जैव विविधता आधारित पारम्परिक खेती की तकनीक से रूबरू हुई महिलाएं
जैव विविधता पर आधारित पारंपरिक खेती का प्रशिक्षण शिविर का आयोजन
बाराबंकी जिले के सूरतगंज ब्लॉक में 28 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2021 तक 52 गाँवों की महिलाओं के साथ जैव विविधता आधारित पारंपरिक खेती का प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया.
जैव विविधता आधारित पारम्परिक खेती के (Organic farming) विशेषज्ञ दरबान सिंह नेगी एवं विपिन कुमार के नेतृत्व में आयोजित इस शिविर में पहले दिन 28 दिसम्बर को खेती किसानी में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मकड़जाल पर विस्तार से चर्चा की गयी.
नेगी ने महिलाओं से संवाद करते हुए कहा कि आज बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने हमारी रसोई को भी अपने कब्जे में ले लिया है. नमक, मसालों से लेकर सभी तरह की खाद्य सामग्रियों में इन्ही कंपनियों का वर्चस्व है. ये कम्पनियां हमें दूषित भोजन के साथ ही साथ रोगों को मुफ्त में प्रदान करती हैं. पहले बीजों पर एकाधिकार, फिर उन बीजों से उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों व रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता और उस पर भी इन्हीं बड़ी कंपनियों का वर्चस्व. बढ़ती रासायनिक खेती से हमें कैंसर, रक्तचाप, मधुमेह जैसी अनेकों बीमारियां आसानी से अपना शिकार बना लेती हैं और फिर हमें इन बीमारियों से निपटने के लिए दवाओं की जरूरत पड़ती है और इन दवाओं पर भी उन्हीं कंपनियों का वर्चस्व.
सीधा मतलब है कि बीजों से लेकर फसल उत्पादन, उनकी बिक्री और फिर जीवन को बचाने की जद्दोजहद में आदमी कहीं न कहीं कंपनियों के द्वारा बनाये गये मकड़जाल में फंस ही जाता है.
महिलाएं ही इस मकड़जाल को काटकर समाज में एक ऐसे जीवन को जीने का उदाहरण रख सकती हैं जिसके केन्द्र मे खेती हो और उसके चारों तरफ लघु उद्योग हों. इस तरह का विकेंद्रीकृत मॉडल ही वास्तविक विकास को जन्म दे सकता है जिसमें गैरबराबरी अपने न्यूनतम स्तर पर होगी.
जैव विविधता आधारित पारम्परिक खेती शिविर के दूसरे दिन जैविक खादों व जैविक कीटनाशकों को बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. जीवामृत, घनामृत, वर्मी कंपोस्ट, वर्मी वाश, कम्पोस्ट खाद को बनाने के साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के जैविक कीटनाशकों को भी बनाने की जानकारी दी गयी. महिलाओं ने इस प्रयोगात्मक शिविर में बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी की.
तीसरे दिन देसज बीजों के संरक्षण व संवर्धन के बारे में बात करते हुए सरसों, चना, मटर, गेहूँ, धान व सब्जियों के बीजों को चुनने व उनकी गुणवत्ता को बढ़ाने के वैज्ञानिक व पारंपरिक तरीकों को साझा किया गया. देसी बीजों के बिना जैविक खेती की कल्पना करना बेमानी है और बड़ी बड़ी कंपनियां आज हमें टर्मिनेटर बीजों को बेचकर हमें अपने हाथों की कठपुतली बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही हैं.
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हमें इस दुष्चक्र को तोड़ना होगा और इसमें महिलाओं की भूमिका अग्रणी है. उनके नेतृत्व में ही जैव विविधता आधारित पारम्परिक खेती का काम हो सकता है. सदियों से बीजों को बचाने व उन्हें फैलाने का काम महिलाएं ही करती आ रही हैं, बीजों को बचाना अर्थात जीवन को बचाना. महिलाएं ही इस काम को बखूबी करती हैं इसीलिए उन्हें जीवनदात्री भी कहा जाता है. शिविर के अंतिम दिन खेती के उत्पादों के साथ ही साथ उत्पादों की प्रोसेसिंग पर चर्चा हुई। छोटी छोटी स्थानीय इकाइयों द्वारा जैविक खाद्य प्रोसेसिंग यूनिट बनाकर चटनी, अचार, मुरब्बा, बड़ी, पापड़ आदि को बनाने व उनके स्थानीय स्तर पर व्यापार को लेकर भी चर्चा हुई जिसमें विपिन कुमार ने अपने अनुभवों को भी साझा किया. नेगी ने कहा कि ये छोटी-छोटी इकाइयां ही स्वराज की दिशा में चलने की शुरुआत होगी और हम मिलकर वैकल्पिक विकास की राह बना सकते हैं जिसकी चाभी स्थानीय जनता के हाथ में होगी.