों के द्वारा पालनपोषण नहीं होता हैं।वन्य जीवों, वनस्पतियों और उनके आवासों की सुरक्षा करना ही संरक्षण है।  लुप्तप्राय पौधें और जानवरों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक निवासस्थान के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान करने के लिए वन्यजीवों का संरक्षण महत्वपूर्ण है

सबसे प्रमुख चिंता का विषय यह है कि वन्यजीवों के निवासस्थान की सुरक्षा किस प्रकार की जाए ताकि भविष्य में वन्यजीवों की पीढ़ियां और यहां तक की इंसान भी इसका आनंद ले सकें। मनुष्य द्वारा बड़े पैमाने पर जंगली जानवरों और पक्षियों की हत्या, एक गंभीर खतरा है जो कि वन्य जीवन अपने अस्तित्व के लिए सामना कर रहा है। जिसके कारण खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिक तंत्र अस्तव्यस्त हो जाती हैं।

हम एक उदाहरण की मदद से बेहतर समझ सकते हैं, एक जंगली जानवर के रूप में सांप की त्वचा से फैंसी चमड़े के सामान को बनाने की बहुत ज्यादा मांग है, इसलिए साँप की त्वचा बाजार में ऊंची कीमत पर बेचीं जाती है। आसानी से पैसा कमाने के लिए कुछ लोगों ने बड़ी संख्या में सापों को अंधाधुंध मारना शुरू कर दिया,  जिसकी वजह से खाद्य श्रृंखला में बाधा आती है और प्रकृति में असंतुलन पैदा होता है।  सांप किसान के दोस्त होते है, क्योंकि यह कीड़े, चूहें जो कि फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, इनको खा लेते हैं इसलिए, प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और संरक्षण के लिए वन्य जीवन को संरक्षित करना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

भारत की पारिस्थितिक भौगोलिक दशाओं में विविधता के कारण यहां अनेक प्रकार के जीवजंतु भी पाये जाते हैं। संपूर्ण विश्व में कुल जीवजंतुओं के 15,00000 ज्ञात प्रजातियों में से लगभग 81,000 प्रजातियां भारत में मिलती हैं। देश में स्वच्छ और समुद्री जल की मछलियों की 2500 प्रजातियां हैं। भारत में पक्षियों की 1200 प्रजातियां तथा 900 उपप्रजातियां पायी जाती हैं। अफ्रीकी, यूरोपीय एवं दक्षिणपूर्वी एशियाई जैवतंत्रों के संगम पर अवस्थित होने के कारण भारत में इनमें से प्रत्येक जैवतंत्र के विचित्र प्राणी भी पाये जाते हैं। जहां लकड़बग्घा एवं चिंकारा अफ्रीकी मूल के हैं। वहीं भेड़िया, हंगल जंगली बकरी यूरोपीय मूल के हैं। इसी तरह दक्षिणपूर्ण एशियाई जैवतंत्र के जानवरों में हाथी हूलक गिबन प्रमुख हैं।

वन्य जीवन के समुचित अध्ययन हेतु भारत को पांच पारिस्थितिकीय उपक्षेत्रों में विभक्त किया गया है

1. हिमालय पर्वत श्रृंखला: इस पुनः तीन उपक्षेत्रों में विभाजित किया गया है:

a.हिमालय की तलहटी: उत्तरी भारत के स्तनपायी, जैसेहाथी, सांभर, दलदली हिरण, चीतल तथा जंगली भैंस इस क्षेत्र में पाये जाते हैं।

b.पश्चिमी हिमालय (उच्चतम क्षेत्रों पर): जंगली गधा, जंगली बकरी, भेड़े, जंगली हिरण तथा कस्तूरी हिरण इत्यादि इस क्षेत्र में पाये जाते हैं।

c.पूर्वी हिमालय: इस क्षेत्र में लाल पांडा, सूअर तथा रीछ इत्यादि पाये जाते हैं।

2. प्रायद्वीपीय भारतीय उपक्षेत्र: इस क्षेत्र को निम्नलिखित दो भागों में बांटा गया है:

a.प्रायद्वीपीय भारत: इस क्षेत्र के अंतर्गत हाथी जंगली सुअर, दलदली हिरण, सांभर, बारहसिंगा 4 सींगों वाला हिरण, जंगली कुत्ता तथा जंगली कुत्ता तथा जंगली सैंड पाए जाते हैं।

b.राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र; रेगिस्तानी बिल्ली, जंगली गधा इत्यादि इस क्षेत्र में पाये जाते हैं।

3. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन क्षेत्र: इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है तथा यहां जानवरों की बहुतायत है। यहां हाथी, लंगूर इत्यादि पाये जाते हैं।

4. अंडमान निकोबार द्वीप समूह: यहां भारी संख्या में स्तनपायी, रेंगने वाले पशु तथा समुद्री जीव पाये जाते हैं। स्तनपायी जीवों में चमगादड़ चूहों की प्रधानता है। ये कुल स्तनपायी जीवों का 75 प्रतिशत है। सुअर तथा हिरण इन द्वीप समूहों के अन्य प्रधान पशु हैं। समुद्री जीवों में डॉल्फिन तथा हेल इत्यादि प्रमुख हैं। इस क्षेत्र में विविध प्रकार के दुर्लभ पक्षी भी पाये जाते हैं।

5.सुन्दरवन का ज्वारीय दलदली क्षेत्र: इस क्षेत्र में मछली, नरभक्षी शेर, बुनकर चीटियां, हिरण, सुअर तथा बड़ी छिपकलियां पायी जाती हैं।

संकटापन्न जीवजन्तु प्रजातियां:

 

मानवीय गतिविधियों के कारण पिछले कुछ वर्षों से अनेक जीवजंतुओं की संख्या तेजी से लुप्त होती जा रही है। ऐसे जीवों के संरक्षण के प्रति विश्व भर में प्रयास किए जा रहे हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर नेचर एंड नैचुरल रिसोर्सेज (आई.यू.सी.एन.) मान्यता प्राप्त संस्था द्वारा वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त जीवों और पेड़पौधों का एक सूचीबद्ध आंकड़ा तैयार किया जाता है, जिसे रेड डाटा बुक कहते हैं। रेड डाटा बुक में नामित जीव के संरक्षण की कवायद पूरी दुनिया में शुरू कर दी गई है। इसी प्रयास के तहत् भारत के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने भी 9 मार्च, 2011 को जारी एक रिपोर्ट में 57 जीवों को क्रांतिक संकटग्रस्त जीव घोषित किया है। इस रिपोर्ट में क्रांतिक संकटग्रस्त जीवों को 7 विभिन्न वर्गोंपक्षी, स्तनधारी, सरीसृप, उभयचर, मछली, मकड़ी तथा कोरल में रखा गया है।

आई.यू.सी.एन. क्रांतिक संकटग्रस्त श्रेणी में किसी जीव को रखने से पहले निम्नांकित पांच शर्तों के आधार पर उस जीव पर मंडरा रहे संकट पर विचार करती है

1.पिछले 10 वर्षों में या तीन जेनरेशन में उस जीव की 80 प्रतिशत से भी अधिक आबादी कम हो गई हो।

2.उस जीव के भौगोलिक परिवेश में बहुत तेजी से बदलाव आया हो।

3.एक ही जनेरशन में या पिछले तीन वर्षों में उस जीव की आबादी या तो 25 प्रतिशत कम हुई है या उस जीव की आबादी कम होकर 250 रह गई हो।

4.वयस्क जीवों की आबादी 50 से भी कम रह गई हो।

5.उस जीव के जंगलों से विलुप्त होने का खतरा हो।

पक्षी वर्ग के क्रांतिक संकटग्रस्त जीवों में जार्डन नुकरी (जार्डन काउसर), जंगली खूसट या जंगली उल्लू, सफेद तोंदल, बगुला, सफेद पीठवाला गिद्ध, स्लैन्डर तोंदल गिद्ध, लंबी तोंदल गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध, बंगाल लोरीकेन, हिमालयन बटेर, गुलाबी सिर वाली बतख, सामाजिक टिटहरी, चम्मच तोंदल बाटन, साइबेरियाई सारस शामिल हैं।

स्तनधारी जीवों में पिग्मी हॉग, अंडमान श्वेत दंत छछूदर, जैन्किन अंडमान श्वेत दंत छछूदर, निकोबार श्वेत दंत छछूदर, कोन्डारा चूहा, विशाल चट्टानी चूहा या एलविरा रेट, नामदफा उड़न गिलहरी, मालाबार कस्तूरी, सुमात्राई गेंडा, जावाई गेंडा क्रांतिक संकटग्रस्त जीवों में शामिल हैं। सरीसृप वर्ग के जीवों में घड़ियाल, बाजठोंठी कछुआ, चर्मपिच्छक कछुआ, छोटा नदी कछुआ (रीवन टेरेपीन), लाल सिर वाला रूफैड कछुआ, सिसपारा डे छिपकली संकटग्रस्त जीवों में शामिल हैं।

उभयचर जीवों में अनामलाई लायिंग फ्रॉग, गुंडिया इंडियन फ्रॉग, केरला इंडियन फ्रॉग, चार्ल्स डार्विन फ्रॉग, कोटिझर बबलनेस्ट फ्रॉग, अमबोली बुश फ्रॉग, केलाजोड्स बबलनेस्ट फ्रॉग, छोटी झाड़ी वाला मेंढक, हरी आंखों वाला बुश मेंढक, ग्रीट झाड़ी मेंढक, कालिकट झाड़ी मेंढक, मार्क्स बुश फ्रॉग, मुनारबुश फ्रॉग, लार्ज पोंगुडी बुश फ्रॉग, सुशीलस बुश फ्रॉग, शिलांग बबलनेस्ट फ्रॉग, टाइगर बुश टोड संकटग्रस्त जीवों में शामिल हैं। मछलियों में पांडिचेरी शार्क, गंगोय शार्क, नाइफ टूथ सॉफिश, लार्ज काम्ब सॉफिश या नैरो स्नॉट सॉफिश, रामेश्वरम् आरनामेंटल या रामेश्वरम् पेराशूट स्पाइडर, पीकॉक टैनेन्दुला संकटग्रस्त जीवों में शामिल हैं। कोरल जीव की फायर कोरल नामक प्रजाति को संकटग्रस्त जीवों में शामिल किया गया है।

देश में संकटग्रस्त जीवजंतु प्रजातियों में लगातार वृद्धि के कारण वन्यजीव व्यवस्था और संरक्षण के लिए काफी उपाय किए गए हैं। वन्य जीव संरक्षण के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने सरकारी और गैरसरकारी संगठन केन्द्र स्थापित किये हैं। भारत में वन्य जीव प्रबंधन के उद्देश्य हैं

wildlife and ecosystem
wildlife important for ecosystem

1.प्रजातियों के नियंत्रित एवं सीमित उपयोग के लिए प्राकृतिक आवासों का संरक्षण करना।

2.संरक्षित क्षेत्रों में (राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, बायोस्फीयर रिजर्व, आदि) पर्याप्त संख्या में प्रजातियों का रखरखाव करना।

3.वनस्पति और जीव प्रजातियों के लिए बायोस्फीयर रिजर्व की स्थापना करना।

कानून के जरिए संरक्षण

 

4.संरक्षित नेटवर्क क्षेत्र: वन्य जीव का संरक्षण संरक्षित क्षेत्रों का एक संपीडक निकाय है। संरक्षित क्षेत्र की विभिन्न उद्देश्यों हेतु विभिन्न श्रेणियां होती हैं। इसके अंतर्गतराष्ट्रीय पार्क, अभयारण्य, जैव आरक्षित क्षेत्र, नेचर रिजर्व्स, प्राकृतिक स्मारक, सांस्कृतिक परिदृश्य आदि।

वन्य जीवन के संरक्षण के लिए 1952 में केन्द्रीय सलाहकार समिति बनायी गयी थी। इसे इण्डियन बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। इस आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं और इसके सदस्य प्रकृति विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् होते हैं। इसके अतिरिक्त देश में अन्य अनेक ऐसी संस्थाएं भी हैं जो वन्यजीव के सरंक्षण तथा प्रबंधन में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे हैं। इन संस्थाओं में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, मुंबई; वाइल्ड लाइफ प्रिजर्वेशन सोसायटी ऑफ इण्डिया, वाइल्ड लाइफ फड ऑफ इंडिया आदि उल्लेखनीय हैं।

भारत में वन्यजीवन की सुरक्षा के लिए दो प्रकार के निवास स्थानों का निर्माण किया गया हैपशुविहार और राष्ट्रीय उद्यान। पशु विहारों में पक्षियों और पशुओं की सुरक्षा की व्यवस्था की गयी है, जबकि राष्ट्रीय उद्यानों में सम्पूर्ण पारिस्थितिकी की। देश में इस समय लगभग 513 पशु विहार या अभयारण्य हैं, जबकि 99 राष्ट्रीय उद्यान हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग 15,63,492 वर्ग किलोमीटर है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.5 प्रतिशत है। वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए एक सेन्ट्रल जू अथॉरिटी का भी गठन किया गया है, जिसका उद्देश्य देश के वन्यप्राणी उद्यानों के प्रबंधन की देखरेख करना है। देहरादून में एक वन्य प्राणी संस्थान की भी स्थापना की गयी है।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता तथा वन्य जीव संरक्षण आदि सम्बन्धी अंतर्राष्ट्रीय संयाजनों की मुख्य एजेंसी है। भारत की वन्य जीव संरक्षण सम्बन्धी 5 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशनों में भी महत्वपूर्ण भागीदारी है। भारत विश्व विरासत स्थलों की सूची बनाने के लिए उत्तरदायी वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स का सदस्य है जो की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक दोनों ही प्रकार के स्थलों को शामिल करता है। मंत्रालय का वन्य जीव विभाग विश्व विरासत के प्राकृतिक स्थलों से जुड़ा हुआ है। भारत में विश्व स्तर के प्राकृतिक स्थलों के महत्व को देखते हुए वर्ल्ड हैरिटेज बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम फॉर इंडियाः बिल्डिंग पार्टनरशिप टू सपोर्ट यूनेस्कोज वल्र्ड हैरिटेज प्रोग्राम नाम से अंतरराष्ट्रीय सहायता प्राप्त परियोजना आरंभ की गई है। भारत ने विश्व में व्हेलों की संख्या बढ़ाने के संदर्भ में अति सक्रिय भूमिका निभाई है। इसके अतिरिक्त भारत ने कोएलिशन एगेंस्ट वाइल्ड लाइफ ट्रेफिकिंग (सी.डब्ल्यू..टी.) में भाग लेकर वन्य जीवों के अवैध व्यापार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के साथ मिलकर कार्य किया है। 1982 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण संस्थान की स्थापना की गई। यह संस्थान पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन स्वायत्तशासी संसथान है जिसे वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान के रूप में मान्यता दी गई है।

पर्यावरणविदों के अनुसार वर्ष 2018 में बाघ जनगणना हेतु प्रयोग किये गए कैमरा ट्रैप्स में लगभग 17 बाघ अभयारण्यों में बाघों के अतिरिक्त अन्य घरेलू जानवरों (पालतू कुत्ते) की उपस्थिति को भी रिकार्ड किया गया है। विशेषज्ञों का मत है कि बाघ अभयारण्यों में घरेलू जानवरों की उपस्थिति से बाघों समेत अन्य जंगली जानवरों को बीमारियाँ हो सकती हैं, जिससे वन्यजीव पारिस्थितिकी में व्यापक पैमाने पर गिरावट होने की संभावना है। वर्ष 2019 में ही कैनाइन डिस्टेंपर वायरस जो कि वन्यजीव अभयारण्यों और उनके आसपास रहने वाले संक्रमित कुत्तों के माध्यम से प्रसारित हुआ था, अब वन्यजीव वैज्ञानिकों के बीच चिंता का विषय बन गया है। पिछले वर्ष गिर के जंगल में 20 से अधिक शेर वायरल संक्रमण का शिकार हुए थे। यही कारण है कि जंगली जानवरों में इस वायरस के चलते होने वाली बीमारी को फैलने से रोकने के लिये राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण  द्वारा कुछ दिशानिर्देश तैयार किये गए हैं।  जहाँ एक ओर गंभीर बीमारियों से जंगली जानवरों की मृत्यु हो रही है तो वहीं मानववन्यजीव संघर्ष तथा पारिस्थितिकी संवेदी क्षेत्रों में हो रहा निर्माण कार्य भी वन्यजीव पारिस्थितिकी को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है। मानववन्यजीव संघर्ष भारत में स्थानिक है। इसे आमतौर पर विकास गतिविधियों की नकारात्मकता और प्राकृतिक आवासों में गिरावट के रूप में चित्रित किया जा सकता है।

भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्सा ही संरक्षित क्षेत्र के रूप में विद्यमान है। यह क्षेत्र वन्यजीवों के आवास की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है।

भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्सा ही संरक्षित क्षेत्र के रूप में विद्यमान है। यह क्षेत्र वन्यजीवों के आवास की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है।

एक ओर संरक्षित क्षेत्रों का आकार छोटा है, वहीं दूसरी ओर रिज़र्व में वन्यजीवों को पर्याप्त आवास उपलब्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त बड़े वन्यजीवों जैसेबाघ, हाथी, भालू, आदि के शिकारों के पनपने के लिये भी पर्याप्त परिवेश उपलब्ध नहीं हो पाता। उपर्युक्त स्थिति के कारण वन्यजीव भोजन आदि की ज़रूरतों के लिये खुले आवासों अथवा मानव बस्तियों के करीब आने को मजबूर होते हैं। यह स्थिति मानववन्यजीव संघर्ष को जन्म देती है। 

वर्तमान में सरकार द्वारा विभिन्न विकासात्मक एवं अवसंरचनात्मक गतिविधियों में वृद्धि के लिये विभिन्न नियम और कानूनों में छूट दी है, इससे राजमार्ग एवं रेल नेटवर्क का विस्तार संरक्षित क्षेत्रों के करीब हो सकेगा। इससे वन्यजीव पारिस्थितिकी में और अधिक गिरावट होने की आशंका व्यक्त की गई है। इससे पूर्व वाणिज्यिक लाभ तथा ट्रॉफी हंटिंग (मनोरंजन के लिये शिकार) के कारण पहले ही बड़ी संख्या में वन्यजीवों का शिकार किया जाता रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन ने भी वन्य जीवों को प्रभावित किया है या यूँ कहा जाए कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर वन्य जीवों पर पड़ता है तो गलत नहीं होगा। वन्य जीवों के प्रभावित होने से उनके प्राकृतिक पर्यावास नष्ट हो जाते हैं, जिससे वन्यजीव मानव बस्तियों की ओर पलायन करते हैं और इससे मनुष्यों वन्यजीवों के बीच संघर्ष बढ़ता है। 

भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी और वन्यजीव तथा उसके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम [wildlife (protection) act], 1972 लागू किया।इस अधिनियम को जनवरी 2003 में संशोधित किया गया था और कानून के तहत अपराधों के लिये सज़ा एवं जुर्माने और अधिक कठोर बना दिया गया। मंत्रालय ने अधिनियम को मज़बूत बनाने के लिये कानून में संशोधन करके और अधिक कठोर उपायों को शुरू करने का प्रस्ताव किया है।  इसका उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीव एवं पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है। 

वन्यजीवों के संरक्षण हेतु भारत के संविधान में 42वें संशोधन (1976) अधिनियम द्वारा दो नए अनुच्छेद 48 (A) 51 (A) को जोड़कर वन्यजीवों से संबंधित विषय को समवर्ती सूची में शामिल किया गया। वर्ष 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। यह एक व्यापक केंद्रीय कानून है, जिसमें विलुप्त हो रहे वन्यजीवों तथा अन्य लुप्तप्राय प्राणियों के संरक्षण का प्रावधान है। वन्यजीवों की चिंतनीय स्थिति में सुधार एवं वन्यजीवों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव योजना वर्ष 1983 में प्रारंभ की गई। 

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वन्यजीव संरक्षण का कार्य सिर्फ संरक्षित क्षेत्रों यथाराष्ट्रीय वन्यजीव पार्कों, टाइगर रिज़र्व आदि तक सीमित रहता है तो कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर खड़ी होंगी। उदाहरण के लिये, ग्रेट इंडिया बस्टर्ड वन्यजीव संरक्षण आधिनियम की सूची-1 (इस सूची में शामिल वन्यजीवों को हानि पहुँचाना समग्र भारत में प्रतिबंधित है) में शामिल है और इस पक्षी के लिये विशेष अभयारण्य भी स्थापित किया गया है फिर भी यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है। वन्यजीवों के लिये सुरक्षित क्षेत्र के साथसाथ इस प्रकार के संरक्षित क्षेत्र जो जन भागीदारी पर आधारित हैं, के निर्माण पर भी बल देना चाहिये।

मानववन्यजीव संघर्ष रोकने हेतु एकीकृत पूर्व चेतावनी तंत्र  की सहायता से नुकसान को कम करने के लिये प्रयास किया जा सकता है। इसके लिये खेतों में बाड लगाना तथा पालतू एवं कृषि से संबंधित पशुओं की सुरक्षा के लिये बेहतर प्रबंधन करना, आदि उपाय किये जा सकते हैं।

ऐसे वन्यजीव (हिरन, सुअर आदि) जो बाघ एवं अन्य बड़े पशुओं का भोजन है, के शिकार पर रोक लगानी चाहिये जिससे ऐसे पशुओं के लिये भोजन की कमी हो।

पशुओं के व्यवहार का अध्ययन कर उचित वन्यजीव प्रबंधन के प्रयास किये जाने चाहिये ताकि आपात स्थिति के समय उचित निर्णय लिया जा सके और मानववन्यजीव संघर्ष से होने वाली हानि को रोका जा सके।

वन्यजीवों से होने वाले फसलों के नुकसान के लिये फसल बीमा का प्रावधान होना चाहिये इससे स्थानीय कृषकों में वन्यजीवों के प्रति बदले की भावना में कमी आएगी, जिससे वन्यजीवों की हानि को रोका जा सकता है।

भारत में एलीफैंट कॉरिडोर का निर्माण किया गया है, इसी तर्ज पर टाइगर कॉरिडोर एवं अन्य बड़े वन्यजीवों के लिये भी गलियारों का निर्माण किया जाना चाहिये. इसके साथ ही ईकोब्रिज आदि के निर्माण पर भी ज़ोर देना चाहिये। हमारा प्रयास पारिस्थितिक तंत्र तथा विकास के मध्य संतुलन बनाने पर केंद्रित होना चाहिये। 

 

Dr Deepak Kohli
Dr Deepak Kohli

 डॉ दीपक कोहली

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 डॉ दीपक कोहली, संयुक्त सचिव, पर्यावरण, वन एवं‌ जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश सचिवालय, 5 /104, विपुल खंड, गोमती नगरलखनऊ– 226010( उत्तर प्रदेश)( मोबाइल – 9454410037 )

 

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