समझिए वात दोष को, इसी से होती हैं सबसे अधिक बीमारियाँ!!

आयुर्वेद में कहा गया है कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए त्रिदोषों – वात, पित्त और कफ का संतुलित रहना अनिवार्य है। जिस व्यक्ति के ये त्रिदोष संतुलित अवस्था में रहते हैं वह पूर्णत: स्वस्थ रहता है। विभिन्न कारणों – मौसम परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, दिनचर्या, ऋतुचर्या, जीवनचर्या में विकृति आदि कारणों से समय समय पर विकृतियाँ आ जाती हैं जिससे हमारा शरीर रोगी हो जाता है। इन त्रिदोषों में इनमें पित्त और कफ को गतिहीन रूप में अपने लिए शरीर में निर्धारित स्थान पर स्थित रहते हैं और वात को गतिशील कहा गया है जो पूरे शरीर में संचरण करता रहता है। वात की सहायता से ही पित्त और कफ भी शरीर में संचरण करते रहते हैं। इसलिए, शरीर में वात की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है क्योंकि शरीर में जब वात असंतुलित अवस्था में होता है तो शरीर में उसके संचरण की गति भी अधिक होती है जिससे पित्त और कफ का संचरण अधिक होने लगता है। 

जब शरीर में वात अधिक असंतुलित होता है तो शरीर में वात से संबन्धित रोग होते हैं, जब पित्त अधिक असंतुलित होता है तो पित्त संबंधी और जब कफ असंतुलित होता है तो कफ संबंधी रोग होते हैं। बाल्यवस्था में कफ, युवावस्था में पित्त और वृद्धावस्था में वात की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी प्रकार, दिन को भी त्रिदोषों की प्रबलता के आधार पर विभाजित किया गया है। इसी विभाजन के आधार पर आयु, देश, काल, समय आदि के आधार पर आयुर्वेद में दिनचर्या, ऋतुचर्या एवं जीवनचर्या के संबंध में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किया गए हैं। प्राचीन काल में, यह सिद्धान्त जन-जन में व्याप्त था और उनका पालन करके लोग स्वस्थ, निरोगी एवं दीर्घायु होते थे।

उचित शिक्षा के अभाव एवं पाश्चात्य उपभोगवादी संस्कृति के अत्यधिक प्रभाव के कारण शायद ही कोई व्यक्ति स्वयं को पूर्णत: स्वस्थ अनुभव करता हो। त्रिदोषों – वात, पित्त और कफ की शरीर में भूमिका और वात प्रकुपित होने के कारण होने वाले रोगों, उनसे बचाव के उपाय, उपयुक्त दिनचर्या, ऋतुचर्या एवं जीवनचर्या का पालन कर कोई भी व्यक्ति स्वस्थ, निरोगी एवं दीर्घायु बना रह सकता है।

चूंकि स्वस्थ नागरिकों से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है, इसलिए, आज श्री रामदत्त त्रिपाठी के साथ आयुषग्राम चित्रकूट के संस्थापक, भारतीय चिकित्सा परिषद, उ.प्र. शासन में उपाध्यक्ष तथा कई पुस्तकों के लेखक, आयुर्वेद फार्मेसी एवं नर्सिंग कॉलेज के प्रधानाचार्य एवं प्रख्यात आयुर्वेदचार्य आचार्य वैद्य मदन गोपाल वाजपेयी, एवं बनारस विश्वविद्यालय के दृव्य गुण विभाग के प्रो. (डॉ) जसमीत सिंह इसी विषय पर विस्तार से चर्चा कर रहे हैं: 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

10 − 5 =

Related Articles

Back to top button