बुंदेलखंड़ : मनरेगा में काम न मिला तो प्रवासी मजदूर बने ‘भगीरथ’!

  आर जयन 

बांदा। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही महानगरों से लौटे प्रवासी मजदूरों को गांवों में मनरेगा योजना के तहत काम देने का दावा कर रही हो, परन्तु बुंदेलखंड़ के बांदा जिले में हकीकत इसके उलट है। यहां भंवरपुर गांव में जब आधा सैकड़ा प्रवासी मजदूरों को काम न मिला तो ‘भगीरथ’ बनकर लगभग समाप्त हो चुकी छोटी नदी ‘घरार’ को पुनर्जीवित करने की ठानी है।
इस छोटी नदी ‘घरार’ का उद्गम स्थान सीमावर्ती मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की घाटी है। जो भंवरपुर गांव से होते हुए बांदा जिले की बागै नदी में मिलती है। इसके कुछ दूरी पर केन नदी है। केन और बागै नदी में आने वाली बाढ़ का पानी उलट कर घरार नदी में जाता है और भंवरपुर सहित कई गांव हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। रखरखाव के अभाव में घरार नदी कई जगह समतल मैदान में बदल चुकी है तो कई जगह यह नाला जैसी हो गयी है। जल निकासी का समुचित प्रबंध न होने से इसमें आने वाला पानी बाढ़ की शक्ल में बस्ती को नुकसान पहुंचाता रहा है।
 

करीब डेढ़ हजार की आबादी वाला यह भंवरपुर गांव बिल्हरका ग्राम पंचायत का अंश या मजरा है। यहां लॉकडाउन की वजह से हाल ही में सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर तय कर करीब दो सौ प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हुई है। इन मजदूरों ने निर्धारित पृथकवास की अवधि पूरी कर जब ग्राम प्रधान से महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम मांगा तो ग्राम प्रधान ने हाथ खड़े कर लिये। लिहाजा मजदूरों ने एक बैठक कर लगभग समाप्त हो चुकी घरार नदी को श्रमदान के जरिये पुनर्जीवित करने के लिए एकमत हो गए और ‘भगीरथ’ बनकर पिछले तीन दिनों से 50-60 मजदूर नदी की खोदाई में जुटे हैं।
     

श्रमदान कर रहे प्रवासी मजदूर सजीवन ने बताया कि “सभी मजदूरों ने पृथकवास की अवधि पूरी कर ली है और सभी के पास मनरेगा जॉब कार्ड भी हैं। लेकिन ग्राम प्रधान ने काम न होने का बहाना बनाकर काम देने से मना कर दिया है।” बकौल सजीवन, “मनरेगा में काम न मिलने पर करीब पांच दर्जन मजदूरों ने बैठक कर गांव से निकली छोटी नदी घरार की खोदाई कर उसकी जल निकासी का समुचित प्रबंध करने की ठानी है और तीन दिनों से 50-60 मजदूर इस काम में लगे हैं।”
 

महिला मजदूर रामबाई ने बताया कि “हर साल केन और बागै नदी में आई बाढ़ का पानी उलटकर घरार नदी से उनकी बस्ती में घुसकर मकान गिरा देता रहा है, अब इसकी साफ-सफाई होने से बाढ़ का पानी आसानी से निकल जायेगा और उनके घर बच जाए करेंगे।” एक अन्य महिला मजदूर आशा ने बताया कि “यह काम श्रमदान से किया जा रहा है। ग्राम प्रधान इसको मनरेगा में जोड़ने से मना किया है।” हालांकि, इस गांव के ग्राम प्रधान ने कहा कि “प्रवासी मजदूरों ने उनसे काम नहीं मांगा और अपनी मर्जी से घरार नदी की खोदाई करने लगे हैं।”
   

इस संबंध में बांदा के जिलाधिकारी अमित सिंह बंसल कहते हैं कि “जिले की 451 ग्राम पंचायतों में मनरेगा का काम चल रहा है, जो प्रवासी मजदूर पृथकवास की अवधि पूरी कर चुके हैं  , उन्हें मनरेगा में काम दिया जा रहा है।” बकौल जिलाधिकारी, “तालाब, नदी और नाला की जहां भी खोदाई हो रही है, वह मनरेगा के तहत हो रही है। कोई मजदूर श्रमदान नहीं कर रहा है। रही बात भंवरपुर गांव की तो जानकारी की जाएगी।”
 

 

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