ढहा दी गयी बाबरी मस्जिद, अदालतों से निपटा विवाद
बाबरी मस्जिद विध्वंस आपराधिक मामला क़ानूनी दाँवपेंच और जटिल प्रक्रिया के चलते अट्ठाईस सालों से ट्रायल कोर्ट में ही लम्बित है।
लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत 30 सितंबर को अपना फैसला सुनायेगी।
इस फैसले से पूर्व मीडिया स्वराज के पाठकों के लिए पेश है राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद आंदोलन के सिलसिलेवार इतिहास पर पिछले चालीस वर्ष से अयोध्या पर रिपोर्ट करते आ रहे बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी की विस्तृत रिपोर्ट की चौथी और आखिरी किश्त :
पहली किश्त पढ़ें
https://mediaswaraj.com/in-the-temple-mosque-dispute-it-was-decided-many-times-before-independence/
दूसरी किश्त पढ़ें
https://mediaswaraj.com/ram-mandir-babri-masjid-had-become-a-political-issue-since-1952/
तीसरी किश्त पढ़ें
https://mediaswaraj.com/shankaracharyas-initiatives-and-vhp-movement-after-the-lock-was-opened/
आडवाणी की रथयात्रा, अगड़ों-पिछड़ों का संघर्ष
अब भाजपा राम मंदिर आंदोलन को खुलकर अपने हाथ में ले लेती है, जिसका नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी को मिलता है।
आडवाणी देशभर में माहौल बनाने के लिए 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ मंदिर से 30 अक्टूबर तक अयोध्या की रथयात्रा पर निकलते हैं।
देश में कई जगह दंगे फ़साद होते हैं। लालू प्रसाद यादव आडवाणी को बिहार में ही गिरफ़्तार कर रथ रोक लेते हैं।
लाखों कारसेवकों का अयोध्या में जमावड़ा
मुलायम सरकार की तमाम पाबंदियों के बावजूद 30 अक्टूबर को लाखों कारसेवक अयोध्या पहुँचते हैं।
लाठी-गोली के बावजूद कुछ कारसेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ जाते हैं। मगर अंत में पुलिस भारी पड़ती है।
गोलीबारी में सोलह कारसेवक मारे जाते हैं, हालाँकि हिंदी अख़बार विशेषांक निकालकर सैकड़ों कारसेवकों के मरने और सरयू के लाल होने की सुर्ख़ियाँ लगाते हैं।
मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम सिंह कहकर गाली दी जाती है।
वह हिन्दुओं में बेहद अलोकप्रिय हो जाते हैं और अगले विधानसभा चुनाव में उनकी बुरी पराजय होती है।
नाराज़ भाजपा केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेती है। जनता दल के अंदर भी देवीलाल बग़ावत करते हैं।
वीपी सिंह पिछड़े वर्गों को आरक्षण के लिए पुरानी मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर देते हैं।
अब देश में अगड़ों-पिछड़ों अथवा मंडल-कमंडल का खुला संघर्ष शुरू होता है।
नरसिम्हा राव और कल्याण सिंह सत्ता में
1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या हो जाती है और कांग्रेस के बूढ़े नेता नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बनते हैं।
उत्तर प्रदेश में मध्यावधि चुनाव में भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बनते हैं।
सरकार बनते ही कल्याण सिंह सरकार मस्जिद के सामने की 2.77 एकड़ ज़मीन पर्यटन विकास के लिए अधिग्रहीत कर लेती है।
राम कथा पार्क के लिए अधिग्रहीत 42 एकड़ ज़मीन लीज़ पर विश्व हिंदू परिषद को दे दी जाती है।
सरकार के निर्देश पर अधिकारी पुराने सिविल मुक़दमों में तथ्य बदलकर नये हलफ़नामे दाख़िल करते हैं।
संघ परिवार चाहता है की मस्जिद के सामने पर्यटन के लिए अधिग्रहीत ज़मीन पर मंदिर निर्माण शुरू कर दिया जाए, जिसके लिए पत्थर तराशे जा चुके हैं।
मगर हाईकोर्ट ने आदेश कर दिया कि राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर के सामने की इस ज़मीन पर स्थायी निर्माण नहीं होगा।
फिर भी जब जुलाई में निर्माण शुरू हो गया तो सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया।
नरसिम्हा राव सरकार बड़ी मुश्किल से संतों को समझा-बुझाकर यह निर्माण रुकवा पायी।
मस्जिद के साथ अदालत का आदेश, संघ का अनुशासन भी टूटा
छह दिसंबर 1992 को फिर कारसेवा का ऐलान हुआ।
कल्याण सरकार और विहिप नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में वादा किया कि सांकेतिक कारसेवा में मस्जिद को क्षति नहीं होगी।
कल्याण सिंह ने पुलिस को बल प्रयोग न करने की हिदायत दी।
कल्याण सिंह ने स्थानीय प्रशासन को केंद्रीय बलों की सहायता भी नहीं लेने दी।
आम कारसेवकों में आख़िरी क्षणों में सांकेतिक कारसेवा की घोषणा के ख़िलाफ़ रोष था।
मस्जिद के साथ ही संघ परिवार का यह घमंड भी टूट गया कि वे भीड़ को जैसे चाहे, इस्तेमाल कर सकते हैं।
कृपया वीडियो देखें : http://ramdutttripathi.in/article/201
छह दिसम्बर को ध्वस्त की गयी बाबरी मस्जिद
आडवाणी, जोशी और सिंघल जैसे शीर्ष नेताओं, सुप्रीम कोर्ट के प्रेक्षक ज़िला जज तेज़ शंकर और पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में लाखों कारसेवकों ने छह दिसंबर को मस्जिद की एक-एक ईंट उखाड़कर मलबे के ऊपर एक अस्थायी मंदिर बना दिया।
वहाँ पहले की तरह रिसीवर की देखरेख में दूर से दर्शन -पूजा शुरू हो गया।
मुसलमानों ने केंद्र सरकार पर मिलीभगत और निष्क्रियता का आरोप लगाया।
पर प्रधानमंत्री ने सफ़ाई दी कि संविधान के अनुसार शांति व्यवस्था राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी थी और उन्होंने क़ानून के दायरे में रहकर जो हो सकता है किया।
उन्होंने मस्जिद के पुनर्निर्माण का भरोसा भी दिया।
मस्जिद ध्वस्त होने के कुछ दिनों बाद हाईकोर्ट ने कल्याण सरकार द्वारा ज़मीन अधिग्रहण को गैरकानूनी क़रार दे दिया।
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद ज़मीन अधिग्रहण
नरसिम्हा राव ने “द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया ऐट अयोध्या ऐक्ट, 1993” बनाकर 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित की, जो हिन्दू और मुसलमानों दोनों से ली गयी थी।
27 जून 1993 में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी ने श्रृंगेरी में चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवाया।
इसमें स्वामी निश्चलानंद जी के अलावा, काँची के आचार्य को भी बुलवाया।
चतुष्पीठ सम्मेलन में ये तय हुआ कि नया राम मन्दिर पहले से बहुत विशाल अंकोरवाट के तर्ज पर धर्माचार्य बनाएंगे न कि राजनैतिक लोग।
स्वामी स्वरूपानंद जी ने अंकोरवाट के जैसे विशाल राम मन्दिर के लिए पहले ही सब सोचा हुआ था।
चतुष्पीठ सम्मेलन में यह घोषणा हुई कि राम मन्दिर के लिए देश के सभी प्रमुख आचार्य रामालय यानी राम का घर न्यास बनाएंगे जिसमे सभी शंकराचार्यों सहित, सभी वैष्णवाचार्य, सभी अखाड़ो के आचार्य सहित कुल 25 लोग रहेंगे।
इसमें शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं शामिल थे और उन्होंने बाकायदा हस्ताक्षर भी किया था।
केंद्र ने अधिग्रहीत की 67 एकड़ जमीन
इस बीच केंद्र सरकार ने मसले के स्थायी समाधान के लिए संसद से क़ानून बनाकर राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवादित परिसर और आसपास की लगभग 67 एकड़ ज़मीन को अधिग्रहीत कर लिया था।
सरकार ने हाईकोर्ट में चल रहे मुक़दमे समाप्त करके सुप्रीम कोर्ट से राय माँगी कि क्या बाबरी मस्जिद का निर्माण कोई पुराना हिंदू मंदिर तोड़कर किया गया था।
यानी विवाद को इसी भूमि तक सीमित कर दिया गया।
इस क़ानून की मंशा थी कि कोर्ट जिसके पक्ष में फ़ैसला लेगी, उसे अपना धर्म स्थान बनाने के लिए मुख्य परिसर दिया जाएगा और थोड़ा हटकर दूसरे पक्ष को ज़मीन दी जाएगी।
दोनों धर्म स्थलों के लिए अलग ट्रस्ट बनेंगे। यात्री सुविधाओं का भी निर्माण होगा।
कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को केंद्र सरकार की ओर से रिसीवर नियुक्त किया गया।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया कि क्या वहाँ मस्जिद से पहले कोई हिंदू मंदिर था।
जजमेंट के कहा गया कि अदालत इस तथ्य का पता लगाने के लिए सक्षम नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में चल रहे मुक़दमों को भी बहाल कर दिया, जिससे दोनों पक्ष न्यायिक प्रक्रिया से विवाद निबटा सकें।
शिलादान कार्यक्रम से विहिप और सरकार की दूरियाँ बढ़ीं
इस बीच दिल्ली में भाजपा की सरकार आ जाती है।
अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री और आडवाणी गृह मंत्री।
विश्व हिंदू परिषद और मंदिर समर्थकों की उम्मीदें काफ़ी बढ़ जाती हैं।
सन् 2002 में विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या की अधिग्रहीत भूमि पर प्रतीकात्मक मंदिर निर्माण के लिए फिर देश भर से कारसेवकों को इकट्ठा किया।
लेकिन वाजपेयी-आडवाणी सरकार ने भारी फ़ोर्स लगाकर कारसेवकों को अयोध्या के बाहर खदेड़ दिया और अधिग्रहीत राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर में कोई कार्यक्रम नही हो सका।
मंदिर आंदोलन के एक प्रमुख नेता रामचंद्र दास परमहंस की चेतावनी के चलते अधिकारियों ने उनके ही दिगम्बर अखाड़े में शिलाएँ प्राप्त कर लीं।
ये शिलाएँ फ़ैज़ाबाद प्रशासन के कोषागार में जमा हैं।
सरकार की सख़्ती से अशोक सिंघल और परमहंस जैसे नेता अटल, आडवाणी से निराश हुए और आगे चलकर कटु आलोचक हो गए।
गोधरा कांड और नरेंद्र मोदी का उदय
27 फ़रवरी को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर अयोध्या से वापस लौट रहे कारसेवकों की दो बोगियों में धू- धू करके आग लगी जिसमें अंदर बैठे लोग बुरी तरह जलकर मारे गये।
आरोप है कि कारसेवकों से कुछ झगड़े के बाद स्थानीय मुसलमानों ने इन बोगियों को जलाया।
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी जाँच-पड़ताल के इसे पाकिस्तानी आतंकवादियों की साजिश करार दिया।
आरोप है कि इसके बाद संघ परिवार ने अपने समर्थकों को गोधरा का बदला लेने के लिए उकसाया और मुख्यमंत्री ने पूरे प्रशासन को ख़ामोश तमाशा देखने का निर्देश दिया।
कुछ पुलिस अफ़सरों की चेतावनी को भी सरकार ने नज़रअंदाज किया।
अनेक लोगों का कहना है की भारत में यह पहला सुनियोजित दंगा था जिसकी साज़िश में सरकार शामिल थी।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार इन दंगों में कम से कम 850 लोग मारे गए।
हालाँकि ग़ैर सरकारी तौर पर यह आँकड़ा 2000 तक जाता है।
उस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे लेकिन वह ज़बानी जमाख़र्च के अलावा कुछ नहीं कर सके।
नरेंद्र मोदी देश भर में हिंदुत्ववादियों की पसंद के पहले नेता बन गए और आडवाणी उनसे पीछे छूट गए।
पुरातत्व की खुदाई, हाईकोर्ट जजमेंट
हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से बाबरी मस्जिद और राम चबूतरे के नीचे खुदाई करवायी जिसमें काफ़ी समय लगा।
रिपोर्ट में कहा गया कि नीचे कुछ ऐसे निर्माण मिले हैं जो उत्तर भारत के मंदिरों जैसे हैं।
इसके आधार पर हिंदू पक्ष ने नीचे पुराना राम मंदिर होने का दावा किया, जबकि अन्य इतिहासकारों ने इस निष्कर्ष को ग़लत बताया।
लम्बी सुनवाई, गवाही और दस्तावेज़ी सबूतों के बाद 30 सितम्बर 2010 को हाईकोर्ट ने जजमेंट दिया।
तमाम परिस्थिति जन्य साक्ष्यों के आधार पर तीनों जजों ने यह माना कि भगवान रामचंद्र जी का जन्म मस्जिद के बीच वाले गुंबद वाली ज़मीन पर हुआ होगा।
लेकिन ज़मीन पर मालिकाना हक़ के बारे में किसी के पास पुख़्ता सबूत नहीं थे।
इसलिए दीर्घकालीन क़ब्ज़े के आधार पर भगवान राम, निर्मोही अखाड़ा और सुनी वक़्फ़ बोर्ड के बीच तीन हिस्सों में बाँट दिया।
इसे एक पंचायती फ़ैसला भी कहा गया, जिसे सभी पक्षकारों ने नकार दिया।
अदालती विवाद महज़ आधा बिस्वा अथवा 1428 वर्ग गज ज़मीन का था, जिस पर विवादित बाबरी मस्जिद ज़मीन खड़ी थी।
लेकिन धर्म, इतिहास, आस्था और राजनीति के घालमेल ने इसे जटिल और संवेदनशील बना दिया।
राम मंदिर के लिए क़ानून की माँग
शंकाराचार्य स्वरूपानंद ने 25,26,27 नवम्बर 2018 में काशी में धर्म संसद में प्रस्ताव पारित कराके, संसद से कानून बनाकर राम मन्दिर बनाने का प्रस्ताव भेजा।
28, 29, 30 जनवरी 2019 को परम धर्म संसद 1008 के दूसरे सम्मेलन में अयोध्या जाकर राम मन्दिर निर्माण करने की तारीख़ घोषित किया, पर उसके ठीक पहले पुलवामा हमले के कारण इस यात्रा को रद्द किया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
उधर सुप्रीम कोर्ट ने अपील के मामले में तेज़ी से सुनवाई कर नौ नवम्बर को जजमेंट दे दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने मोटे तौर पर अयोध्या विवाद के अपने फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट का अनुमोदन किया।
साथ ही साथ 1993 में केन्द्र सरकार द्वारा अयोध्या में ज़मीन अधिग्रहण क़ानून की स्कीम के मुताबिक़ विवाद के निपटारे का निर्देश दिया।
कोर्ट ने भगवान रामलला विराजमान का दावा मंज़ूर करते हुए केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह फैसले के तीन महीने के अंदर मंदिर निर्माण के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत करे।
कोर्ट ने कहा कि यह कार्ययोजना 1993 में बने अधिग्रहण क़ानून की धारा छह और सात के अंतर्गत होगी।
धारा छह में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट गठित करने की बात है जिसके संचालन के लिए एक बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ होगा।
इसी ट्रस्ट को मंदिर के निर्माण और आसपास ज़रूरी व्यवस्थाएं करने का अधिकार दिया गया।
फैसले के पैरा 805 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के मुक़दमे को निश्चित मियाद के बाद दायर करने के कारण रद्द कर दिया।
कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा का राम जन्मभूमि मंदिर का प्रबंधक होने का दावा भी ख़ारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस्तेमाल किया विशेषाधिकार
लेकिन संविधान के अनुच्छेद 142 में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि परिसर में निर्मोही अखाड़ा की ऐतिहासिक भूमिका को देखते हुए उसे मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट के मैनेजमेंट में उचित स्थान दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फ़ैसले को पलट दिया है जिसमें सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के मुक़दमे को मियाद के बाहर बताया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को नई मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन आवंटित करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केन्द्र सरकार 1993 में अधिग्रहीत 67 एकड़ ज़मीन में से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को आवंटित करेगी अथवा राज्य सरकार अयोध्या के किसी उपयुक्त और प्रमुख स्थान पर यह ज़मीन आवंटित करेगी।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड इस ज़मीन पर मस्जिद बनाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने को स्वतंत्र होगा अर्थात उस पर कोई बाधा नहीं डाली जाएगी।
जजमेंट में यह भी कहा गया है कि सबसे पहला मुक़दमा दायर करने वाले हिन्दू महासभा के नेता राम गोपाल विशारद को मंदिर में पूजा का अधिकार होगा।
उन्होंने सन 1949 में मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद यह अधिकार मांगा था।
विशारद अब इस दुनिया में नहीं रहे और उनके उत्तराधिकारी मुक़दमे में पक्षकार थे।
सुप्रीम कोर्ट जजमेंट के बाद ट्रस्ट की दावेदारी
शंकाराचार्य स्वरूपानंद जी का कहना है कि राम मंदिर निर्माण का मौका रामालय न्यास को मिलना चाहिए था क्योंकि “द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया ऐट अयोध्या ऐक्ट, 1993” के हिसाब से एकमात्र रामालय न्यास ही है जो ऐक्ट की सारी शर्तों को पूरा करता है।
22 जनवरी 2020 को प्रयाग के संगम तट स्थित माघ मेले में भक्त सन्त सम्मेलन बुलाया गया।
इसमें इस बात का प्रस्ताव पारित हुआ कि भगवान राम के लिए 25 फुट ऊँचा, स्वर्ण जटित एक अस्थायी बाल मन्दिर “स्वर्णालय” का निर्माण किया जाएगा।
और भगवान राम को शीघ्र तम्बू से मुक्त कर एक भव्य चन्दन के लकड़ी से बने विशाल सिंहासन पर विराजमान करके स्वर्णालय में तब तक रखा जाएगा जब तक कि भगवान राम का दिव्य भव्य स्थायी मन्दिर नही बन जाता।
स्वर्णालय बनकर तैयार हो चुका था और वह शीघ्र अयोध्या के लिए लेकर जाना था।
कृपया इसे सुनें https://mediaswaraj.com/why_modi_not_consulting_shankarachary_rammandir/
इस बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने पाँच फ़रवरी को राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास का गठन कर फटाफट सारी ज़मीन हस्तांतरित कर दी।
प्रधानमंत्री ने स्वयं इसकी घोषणा संसद में की।
ट्रस्ट ने जल्दी-जल्दी भगवान राम की मूर्ति को पास में एक अस्थायी मंदिर में स्थानांतरित करके प्रधानमंत्री पाँच अगस्त को नरेंद्र मोदी के हाथों शिलान्यास -भूमि पूजन करवा दिया।
दूसरी ओर शंकाराचार्य स्वरूपानंद एवं ज्योतिष के जानकार अन्य विद्वानों का कहना है कि पाँच अगस्त को कोई मुहूर्त था ही नहीं।
उनका सुझाव है कि राम मंदिर निर्माण कार्य देवोत्थानी एकादशी के बाद शुरू करना चाहिए पर उनकी सुनता कौन है?
कृपया इसे भी पढ़ें : https://mediaswaraj.com/gandhi-ideology-for-lord-ram/
लेखक राम दत्त त्रिपाठी, लगभग चालीस वर्षों से राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद अयोध्या विवाद का समाचार संकलन करते रहे हैं। वह क़ानून के जानकार हैं। लम्बे अरसे तक बीबीसी के संवाददाता रहे। उसके पहले साप्ताहिक संडे मेल और दैनिक अमृत प्रभात में काम किया।
ये लेखक के निजी विचार हैं।