बिरसा मुंडा जेल नहीं, अब इसे बिरसा मुंडा संग्रहालय कहिये जनाब!

भगवान बिरसा से जुड़ी छोटी बड़ी हर यादों को केंद्र व राज्य सरकारों ने मिलकर यहां बड़ी ही खूबसूरती से सहेजा है. आप भी जरूर आइए…

कभी जिस जेल में झारखंड के भगवान ने अंग्रेजों के जुल्म सहते हुए अपनी आखिरी सांसें ली थीं, आज रांची का वही जेल अद्भुत बिरसा मुंडा संग्रहालय का रूप ले चुका है. सोमवार 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जन्मतिथि और जनजातीय गौरव दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस संग्रहालय का आनलाइन लोकार्पण किया.

मीडिया स्वराज डेस्क

झारखंड में भगवान माने जाने वाले आदिवासियों के मसीहा बिरसा मुंडा से जुड़ी कई स्मृतियां अब देश और प्रदेश वासियों के बीच जीवंत हो चुकी हैं. बिरसा मुंडा जेल में बिरसा मुंडा से जुड़ी सारी स्मृतियों को संग्रहालय में परिवर्तित कर आम जनता के दर्शनार्थ रख दिया गया है. आप भी जरूर आइए…

15 नवंबर 2021 को उनकी जयंती के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने इसका ऑनलाइन लोकार्पण किया. प्रधानमंत्री इस दिन भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस के कार्यक्रम में मौजूद रहे और वहीं से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए झारखंड की राजधानी रांची स्थित बिरसा मुंडा संग्रहालय का ऑनलाइन लोकार्पण किया.

मालूम हो कि केंद्र सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती को प्रतिवर्ष जनजातीय गौरव दिवस के रूप में पूरे देश में मनाने की घोषणा की है. इस कार्यक्रम में झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सहित अन्य अतिथि भी रांची से जुड़े थे.

रांची जेल नहीं, अब इसे बिरसा मुंडा संग्रहालय कहिये जनाब!
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों के उलगुलान (क्रांति) के प्रणेता बिरसा मुंडा ने जिस रांची जेल में अपने प्राण त्यागे थे, वहां लोग अब उनकी स्मृतियां देखी जा सकती हैं. केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त सहयोग से बिरसा मुंडा स्मृति संग्रहालय सह उद्यान बनकर तैयार है.

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों के उलगुलान (क्रांति) के प्रणेता बिरसा मुंडा ने जिस रांची जेल में अपने प्राण त्यागे थे, वहां लोग अब उनकी स्मृतियां देखी जा सकती हैं. केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त सहयोग से बिरसा मुंडा स्मृति संग्रहालय सह उद्यान बनकर तैयार है.

यह देश भर में पहला जनजातीय म्यूजियम है. यहां भगवान बिरसा के जीवन से जुड़ी जानकारियों के साथ राज्य के अन्य आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में विस्तार से बताया गया है. यहां पर्यटन की आधुनिकता और विरासत की पारंपरिक झलकियों का खूबसूरत संगम दिखेगा. हालांकि आम आदमी के लिए यह म्यूजियम तीन महीने के बाद खोला जाएगा.

म्यूजियम के मेन गेट से प्रवेश करते ही 120 साल पहले बने जेल दिखेगा. बाईं ओर भगवान बिरसा मुंडा की 25 फुट ऊंची आदमकद प्रतिमा दिखाई देगी. इस जेल का निर्माण ब्रिटिश शासन काल में कैप्टन विलकिंसन ने कराया था.

म्यूजियम के मेन गेट से प्रवेश करते ही 120 साल पहले बने जेल दिखेगा. बाईं ओर भगवान बिरसा मुंडा की 25 फुट ऊंची आदमकद प्रतिमा दिखाई देगी. इस जेल का निर्माण ब्रिटिश शासन काल में कैप्टन विलकिंसन ने कराया था. यह वही समय था, जब यहां कैद किए गए आदिवासी क्रांतिकारियों की बढ़ती संख्या के कारण रांची को जिला घोषित किया गया था. जेल की नई संरचना को आज भी उसी रूप में संरक्षित किया गया है.

वर्ष 1900 में भगवान बिरसा मुंडा को उनके उलगुलान विद्रोह के लिए गिरफ्तार करके यहां लाया गया था. रांची में स्थापित इस संग्रहालय एवं उद्यान के निर्माण में कुल 142 करोड़ की लागत आई है. इसमें केंद्र एवं राज्य, दोनों सरकारों ने सहयोग किया है. यह स्मृति स्थल कई मायनों में अनूठा है. यहां भगवान बिरसा मुंडा (Birsa Munda) की 25 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसका निर्माण जाने-माने मूर्तिकार राम सुतार के निर्देशन में हुआ है.

रांची शहर के बिल्कुल बीचोबीच स्थित इस परिसर में पहले सेंट्रल जेल हुआ करती थी, जिसे लगभग एक दशक पहले होटवार नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया. अब यह पुरानी और ऐतिहासिक जेल परिसर ऐसे संग्रहालय के रूप में विकसित होकर तैयार है, जहां बिरसा मुंडा के साथ-साथ 13 जनजातीय नायकों की वीरता की गाथाएं प्रदर्शित की गई हैं.

रांची शहर के बिल्कुल बीचोबीच स्थित इस परिसर में पहले सेंट्रल जेल हुआ करती थी, जिसे लगभग एक दशक पहले होटवार नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया. अब यह पुरानी और ऐतिहासिक जेल परिसर ऐसे संग्रहालय के रूप में विकसित होकर तैयार है, जहां बिरसा मुंडा के साथ-साथ 13 जनजातीय नायकों की वीरता की गाथाएं प्रदर्शित की गई हैं.

सिद्धो-कान्हू, नीलांबर-पीतांबर, दिवा किशुन, गया मुंडा, तेलंगा खड़िया, जतरा टाना भगत, वीर बुधु भगत जैसे जनजातीय सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अद्भुत लड़ाई लड़ी थी. इन सभी की प्रतिमाएं भी संग्रहालय में लगाई गई हैं. इन सभी के जीवन और संघर्ष की गाथा यहां लेजर लाइटिंग शो के जरिए लोगों को प्रदर्शित की जाएगी.

जेल के जिस कमरे में बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी, वहां भी उनकी एक प्रतिमा लगाई गई है. पास के स्थल को इस तरह विकसित किया गया है कि वहां बिरसा की जन्मस्थली उलिहातू की झलक दिखे. जेल के चार बैरक को मिलाकर लाइट एंड साउंड शो के जरिए भगवान बिरसा मुंडा की पूरी जीवनी दिखाई जाएगी.

जेल के जिस कमरे में बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी, वहां भी उनकी एक प्रतिमा लगाई गई है. पास के स्थल को इस तरह विकसित किया गया है कि वहां बिरसा की जन्मस्थली उलिहातू की झलक दिखे. जेल के चार बैरक को मिलाकर लाइट एंड साउंड शो के जरिए भगवान बिरसा मुंडा की पूरी जीवनी दिखाई जाएगी. यहां करीब 15 लोग एकसाथ इस शो को देख सकेंगे. बिरसा मुंडा के जन्म, संघर्ष से लेकर उनके निधन तक के दृश्य दिखाए जाएंगे.

जेल के एक बड़े हिस्से को अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल की तर्ज पर विकसित किया गया है. इसकी दीवारों को मूल रूप में संरक्षित किया गया है. इसमें पुरातत्व विशेषज्ञों की मदद ली गई है. जेल का मुख्य गेट इस तरह बनाया गया है कि वहां 1765 के कालखंड की स्थितियां और उस वक्त के आदिवासियों के रहन-सहन और जीवनशैली को जीवंत किया जा सके. जेल का अंडा सेल, अस्पताल और किचन को भी पुराने स्वरूप में संरक्षित किया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें:

गोवा की पुरानी जेल प्रेरणास्थल बने : रमा शंकर सिंह

संग्रहालय से जुड़े उद्यान में म्यूजिकल फाउंटेन, इनफिनिटी पुल और कैफेटेरिया का भी निर्माण कराया गया है. फाउंटेन के पास जो शो चलेगा, उसमें झारखंड के बाबाधाम देवघर, मां छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा, मां भद्रकाली मंदिर इटखोरी एवं पाश्र्वनाथ के दृश्यों को समेटा गया है. जेल के महिला सेल में महिला कैदियों के रहन-सहन की झलक पेश की गई है. साथ ही जनजातीय महिलाओं के पारंपरिक जेवर, गहने, पहनावे को भी प्रदर्शित किया गया है.

उद्यान के अंदर एक कोने में चिल्ड्रन जोन है, जहां स्केटिंग, रॉक क्लाइंबिंग, कई प्रकार के झूले बच्चों का मनोरंजन करेंगे. रांची में पहली बार दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर की तरह म्यूजिकल फाउंटेन दिखेगा, जहां आपको झारखंड की लोक संगीत भी सुनने को मिलेंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Back to top button