आयुर्वेद के कुछ प्रमुख सिद्धांत ऐसे हैं जो पिछले 5000 वर्षों से बिल्कुल नहीं बदले हैं

आयुर्वेद के कुछ प्रमुख सिद्धांत ऐसे हैं जो पिछले 5000 वर्षों से बिल्कुल नहीं बदले हैं तथा आने वाले 5000 सालों तक भी बिना बदले पीड़ित मानवता को लाभ पहुंचाएंगे।

त्रिदोष सिद्धांत (तीन दोष हैं ,वात, पित्त,कफ)पंचमहाभूत ,सात धातु ,तथा मल ।इनकी मात्रा हर शरीर में निश्चित है इनके वैषम्य से रोगों की उत्पत्ति होती है,और जिस किसी विधि से इनमें साम्यता लाई जाती है ,वही विधि चिकित्सा है।

किसी भी नई बीमारी को दोषों के आधार पर नाम देते हुए चिकित्सा कर सकते हैं।तीन प्रकार की चिकित्सा बतायी गयी है,युक्तिव्यापाश्रय,देवव्यापाश्रय,सत्त्ववाजय।18 प्रकार की चिकित्सा विधि हैं  जिसमें हेतु विपरीत ,व्याधि विपरीत,हेतुव्याधि उभय विपरीत व इनके अर्थकारी जो भेद हैं उनमें एलोपैथी व होमेओपेथी दोनों पद्धतियों के सिद्धांत समाहित हैं।

शारीरिक व मानसिक प्रकृति: हर मनुष्य की प्रकृति वात पित्त कफ के गुणों के आधार पर अलग अलग होती है जो जन्म के साथ ही बनती है तथा मृत्यु पर्यंत वही रहती है ,उसी के आधार पर हर व्यक्ति के लिये अलग अलग औषधि कल्पना की जाती है।औषधियों के मूल घटक हमेशा वही रहते हैं तथा हमेशा वही कार्य करते हैं जैसे सितोपलादि चूर्ण में मिश्री,वंशलोचन ,पिप्पली ,इलायची ,दालचीनी होते हैं तथा उनका अनुपात निश्चित है ,वह शुरू से कास व अरुचि में कार्य करता है और इसी प्रकार कार्य करता रहेगा।समय के साथ बदलाव:पहले काष्ठ औषधियों(हर्बल) से अधिकांश चिकित्सा होती थी फिर धीरे धीरे Herbomineral औषधियों ,रस शास्त्र की विभिन्न औषधि को  क्लासिकल रूप में जोड़ दिया गया।पहले चूर्ण ,अवलेह और सीरप ,क्वाथ के रूप में आती थीं अब पेटेंट मेडिसिन और टैब,कैप्सूल ,सीरप व इंजेक्शन आदि के रूप में भी  आती हैं।समय के साथ और भी बदलाव हो सकते हैं।

आयुर्वेद की हर दवा उस समय वैज्ञानिक तरीके से ही बनाई गई जैसे धात्री लौह में आयरन को Vit C के साथ दिया गया जो अब लाभकारी सिद्ध हुआ है।

एलोपैथिक चिकित्सा पद्धतिइसके जनक हिप्पोक्रेट्स ने इसकी शुरुआत आयुर्वेद के त्रिदोष ,पंचमहाभूत के आधार पर  4 प्रकार के  humour व temperament  Blood, Black Bile,Yellow Bile व Phlegm से शुरूआत  की ।

The earliest concept of disease understood by the patient and the healer was the religious beliefs that disease was the outcome of curse from God or the belief in magic that the affliction and supernatural origin from evil eye of spirits.Till the beginning of 19th century,the treatment of diseases included such obnoxious remedies as flesh,excreta and blood of various animals along with a few metal and plant preparations.James Gregory 1753-1821,was responsible for blood letting,emetics,and purgatives.

इसके बाद लगातार खोज हो रही हैं।और वह इसमें लगातार अपडेट करते रहते हैं तथा नई से नई दवाओं का प्रयोग करते हैं।पुरानी दवाओं के साइड इफेक्ट्स सारे नुकसान वह खुद ही खोजते हैं तथा खुद ही इसे खराब बताते हुए नई दवाओं का प्रयोग करते हैं।जैसे 1950 के लगभग मॉर्निंग सिकनेस के लिये Thalidomide नामक दवा आयी कुछ दिनों बाद जब उसे सेवन करने वाली महिलाओ के विकलांग बच्चे पैदा हुए तो उसे बन्द कर दिया हाँ इस बीच लाखों विकलांग बच्चे अवश्य पैदा हुए ,जिनके लिये 60 साल बाद  माफी मांग ली गयी।एक दवा आयी Minoxidil  जिसे High BP के लिये बनाया गया,जब उसके साइड इफेक्ट्स से कान पर बाल बढ़ने लगे या गंजो के बाल आने लगे तो उसे Baldness के लिये local Application के रूप में प्रयोग करने लगे।जो Penicilline कभी wonderdrug थी अब कहाँ है सबको पता है।मेरा कहना वह समय के साथ अपडेट रहते हैं किसी को उनकी बुराइयां करने की आवश्यकता नहीं है।

बीच में उन्होंने सर्पगंधा के एल्कलॉइड को लेकर reserpine बनाने की कोशिश की पर असफल रहे क्योंकि आयुर्वेद में औषधि As a whole कार्य करती है।आजकल भी अगर औषधि यदि कार्य नहीं कर रहीं तो उनके रिसर्च ही उन्हें खराब अथवा नुकसानदायक  बताते हैं।


निष्कर्ष: सभी प्रकार की पद्धतियों की  अपने अलग अलग विशेषताएं हैं व फायदे तथा नुकसान हैं,हमें अपने शरीर के अनुसार आवश्यकता होने पर उनका प्रयोग करना है।सभी की अपनी सीमाएं हैं ,हमें मिलजुलकर कार्य करना चाहिए बिना किसी की अनावश्यक बुराई किये हुए।
सब साथ चलें, साथ आगे बढ़ें


डॉ अतुल वार्ष्णेय आरोग्य भारती 

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