बचपन : कहना बहुत कुछ था पर सुनना किसी को ना था
डा सविता कुमारी श्रीवास्तव
सुबह से रात हो जाती है।
काम करते-करते, रात में ठीक से सोना भी नहीं होता कि सुबह हो जाती है ।
होटल मालिक की कर्कश भरी आवाज सुनकर सोनू चौंक कर उठ जाता है
‘हां मालिक बस अभी आया’ ‘सुबह के 7:00 बज गए तू अभी तक सोया है ‘ग्राहक आ जाएंगे तब तू उठेगा?
नहीं मालिक सोनू बेहद डरा हुआ एवँ सहमा था कि कहीं मालिक की मार न खानी पड़े ।
वह जल्दी से मुंह हाथ धो कर चाय बनाने की तैयारी करने लगता है ।
कुछ ही सेकंड में मालिक के चिल्लाने की आवाज आतीहै, अरे! लड़के ढेर सारे जूठे बर्तन पड़े हैं धुलने के लिए, रूक तेरी चर्बी बहुत चढ़ गई है कहते हुए एक जोरदार थप्पड़…उसके गाल पर पड़ता है ,सोनू के आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है।
नहीं मालिक मुझे मत मारिए मैं जल्द से जल्द सारा काम निपटा दूंगा।
सोनू की उम्र कुल 12 वर्ष पर उसके जीवन पर काम का बोझ ही बोझ था ।
उसे अपने बीमार मां का इलाज कराना था सो सोनू अपने बचपन को ढो रहा था, कहना बहुत कुछ था पर सुनना किसी को ना था
डाँ. सविता कुमारी श्रीवास्तव
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष(हिंदी)
हेमवती नंदन बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नैनी प्रयागराज