बर्ड फ्लू –कोरोना काल में एक नया वायरस संकट
मुर्गे और अंडे खाने वाले सावधान हों
प्रयागराज, 05 जनवरी, 2021.
बर्ड फ्लू के नाम से एक नया संकट भी नववर्ष में दस्तक देने लगा है, जबकि कोरोना के साथ -साथ डेंगू चिकिनगुनिया आदि के दंश से अभी संतोषजनक मुक्ति नहीं मिल पाई थी.
मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश के बाद राजस्थान में भी कौवों के मरने की खबर आने लगी है। अब तक मध्य प्रदेश में 376 कौवे मरे पाए गए। सबसे अधिक कौवे इंदौर और मंदसौर में मृत पाए गए।हिमाचल प्रदेश में तो कौवों के साथ साथ बोध अभ्यारण में 1800 प्रवासी पक्षी मरे पाए गए।
जाँच करने पर पाया गया की पक्षियों की यह मौत एक खतरनाक वायरस है जिसे एवियन इन्फलुएन्जा h 5 n 1 कहते हैं। यह न केवल पक्षियों वल्कि इंसानो के लिए भी बहुत खतरनाक है।
मुर्गे और अंडे खाने वाले सावधान हों मुर्गे और अंडे खाने वाले सावधान हों
इंसानों में इसके लक्षण सर्दी जुकाम ,साँस लेने में दिक्कत ,और लगातार उल्टी आने से पता लगता है। इससे बचने का कारगर उपाय इम्युनिटी बढ़ाना ही है।
इस बर्ड फ्लू के संज्ञान में आने पर मुर्गे और अंडे खाने वालों को सावधान हो जाना चाहिए।
केरल में तो बर्ड फ्लू की स्थिति बेकाबू है ,केरल के कोट्टायम और अल्पयुम्मा जिले में यह बीमारी तेजी से फैली है .
प्रभावित क्षेत्र के दायरे में बत्तख ,मुर्गी और अन्य घरेलू पक्षियों को मारने का निर्णय लेना पड़ा है।
कोरोना और फ्लू के लक्षण में काफी समानता है
कोरोना और फ्लू के लक्षण में काफी समानता है। फ्लू के कारण सर्दी -जुकाम ,नाक बहना ,खांसी ,सरदर्द ,आँख का लाल होना और पानी आना जैसे स्वाभाविक लक्षण से कोरोना के संदेह से घबराहट होने लगती है।
यद्यपि फ्लू का माइल्ड इंफेक्शन गरम पानी पीने और एंटीवायरल दवाओं से दूर हो जाता है जबकि कोरोना पर एंटीवायरल दवाइयाँ निष्प्रभावी ही रहती हैं।
बर्ड फ्लू के संक्रमण का मुख्य कारण यद्यपि पक्षियों को ही माना जाता है ,परन्तु वैज्ञानिक इससे इंकार नहीं करते की यह इंसान से भी इंसान में फैलता है।
फ्लू आर यन ए RNA वायरस की वजह से होता है जो जानवरों ,पक्षियों और इंसानो की श्वसन नली को संक्रमित करता है।
वायरस का प्रकोप और प्रदूषण
वायरस के प्रकोप के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण विचारणीय बिंदु है ,मानव द्वारा प्रकृति के इम्यून सिस्टम को पर्यावरण प्रदूषण द्वारा निरंतर क्षीण करते जाने की प्रवृत्ति जिसपर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है।
जल ,वायु ,मिट्टी निरंतर प्रदूषित किया जा रहा है ,नदियों का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। अपने देश में ही विगत बीस वर्षों में सड़क बनाने के लिए करोड़ों पेड़ काट डाले गए। वनों की कटाई पर कोई अंकुश नहीं है।
जैव विविधता की माया
मानव के इन कृत्यों से जीव जंतुओं की हजारों प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं।
धरती पर जैविक विविधता की माया बड़ी ही विचित्र है। कोई भी दो जीव प्रजातियां अपने पर्यावरण का उपभोग सामान रूप से नहीं करती।यही सिद्धांत पादप जगत के लिए भी है।
विविधता पर प्रहार से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है। यह असंतुलन जैविक और रासायनिक होता है ,. जो प्रकृति की नैसर्गिक व्यवस्था में खलल उत्पन्न करते है जिसका परिणाम वायरस आदि के उत्पात के रूप में मानव को भोगना पड़ता है।
करोड़ों साल से चल रहा युद्ध
पृथ्वी पर करोड़ों साल से एक युद्ध चल रहा है नैसर्गिक युद्ध जीव, बैक्टीरिया -अर्द्ध जीव के बीच। यह अर्द्धजीव वायरस बड़ा ही विचित्र पात्र है जो इस धरती पर न्यक्लियोप्रोटीन के रूप में जीवित कोशिका से पहले आया और अरबों वर्ष से प्रेतग्रस्त है। जल में ,वायु में ,पहाड़ों पर ,वनस्पतियों में कहाँ नहीं यह विराजमान है।
वैज्ञानिकों का आह्वान
मानव प्रजाति का यह शत्रु नहीं है बैक्टीरियोफेज वायरस तो खतरनाक बैक्टीरिया का भोजन कर मानव की रक्षा करते रहे हैं। वैज्ञानिकों को वायरस के वैक्सीन बनाने के साथ प्रकृति की इम्युनिटी के सम्बन्ध में विचार करने की आवश्यकता है तभी मानव वायरस के दंश से मुक्ति पा सकता है।
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी –एक परिचय
जन्म – मांडा खास , इलाहाबाद , जन्मतिथि –25 दिसंबर 1945
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम यस सी , डी फिल ,रसायन शास्त्र . 2005 में काशी नरेश पी जी कालेज के प्राचार्य पद से सेवानिवृत।राजकीय शिक्षक संघ के अध्यक्ष रहे. रोवर्स रेंजर के प्रादेशिक स्टेट कमिश्नर के रूप में स्काउटिंग को पर्यावरण संरक्षण के साथ जोड़ा।
प्रदेश के उच्च शिक्षा के सलाहकार ,उच्च शिक्षा परिषद के सदस्य रहे
साहित्य ,विज्ञानं ,अध्यात्म ,दर्शन में गहरी रूचि। इन विषयों पर शताधिक लेख प्रकाशित , अन्यान्य संगोष्ठियों का आयोजन सञ्चालन संयोजन । इक्कीसवीं सदी आगे है -कविता संग्रह ,कोहम विज्ञानं-अध्यात्म ,जीव की उत्पत्ति ,वैज्ञानिक कोष ,पर्यावरण ,रहिमन पानी राखियो ,गांधीवाद , उत्तिष्ठत ब्राह्मणस्पते प्रमुख रचनाएँ हैं।
वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण के अन्वेषी प्रवृत्ति के शिक्षाविद –सतत ज्ञान की खोज ही डा चतुर्वेदी की अभिरुचि है।