चितरंजन जी जनता के आदमी थे

कामरेड चितरंजन सिंह को दी गयी भाव भीनी श्रद्धांजलि

यशवंत, सम्पादक, भड़ास 4 मीडिया. काम 

चितरंजन भइया सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, हजारों हजार लोगों के लिए प्रेरक थे। ऐसा विनम्र, बेबाक, जीवट और योद्धा व्यक्तित्व जीवन में मैंने कम ही देखा। सही कहूं तो एकतरह से आम लोगों के भगवान थे, गरीबों वंचितों शोषितों के मसीहा थे। मेरे जीवन पर उनकी अमिट छाप रही है।एक दफे वे लखनऊ में हजरतगंज गांधी प्रतिमा के नीचे कुछ जनपक्षधर मुद्दों को लेकर आमरण अनशन पर थे। भीषण ठंढ का वक़्त था। दिन भर खूब भीड़ जमा रहती। भाषण माइक सब चलता बजता रहता। रात को चितरंजन भाई के पास बस गिने चुने एक दो लोग सोने के लिए रहते।

चितरंजन

तब अपन प्रचंड रूप से बिगड़ैल थे। बेरोजगार भी थे। रात होते ही चितरंजन भइया के पास जाकर सो जाता, बॉडीगार्ड की तरह। रात में जब कभी जगते वो तो मुझे अपने बगल में सिकुड़ कर सोते पाते। तब वो मुझे कायदे से कम्बल रजाई ओढ़ा देते। सुबह जब जंता आने लगती तो अपन चुपचाप निकल लेते। ये घटनाक्रम कई रात चलता रहा।मेरे अवचेतन में उनकी सुरक्षा को लेकर एक चिंता भाव था जिसे खुद रात में मौजूद रहकर अपने आप को आश्वस्त करता। अपन को रात काटनी होती। चाहें लखनऊ विश्वविद्यालय के नरेंद्र देव हॉस्टल में सोकर काटते या गांधी प्रतिमा के नीचे, क्या फरक पड़ना था

चितरंजन भइया ये किस्सा बेहद हुलस के साथ कई जगहों पर कई लोगों से शेयर किए थे। मेरी तारीफ में। मैं झेंप जाता और सोचता कि भइया मेरे छोटे से काम को कितना बड़ा बनाकर बताते और मुझे महानता बोध से जबरन भर देते हैं। छोटी छोटी चीजों में खुशियां तलाशने खुशियां बतियाने के वो जादूगर थे।चितरंजन जी जनता के आदमी थे। उनने अपने लिए कभी नहीं जिया। पूरा जीवन दूसरों को न्याय, सम्मान, अधिकार दिलाने के लिए लड़े। वे मेरे लिए ही नहीं बल्कि पिछले कई दशकों के करोड़ों के लोगों के लिए बहुमूल्य थे। ऐसे लोग मरा नहीं करते। ये थोड़े थोड़े हिस्से में हमारे आपके भीतर समा जाते हैं, सदा के लिए!

आपको आखिरी लाल सलाम कामरेड!

-यशवंत

 कामरेड चितरंजन सिंह को दी गयी भाव भीनी श्रद्धांजलि

वाराणसी | 27 जून 2020, प्रसिद्द मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं चिन्तक कामरेड चितरंजन सिंह की कल शाम को देहावसान हो गया जो पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे | उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु मानवाधिकार जननिगरानी समिति ने एक शोक सभा का आयोजन कर उन्हें भाव भीनी श्रद्धांजलि दिया व 2 मिनट का मौन रखकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया | आगे डा0 लेनिन रघुवंशी ने बताया कि कामरेड चितरंजन सिंह शुरू से ही मानवधिकारो के संरक्षण के लिए संघर्षरत रहे है और छात्र जीवन की राजनीति में भी नैतिकता व मूल्यों की परवाह रखते हुए छात्र राजनीती में एक अलग ही स्तम्भ के रूप में खड़े रहे | छात्र जीवन के बाद भी छात्र राजनीती से उनका रिश्ता बराबर बना रहा इसके साथ ही उन्होंने समाज में दलितों, वंचितों के उत्पीडन पर सवाल उठाये व संघर्ष किया तो साथ ही यदि बुद्दिजीवियो के हक़ हकूक के लिए भी अपनी आवाज को बुलंद किया | लगातार काम करते हुए वो पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे साथ ही इंसाफ के भी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे | इसी तरह तमाम मानवाधिकार संगठनो से जुड़े रहे और समय समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओ में लेख के माध्यमो से मानवाधिकार के संरक्षण को अपने स्वभाव के मुताबिक धार देते रहे | 

जीवन में बहुत ही सहज और सरल रहे गरीबो के लिए हमेशा एक मसीहा के रूप में खड़े रहे | आप उनकी सहजता का अनुमान एक साथी द्वारा बयान इस घटना से कर सकते है कि जाड़े की रात में जब वो घर से रिक्शे से निकले तो रिक्शे वाले के पास स्वेटर नहीं था उन्होंने अपना जैकेट उतार कर उसे दे दिया | ऐसे अनेको उदहारण उनके जीवन में रहे है कि मौके पर उनके पास जो उपलब्ध होता था वो तुरंत उसकी उस रूप में मदद करना उनकी आदत में शुमार था और आज तमाम मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वालो के लिए वो एक गुरु के रूप में थे और लोगो ने उनसे बहुत कुछ सिख कर अपने कार्य क्षेत्र में उसे अपनाकर आगे बढ़ रहे है |     

आगे उन्होंने कहा कि हमारी संस्था मानवाधिकार जननिगरानी समिति से शुरू से ही जुड़े रहे और संस्था के विभिन्न कार्यक्रमों में अपने विचारो का आदान प्रदान के माध्यम से अपना मार्गदर्शन देते रहे और व्यक्तिगत तौर पर भी समय समय पर मुझे और श्रुति नागवंशी को मार्गदर्शन देते रहे और व्यक्तिगत चुनौतियों में भी हमेशा एक बड़े भाई के रूप में हमें अपने आस पास दिखाई पड़ते रहे है |  

इस शोक सभा में डा0 मोहम्मद आरिफ, डा0 मुनीज़ा रफीक खान, डा0 महेंद्र प्रताप, श्रुति नागवंशी, शिरीन शबाना खान, जै कुमार मिश्रा और संस्था के तमाम साथी उपस्थित रहे |  

 

 

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