बिज़नेस के लिए गंगा और बनारस की तबाही

बनारस की परम्पराओं में विश्वास रखने वाले लोग अत्यंत व्यथित एवं निराश

बनारस में गंगा नदी  पर  बॉध और दूसरी तरफ़ रेती में नहर बनाने से भयावह परिणाम हो सकते हैं . जानकारों का कहना है कि गंगा नदी घाटों से दूर जायेंगी , प्रदूषण बढ़ेगा और रेल का पुल भी क्षतिग्रस्त हो सकता है . इस विषय पर बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी ने बात की नदी वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर यू के चौधरी और बनारस के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप से . 

श्रीरामदत्तत्रिपाठी: प्रो. चौधरी जी!ललिता घाट के समीप के गंगा की धारा के प्रवाह को रोक कर बहुत लंबा प्लेटफॉर्म बन रहा है जिससे पानी का जमाव होने से काई जमा होने से गंगा का पानी हरा दिखाई देता है। वह क्या है और उसका नदी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? 

प्रो. यू. के. चौधरी: यह प्लेटफॉर्म वास्तव में काशी विश्वनाथ कॉरीडोर परियोजना से निकालने वाले मलबे के निस्तारण के लिए बनाया जा रहा है। चूंकि यह स्थान गंगा नदी के प्रवाह का ऊपरी भाग (upward stream) है इसलिए यहाँ पर जल का प्रवाह बाधित होने से धारा का प्रवाह अपना मार्ग बदल देगा। यह कार्य निचले भाग (downward stream) पर करना बेहतर विकल्प था। यह प्लेटफॉर्म बहुत ही गलत स्थान पर और गलत तरीके से 90 अंश के कोण के साथ बनाया जा रहा है जो गंगा के प्रवाह को सीधे सीधे अवरुद्ध कर देगा। 4-5 वर्ष के बाद यहाँ पर घाट तो पूरी तरह से रेत के मैदान बन जाएंगे और फिर उसका परिमार्जन भी असंभव होगा।   

श्रीरामदत्तत्रिपाठी: सुरेश प्रताप जी! ललिता घाट पर प्लेटफॉर्म जिस रूप में बन रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह केवल मलबे के निस्तारण के लिए नहीं है बल्कि पूर्व नियोजित है। हो सकता है गोवा की भांति इसे बीच के रूप में विकसित करने की योजना हो। बनारस के लोग इस बारे में क्या सोचते हैं? 

श्रीसुरेशप्रताप: आप ठीक कह रहे हैं। यह केवल मलबे का निस्तारण मात्र नहीं है। लगभग एक वर्ष से ललिता घाट, वीर घाट, दशाश्वमेघ घाट और श्मशान घाट के बीच की लगभग 800 मीटर का क्षेत्र लोहे के पाइप और धारा की गहराई से बालू लेकर बांधने का कार्य चल रहा है।इससे मणिकर्णिका घाट पर काई जमा होने से गंगा का जल हरा हो गया है। यहाँ पर गंगा का प्रवाह रोक देने से तो गंगा का समस्त सौन्दर्य ही नष्ट हो जाएगा क्योंकि गंगा का वास्तविक अर्धचंद्राकार स्वरूप यहीं पर दिखाई देता है। इससे बनारस की परम्पराओं में विश्वास रखने वाले लोग अत्यंत व्यथित एवं निराश हैं। 

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