आख़िर उस युवती के बुरका पहनने का राज क्या था? वह क्या छिपाना चाहती थी?

 रचना सक्सेना
रचना सक्सेना

रचना सक्सेना, प्रयागराज 

काले बुरके को पहनकर जब भी वह घर से बाहर निकलती तो सीधे मेडिकल स्टोर तक ही जाती और बहुत धीमी आवाज मे बस वो दो ही चीज मॉगती “भईया एक बोरोप्लस और एक सेवलान दे दीजिये ‘ और जब वह पैसे देने के लिये हाथ बढ़ाती तो नवीन की ऑखे फटी की फटी रह जाती ।वह सोचता जिसके हाथ और आवाज दोनो इतने सुंदर है आखिर वह कितनी सुंदर होगी।वह हफ्ते मे एक या दो बार अवश्य आती थी लेकिन जब भी आती तो इन दोनो के सिवा कोई तीसरी दवा कभी न मॉगती थी।समय बीतता गया और वह इसी तरह आती रही।

एक दिन उसके आने का समय था और नवीन उस दिन अपनी दुकान का पूरा शटर न खोलकर थोड़ा सा ही शटर खोलकर अपने ग्राहको का इन्तजार कर रहा था वह दुकान पर आई ,थोड़ा सा शटर खुला देखकर अंदर चली गई लेकिन पल भर मे ही वह शटर बंद हो गया और उसे लगा कि किसी ने उसका बुरका उतार कर फेक दिया हो ।वह डर गई और चिल्लाने लगी ।तभी किसी ने उसके मुँह को कस कर दबा दिया ।वह सहम गई ।”आप घबड़ाऐ न बहन मै नवीन हूं ।आपके जिस्म पर दिख रहे घावो को देखकर मै आश्चर्यचकित हूं।’बहन शब्द सुनकर उसने चैन की श्वांस ली ।वह कुछ कह पाती उसके पहले ही नवीन ने उसे पानी पिला कर शांत किया और उसके जिस्म पर पड़े घॉव का रहस्य जानना चाहा ।सामने खड़े युवक से भाई जैसा प्यार पाकर वह चुप न रह सकी और बोली “मै वेश्या हूं लेकिन वेश्या की जिंदगी मै नही जीना चाहती ।मेरी खूबसूरती मेरे लिये अभिशाप है।मै अपने शौहर से बहुत प्रेम करती हूं और मेरा शौहर भी मेरे बगैर नही रह सकता ।उसका परिवार मुझे स्वीकार नही करेगा।जब भी वह मुझसे मिलने आते है मुंझे देखते ही अपने पर काबू नही रख पाते और जाते जाते उपहार मे यह घाव दे जाते है मै बड़े प्रेम से उनके आने तक दवा और मलहम लगा कर उनकी याद को ताजा रखती हूं।
बुरका इसलिये पहनती हूं जिससे किसी अन्य पुरूष की नजर मेरे जिस्म पर न पड़े।

रचना सक्सेना
लेखन विधा—गद्य – लघुकथा और कहानीपद्य – छंद मुक्त रचनाएं, गीत और गजल.
प्रकाशित कृतियाँ— एकल और साझा.
एकल – सृजन समीक्षा, द्वंद, किसकी रचना.

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