संत विनोबा की पंचवर्षीय योजना पर क्या थी राय, जानें बाबा के पदयात्रा की कहानी

विनोबा विचार प्रवाह ब्रह्मविद्या मंदिर तीर्थ बाबा विनोबा (Baba Vinoba) स्वतंत्र भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना की आहूत बैठक को दिल्ली में मार्गदर्शन देने पदयात्रा करते हुए भूमिदान मांगते हुए उत्तरप्रदेश के मथुरा से आगे अलीगढ़ होते हुए बुलंदशहर, गाजियाबाद से 13 नवंबर को यमुना नदी के पुल को पारकर गांधी जी की समाधि राजघाट दिल्ली पर पहुंच गए। वहां पर स्वयं नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के अनेक सम्मानित सदस्य गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बाबा विनोबा की पदयात्रा का स्वागत करने पहुंचे थे।

गांधी की समाधि को प्रणाम करने के बाद बाबा विनोबा ने वहां प्रार्थना सभा में भाग लिया। बाबा विनोबा की रहने की व्यवस्था दिल्ली में अंदर की गई थी। बाबा ने नेहरू से हंसते हुए कहा कि मेरी दिल्ली तो यहीं तक है अब आगे की दिल्ली तो नेहरू आपकी है।अतः हमारा रुकना यहीं होगा तो हमें खुशी होगी।!वैसा ही प्रबंध किया गया। यहां तक कि सुंदर भवन में आयोजित होने वाली बैठक भी गांधी समाधि से निकट स्थान जो आजकल गांधी दर्शन है। वहीं पर सुंदर ढंग से सजाकर बैठक का आयोजन किया गया। उस बैठक का भी एक सुंदर संस्मरण सुना गया है कि बाबा ने पंचवर्षीय योजना के ड्राफ्ट को सरसरी नजर से देखा और अपने संबोधन में कहा कि मुझे इसे देखकर

एक कहानी कहने का मन हो रहा है कि एक नदी को पार करने गए अनेक लोग डूब रहे थे। एक व्यक्ति जो किनारे पर खड़ा होकर कह रहा है कि चिंता मत करो हमने तुम सब डूबने वालों के लिए एक अच्छी योजना बनाई है कि पहले वर्ष में इतने लोग दूसरे में इतने ,तीसरे वर्ष में इतने और चौथे ,पांचवें वर्ष में इतने लोगों को बचाते हुए बाहर निकाला जाएगा। भाई ! इस सुंदर योजना के आधार पर कितने जीवित बच पाएंगें। ठीक वैसे ही यह पंचवर्षीय योजना बनी दिख रही है कि क्रमश; पांच वर्ष में गरीबी दूर कर जीवन सुरक्षित किया जाएगा । नेहरू जी ने बाबा से कहा कि आखिर सबके लिए क्या संभव है। विनोबा ने कहा कि बड़े बड़े संसाधन हो सकता कि संभव न हो पाए लेकिन हर गरीब तक लकड़ी का चरखा तो पहुंच सकता है उस समय चरखे की कीमत 3 पैसा हुआ करती थी। वह चरखा उस परिवार को भूखे नहीं मरने देगा। यह अलग बात है कि इस ओर ध्यान नहीं दिया जा सका नहीं तो आज समाज का चित्र कुछ और ही दिखता। खैर विनोबा तो संत ,ऋषि ठहरे अपनी बात कहकर दिल्ली से उत्तरप्रदेश की ओर चल पड़े।

24 नवंबर को उत्तरप्रदेश में यात्रा प्रारंभ के अवसर पर बाबा की यात्रा का जोरदार स्वागत किया गया। उत्तरप्रदेश में यात्रा सिरोली, मेरठ ,सरधना ,मुजफ्फरनगर , देवबंद ,सहारनपुर, होतीं हुई 10 दिसंबर को पर्वतमाला देहरादून पहुंच गई। वहां से नीचे ऋषिकेश नगरी से हरिद्वार के रास्ते पर काली कमलीवालों ने बाबा को एक चंदन की मणिमाला भेंट की थी । बाबा तो ऐसी माला का उपयोग कम ही करते थे ।उनका चरखा और तकली माला अर्थात एकाग्रता का काम देती थी। बाबा ने माला का आदर करते हुए रात में सोते वक्त चिंतन करते हुए नामस्मरण के निमित्त सभी धर्मों से भगवान के 36 नामों को गूंथकर एक सुंदर नाममाला की रचना की।जिसमें तीन श्लोक बन गए थे । उसका पहली बार गायन भी उन्हीं के आश्रम में किया। हरिद्वार ,बिजनौर, कोटद्वार नजीबाबाद,अमरोहा मुरादाबाद ,रामपुर होकर बाबा फिर काशीपुर,कलाडूंगी होकर नए वर्ष एक जनवरी 1952 को बाबा विनोबा की पदयात्रा हल्द्वानी पहुंच गई। जहां से बाबा ऊपर पहाड़ की ओर न जाकर नीचे बरेली की ओर आने का तय किए थे।

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