चीन के साथ सीमा पर तनाव : गांधी जी होते तो क्या करते?

अखिलेश श्रीवास्तव

चीन के साथ सीमा पर तनाव के बाद बड़े ही आश्चर्यजनक रूप से भाजपा और संघ के साथ बहुत से मार्क्सवादी समूह, मुक्तिवादी और तथाकथित गाँधीवादी एकसुर में चीन से अंतराष्ट्रीय व्यापार का बहिष्कार करने की सलाह दे रहे हैं। यह एकता अप्रत्याशित है। इस सलाह के पीछे हालांकि चीन के साथ युद्ध में हार जाने के डर का मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र की बुनियादी समझ का अभाव ही मुख्य वजह है।

इतने बड़े स्तर पर इस विचार को लोगों के समर्थन से इसने पूरी दुनिया में यह धारणा बनाई है मानो इसे भारत के तमाम राजनैतिक और वैचारिक समूहों का समर्थन हो जबकि इस समर्थन से भारत की विश्व के देशों में भद्द पिट गई। इसकी जाँच करते हैं ।

विश्व व्यापार संगठन की सलाह पर जब दुनिया के देशों ने उदार अर्थव्यवस्था को अपनाया तो केवल 1990 से 2000 के बीच पूरी दुनिया में 100 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ गये, जिसमें सबसे ज्यादा लगभग 40 करोड़ चीन में और बाकी भारत और अफ्रीका देशों के गरीब थे। जिन्होंने चीन का इतिहास पढ़ा है उन्हें पता होगा कि माओ ने जब अपने लोगों को कहा कि कृषि छोड़कर लोहा गलाओ तब लगभग 10 करोड़ चीनी भुखमरी की कगार पर आ गये थे और हजारों की मौत भुखमरी से हो गयी थी।

अब अगर इन लोगों की चीन से अंतराष्ट्रीय व्यापार बंद करने वाली सलाह मान ली जाए, तब वह 40 – 50 करोड़ चीनी जो गरीबी रेखा से ऊपर आ चुके हैं फिर उसी गरीबी में चले जाएंगे और भूखों मरेंगे। मैं भारत की जनता की स्थिति पर बाद में आता हूँ। भारत की लड़ाई चीनी जनता के साथ है या चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ? युद्ध एक राजनैतिक सवाल है या आर्थिक? अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आत्मनिर्भरता का विलोम है या पूरक? किसी भी अर्थशास्त्री या मार्क्स ने ऐसा कहीं लिखा है कि युद्ध की स्थिति में आर्थिक संबंध विच्छेद कर लेना चाहिए? कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो में या दास कैपिटल में इसका कोई सन्दर्भ आता है ? हमलोग कैसे मनुष्य हैं? बर्बर?

अंतराष्ट्रीय व्यापार का जनक डेविड रेकार्डो को माना जाता है जिनका जन्म 1772 में हुआ। जिन्होंने अर्थशास्त्र समझना शुरू किया वेल्थ ऑफ़ नेशंस पढ़ने के बाद। वेल्थ ऑफ़ नेशंस लिखा था आदम स्मिथ ने जिन्हें आधुनिक अर्थशास्त्र का जनक माना जाता है, जिनका जन्म 1723 में हुआ था। मार्क्स, जिन्होंने डेविड रिकार्डो को पढ़ा और उन्हें उन्नीसवीं सदी का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री करार दिया जबकि मार्क्स खुद 1818 में जन्में थे। उन्होंने यह दुख प्रकट किया कि रिकार्डो ने अपने क्लास कनफ्लिक्ट वाले सन्दर्भ को आगे नहीं बढ़ाया क्योंकि वे कम आयु में स्वर्ग सिधार गये।
क्या गांधी जी ने कहीं युद्ध के समय दुश्मन देश से व्यापार बंद करने की बात की है? गांधी जी की बहुत प्रसिद्ध उक्ति है, “मैं अपने घर के सारे दरवाजे और खिड़कियां खुली रखना चाहता हूँ”। गांधी जी अगर आज होते तो चीन के भारतीय सीमा में घुस आने पर क्या कहते और क्या करते? गांधी जी कहते चीनी सेना को भारतीय सीमा से बाहर करना चाहिए, इसके लिए युद्ध होता है तो हो, पर उसे अपनी सीमा में बर्दाश्त करना तो परले दर्जे की कायरता है और कायरता अहिंसा का निषेध है। कुछ तथाकथित गांधीवादी क्या सिखा रहे हैं – कायरता!

गांधी जी खुद क्या करते? अगर वे शासनाध्यक्ष होते तो अकेले सीमा पर चले जाते खाली हाथ और चीनी सेना को रोकने की कोशिश करते! उनके साथ लाखों सत्याग्रही मनुष्य सीमा पर चले जाते और गांधी जी उनसे कहते कि चीनी सेना को हर हाल में रोकना है और तब तक जूझना है जब तक चीनी सैनिक आपकी हत्या न कर दें या आप घायल होकर अशक्त न हो जायें। आप तो न हिंसा सिखा रहे हैं न अहिंसा। आप तो कायरता सिखा रहे हैं।

लेखक अखिलेश श्रीवास्तव का चित्र
अखिलेश श्रीवास्तव एडवोकेट

(अखिलेश श्रीवास्तव प्रख्यात लेखक हैं) 

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